ओशो- देश की सारी राजनीति देश को खंड-खंड बनाए रखने पर जीवित है और वे ही राजनीतिज्ञ बातें करते हैं कि राष्ट्र एक कैसे हो? गुजरात का राजनीतिज्ञ जिंदा है गुजरात की अलग इकाई पर, महाराष्ट्र का राजनीतिज्ञ जिंदा है महाराष्ट्र की अलग इकाई पर, मैसूर का राजनीतिज्ञ मैसूर की अलग इकाई पर जिंदा है।मैसूर और महाराष्ट्र लड़ते रहेंगे, कि एक जिला मैसूर में हो कि महाराष्ट्र में, और ऊपर दिल्ली में बैठ कर वे विचार करेंगे–वे ही लोग कि राष्ट्र की एकता कैसे हो? असल में राजनीतिज्ञ लोकल, स्थानीय स्वार्थ पर जिंदा है और राष्ट्रीय स्वार्थ की बात कर रहा है, इसलिए यह एकता संभव नहीं हो सकती है।
यह एकता संभव एक ही तरह से हो सकती है कि देश में स्थानीय सरकारों को विदा किया जाए, सिर्फ केंद्रीय सरकार हो; उसके अतिरिक्त देश की एकता नहीं हो सकती। देश में केंद्रीय सरकार हो, लेकिन राजनीतिज्ञ पसंद न करेगा। क्योंकि फिर इतने गवर्नर कैसे होंगे, इतने मुख्यमंत्री कैसे होंगे, इतने मंत्री, उपमंत्री कैसे होंगे? बहुत कठिनाई हो जाएगी। थोड़े से लोगों के हाथ में ही फिर सत्ता होगी।इतने लोग सत्ताधिकारी होने का मजा नहीं ले सकेंगे। उनकी सत्ताधिकारी होनी की इच्छा देश को खंड-खंड तोड़ती चली जाती है। फिर तेलंगाना चाहता है अलग राज्य बन जाए, पंजाब चाहता है अलग राज्य बन जाए, झारखंड चाहता है बिहार में अलग राज्य बन जाए, बरार चाहता है विदर्भ अलग राज्य बन जाए, क्योंकि राजनीतिज्ञ देखते है कि एक प्रदेश दो हिस्सों में टूटे तो फिर दो मुख्यमंत्री होते हैं, दो मंत्रालय होते है, दो गवर्नर होते है।
राजनीतिज्ञ को सुविधा मिलती है देश जितने हिस्सों में टूटे। राजनीतिज्ञ का हित इस पर निर्भर है कि देश टूटता चला जाए और फिर राजनीतिज्ञ ऊपर बैठ कर बातें करते हैं कि राष्ट्र की एकता कैसे हो? सेमिनार बुलाता है, विचार करता है।वह विचार बेकार है, उनसे कुछ हल नहीं हो सकता है। अगर देश को एक बनाना है तो देश में एक केंद्रीय सरकार के अतिरिक्त और सरकारों की कोई जरूरत नहीं है। एक सरकार के रहते ही लोकल हित समाप्त हो जाएंगे, स्थानीय हित समाप्त हो जाएंगे। फिर नर्मदा का जल गुजरात का है कि मध्यप्रदेश का, यह सवाल नहीं रहेगा।
फिर नर्मदा का जल नर्मदा का होगा। अभी बहुत झंझट है। फिर कौन सा जिला मैसूर में रहे कि महाराष्ट्र में, इस पर गोली नहीं चलेगी। क्योंकि जिला अपनी जगह है, अपनी जगह रहेगा। वह पूरे देश का होगा। एक केंद्रिय सरकार निर्मित होते ही देश एक होने लगेगा।
हां, देश के विभाजन एडमिनिस्ट्रेशन के आधार पर होने चाहिए–झोनल, चार टुकड़े हो जाएं। जोनल एडमिनिस्ट्रेशन की बात है, राजनीतिक विभाजन की बात नहीं है। इकाइयां हो जाएं, जैसे रेलवे की इकाइयां हैं। रेलवे में कोई झगड़ा नहीं है कि वेस्टर्न रेलवे और सेंट्रल रेलवे से युद्ध कर रही हो। कोई झगड़ा नहीं है, एडमिनिस्ट्रेटिव विभाजन है।देश का विभाजन प्रशासनिक होना चाहिए, राजनीतिक नहीं। पोलिटिकल विभाजन खतरनाक है। और अगर पोलिटिकल विभाजन चलता है तो एक-एक राज्य को हमें और छोटे राज्यों में तोड़ना ही पड़ेगा क्योंकि छोटे राजनीतिज्ञ छुटभय्यों के लिए क्या किया जाए? उन्हें भी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री और गवर्नर होना है। फिर उनको रोकने का कारण भी क्या है? फिर गुजरात एक क्यों हो? चार गुजरात क्यों न हों? सौराष्ट्र अलग क्यों न हो?
आखिर सौराष्ट्र के भी राजनीतिज्ञ हैं, उनको भी मजा लेने का हक है। जबसे गुजरात बना, तबसे वे बेचारे बड़े परेशान हैं। वे मुझे मिलते हैं। मेरे कई मित्र हैं उनमें। वह बड़े परेशान हैं। जब सौराष्ट्र था तो उनमें कोई मुख्यमंत्री था, कोई मंत्री था, कोई कुछ था। वह अब कुछ भी नहीं रह गए। तो उनकी चेष्टा अगर हो कि सौराष्ट्र अलग हो तो बुरा क्या है?मैं यह कहता हूं, या तो फिर देश को टुकड़ों-टुकड़ों में तोड़ दें, एक-एक गांव में एक-एक मिनिस्ट्री बना दो, तो तृप्ति हो सकती है। फिर भी होगी पक्का नहीं है, क्योंकि मोहल्ले लड़ सकते हैं। मुश्किल है मामला। राजनीति कहां रुकेगी कहना मुश्किल है।
तो एक रास्ता तो यह है कि एक-एक पंचायत एक-एक मंत्रालय हो जाए और या एक रास्ता यह है कि राष्ट्र की एक ही केंद्रीय सरकार हो। एक केंद्र होते ही देश के विभाजन की जो हमें शक्ल दिखाई पड़ती है, वह विदा हो जाएगी। चर्चिल ने हिंदुस्तान की आजादी मिलते वक्त एक बहुत दुखद भविष्यवाणी की थी। उसने कहा था कि दे तो रहे हो आजादी इनको, लेकिन बीस साल में ये वही हालत कर लेंगे जो अंग्रेजों से लेते समय मुसलमान साम्राज्य की थी कि बाप बेटे को मार रहा था, बेटा बाप को कैद कर रहा था। सारा देश खंड-खंड में बंट गया था।
दिल्ली का साम्राज्य सम्राट कहलाता जरूर था लेकिन आगरा भी वश में नहीं है। नाम ही रह गया। सारा मुल्क खंड-खंड था। एक-एक सिपहसालार, एक-एक सेनापति अपना राज्य बनाए हुए बैठा गया था। चर्चिल ने कहा था, बीस साल में, हिंदुस्तान के राजनीतिज्ञ अंग्रेजोंने मुसलमनोंसे जब भारत लिया था उसी हालत में भारत को पहुंचा देंगे।हिंदुस्तान के राजनीतिज्ञ उसकी भविष्यवाणी को पूरी करने में जी-जान से लगे हुए हैं। वे सब चेष्टा कर रहे हैं कि कहीं चर्चिल गलत न हो जाए। देश को खंड-खंड तोड़े चले जा रहे हैं। निपट मूढ़ता की बातें हैं। चंडीगढ़ कहां हो? गोलियां चलें, आदमी मरें, छोटी-छोटी बातों पर!
लेकिन उसका मूल कारण क्या है? मूल कारण है कि हम छोटे-छोटे सभी राजनीतिज्ञों को सत्ता-अधिकार का रस देने की तैयारी दिखला रहे हैं। और फिर वे ही लोग मिल कर कहते हैं कि राष्ट्र की एकता कैसे हो, तब बहुत कठिनाई हो जाती है। जैसे चोर मिल कर विचार करें कि देश में चोरी कैसे बंद हो? सब एक-दूसरे की तरफ देखें, हंसें, भाषण करें और विदा हो जाएं।
चोर कैसे देश में चोरी बंद करवाने का विचार कर सकते हैं? हां, कर सकते–इसलिए–सिर्फ–ताकि पूरा देश सुन ले कि हम भी चोरी के खिलाफ हैं, ताकि चोरी करने में सुविधा हो जाए। अक्सर चोर ऐसा करते हैं। अगर कहीं चोरी हो जाए तो जिसने चोरी की है, उसके बचने का सबसे सरल उपाय यह है कि वह जोर से चिल्लाने लगे चोर के खिलाफ कि किसने चोरी की है, पकड़ो। तो फिर उसको कोई न पकड़ेगा क्योंकि इतना तो पक्का है कि इस आदमी ने चोरी नहीं की है।
राजनीतिज्ञ चिल्लाते हैं कि देश की एकता चाहिए तो खयाल में आता है कि इन बेचारों का कोई हाथ नहीं है, ये निर्दोेष मासूम हैैं। और इनका ही हाथ है। इन्होंने देश को खंड-खंड किया है। देश खंड-खंड कहां है? सिवाय राजनीतिज्ञों के स्वार्थ के देश का कोई खंड-खंड होना नहीं है।
राजनीतिज्ञों को विदा करना पड़ेगा। छोटे-छोटे राजनीतिज्ञों की सबकी तृप्ति को रोकना पड़ेगा। एक राष्ट्र एक केंद्रीय सरकार के निर्मित होते ही बन जाएगा। एडमिनिस्ट्रेटिव–प्रशासनिक विभाजन होने चाहिए। जिले हों, प्रदेश हों, जोन हों, लेकिन उनकी कोई अपनी राजनीतिक केंद्रीय व्यवस्था न हो।
अन्यथा कोई खतरा नहीं है, कोई कठिनाई नहीं है कि मद्रास कल कहे कि हम अलग होना चाहते हैं, रोकने का क्या हक है किसी को? और बंगाल कहे कि हम अलग होना चाहते हैं, रोकने का हक क्या है किसी को?
जितनी सत्ता इन छोटे टुकड़ों के हाथ में इकट्ठी होती चली जाएगी उतना देश खंड-खंड होता चला जाएगा। और देश इतना बड़ा है–यह हमारा सौभाग्य है–लेकिन इतने बड़े देश को हम उसका बड़ा होना दुर्भाग्य में भी बदल सकते हैं। छोटे-छोटे टुकड़े भी काफी बड़े हैं हमारे। उन टुकड़ों में भी हम तृप्त हो सकते हैं।