महावीर कहते हैं, उतने ही भगवान हैं, जितनी आत्माएं हैं “ओशो”

 महावीर कहते हैं, उतने ही भगवान हैं, जितनी आत्माएं हैं “ओशो”

ओशो- तीन बातें खयाल में ले लेनी जरूरी हैं : एक तो महावीर कहते हैं, उतने ही भगवान हैं, जितनी आत्माएं हैं। भगवान एक नहीं है। एक भगवान की धारणा बहुत डिक्टेटोरियल है, बहुत तानाशाहीपूर्ण है। महावीर कहते हैं, प्रत्येक आत्मा भगवान है। जिस दिन पता चल जायेगा, उस दिन प्रगट हो जायेगी। जब तक पता नहीं चला है, तब तक वृक्ष बीज में छिपा है।अनंत भगवानों की धारणा है महावीर की, अनंत—जितने जीव हैं। आप ऐसा नहीं सोचना कि आप ही हैं। चींटी में जो जीव है, वह भी छिपा हुआ भगवान है। आज नहीं कल, वह भी प्रगट होगा। वृक्ष में जो है, वह भी भगवान है। आज नहीं कल, वह भी प्रगट होगा। समय की भर देर है। एक घड़ी जो भी छिपा है, वह प्रगट हो जायेगा।अनंत भगवानों की धारणा दुनिया में कहीं भी नहीं है। और उस के पीछे भी व्यक्ति का मूल्य है। महावीर को यह खयाल दुखद मालूम पड़ता है कि एक ब्रह्म है, जो सबका मालिक है। यह बात ही तानाशाही की मालूम पड़ती है। यह भी बात महावीर को उचित नहीं मालूम पड़ती कि “उस एक’ में ही सब खो जायेंगे। यह भी बात उचित नहीं मालूम पड़ती कि “उस एक’ ने सबको बनाया है, “वह एक’ सृष्टा है। यह बात बेहूदी है।क्योंकि महावीर कहते हैं कि अगर मनुष्य की आत्मा बनाई गई है तो वह आत्मा ही न रही, वस्तु हो गई। जो बनाई जा सकती है, वह क्या आत्मा है। महावीर कहते हैं, जो बनाई जा सकती है वह वस्तु है, आत्मा नहीं। इसलिए अगर किसी परमात्मा ने आत्माएं बनाई हैं, तो वे सब वस्तुएं हो गईं।। फिर हम परमात्मा के हाथ की गुड्डियां हो गये, कोई मूल्य न रहा।महावीर इसलिए सृष्टा की धारणा को अस्वीकार कर देते हैं। वे कहते हैं, कोई सृष्टा नहीं। क्योंकि अगर सृष्टा है तो आत्मा का मूल्य नष्ट हो जाता है। आत्मा का मूल्य ही यही है कि वह असृष्ट है, अनक्रिएटेड है। उसे बनाया नहीं जा सकता। जो भी चीज बनाई जा सकती है, वह वस्तु होगी, यंत्र होगी—कुछ भी होगी—लेकिन जीवंत चेतना नहीं हो सकती।

थोड़ा सोचें। जीवंत चेतना अगर बनाई जा सके, तो उसका मूल्य, उसकी गरिमा, उसकी महिमा—सब खो गयी। इसलिए महावीर कहते हैं, कोई सृष्टा परमात्मा नहीं है। फिर महावीर कहते हैं, जो बनाई जा सकती है, वह नष्ट भी की जा सकती है।ध्यान रहे, जो भी बनाया जा सकता है, वह मिटाया जा सकता है। अगर कोई परमात्मा है आकाश में, जिसने कहा बन जाओ और आत्माएं बन गइ*, वह किसी भी दिन कह दे कि मिट जाओ और आत्माएं मिट जाएं, तो यह मजाक हो गया, जीवन के साथ व्यंग हो गया। इसलिए महावीर कहते हैं, न तो आत्मा बनाई जा सकती और न मिटाई जा सकती। जो न बनाया जा सकता, जो न मिटाया जा सकता, उसको महावीर “द्रव्य’ कहते हैं—सब्सटेन्स।

यह उनकी परिभाषा को समझ लेना आप। द्रव्य उसको कहते हैं, जो न बनाया जा सकता और न मिटाया जा सकता है—जो है। इसलिए महावीर कहते हैं, जगत में जो भी मूल द्रव्य हैं, वे हैं सदा से। उनको किसी ने बनाया नहीं है और उनको कभी कोई मिटा भी नहीं सकेगा।आधुनिक विज्ञान महावीर से राजी है। जैनों की वजह से महावीर का विचार वैज्ञानिकों तक नहीं पहुंच पाता, अन्यथा आधुनिक विज्ञान जितना महावीर से राजी है, उतना किसी से भी राजी नहीं है। अगर आइंस्टीन को महावीर की समझ आ जाती तो आइंस्टीन महावीर की जितनी प्रशंसा कर सकता था, उतनी कोई भी नहीं कर सकता है। लेकिन जैनों के कारण बड़ी कठिनाई है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३