“कामना और प्रार्थना” जब कोई जीतकर प्रसन्न होकर लौटे, तो समझना कि वह अल्पबुद्धि है “ओशो”

 “कामना और प्रार्थना” जब कोई जीतकर प्रसन्न होकर लौटे, तो समझना कि वह अल्पबुद्धि है “ओशो”

ओशो- सुनी है हम सबने कथा, बहुत प्यारी और मधुर है। नचिकेता अपने पिता के पास बैठा है। पिता ने किया है बड़ा यज्ञ। ब्राह्मणों को दान कर रहे हैं वे। पिता ने नचिकेता से कहा है, मैं अपना सब दान कर दूंगा। छोटा बच्चा है, और छोटे बच्चों से कभी-कभी जो सवाल उठते हैं, वे बड़े गहरे और आत्यंतिक होते हैं। वह बैठा हुआ है पास में, जब ब्राह्मणों को दान दिया जा रहा है। और नचिकेता का पिता पुरानी बूढ़ी गाएं दे रहा है, जिनसे दूध मिलने को नहीं। इस तरह की चीजें दे रहा है, जिनकी अब कोई जरूरत नहीं रही। तो नचिकेता बार-बार पूछता है कि मैं भी तो आपका हूं न, तो मुझे कब दान देंगे? मुझे किसे दान देंगे? क्योंकि कहा आपने कि मैं अपना सब कुछ दे डालूंगा। मैं भी तुम्हारा बेटा हूं न!पिता को क्रोध आ जाता है। वह क्रोध में कहता है कि तुझे भी दे दूंगा; घबड़ा मत। लेकिन तुझे मृत्यु को, यम को दे दूंगा।

नचिकेता, मानकर कि यम को दान कर दिया गया, यम के द्वार पर पहुंच जाता है। लेकिन यम घर के बाहर है। तो वह तीन दिन भूखा बैठा रहता है, फिर यम आते हैं। उसका तीन दिन भूखा बैठा रहना, उस छोटे-से बच्चे का, और इतनी सरलता से मृत्यु के द्वार पर स्वयं आ जाना! क्योंकि यम का अनुभव तो यही है कि वह जिसके द्वार पर जाता है, वही घर छोड़कर भागता है। यम के द्वार पर आने वाला यह पहला ही व्यक्ति है, जो खुद खोजबीन करके आया। और फिर यह देखकर कि यम घर पर नहीं है, भूखा-प्यासा बैठा है। तो यम कहते हैं कि तू कुछ मांग ले, तू वरदान ले ले। मैं तुझ पर प्रसन्न हुआ हूं। मैं तुझे हाथी-घोड़े, धन-दौलत, सुंदर स्त्रियां, राज्य–सब तुझे दूंगा।नचिकेता कहता है, लेकिन जो धन आप देंगे, उससे मुझे तृप्ति मिल पाएगी, ऐसी, जो कभी नष्ट न हो? वह यम उदास होकर कहता है, ऐसी तो कोई तृप्ति धन से कभी नहीं मिलती, जो समाप्त न हो। वे जो स्त्रियां आप मुझे देंगे, उनका सौंदर्य सदा ठहरेगा? यम कहता है कि कुछ भी इस जगत में सदा ठहरने वाला नहीं है। वह जो आप मुझे लंबी उम्र देंगे, क्या उसके बाद फिर आप मुझे लेने न आएंगे? तो यम कहता है, यह तो असंभव है। कितनी ही हो लंबी उम्र, अंत में तो मैं आऊंगा ही। वह जो बड़ा राज्य आप मुझे देंगे, क्या उसे पाकर मैं वह पा लूंगा, ऋषियों ने जो कहा है कि जिसे पा लेने से सब पा लिया जाता है? यम कहता है, उससे तो कुछ भी नहीं मिलेगा, क्योंकि बड़े-बड़े सम्राट वह सब पा चुके हैं और फिर भी दीन-हीन मरे हैं। तो नचिकेता कहता है, ये चीजें फिर मैं न लूंगा। मुझे तो इतना ही बता दें कि मृत्यु का राज क्या है, ताकि मैं अमृत को जान सकूं।नचिकेता को बहुत समझाता है यम। यम बहुत बुद्धिमान है। मृत्यु से ज्यादा बुद्धिमान शायद ही कोई हो। अनंत उसका अनुभव है जीवन का। हर आदमी की नासमझी का भी मृत्यु को जितना पता है, उतना किसी और को नहीं होगा। क्योंकि जिंदगी भर दौड़-धूप करके हम जो इकट्ठा करते हैं, मृत्यु उसे बिखेर जाती है। और एक बार नहीं, हजार बार हमारा इकट्ठा किया हुआ मौत बिखेर देती है। हम फिर दुबारा मौका पाकर, फिर वही इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं।आदमी की नासमझी का जितना पता मौत को होगा, उतना किसी और को नहीं है। इतने लोगों की नासमझी से गुजरकर मौत समझदार हो गई हो, तो आश्चर्य नहीं। लेकिन यह बच्चा बहुत अडिग है। वह कहता है कि मुझे तो वही बता दें, जिससे अमृत को जान लूं। मृत्यु को समझा दें मुझे। और आप तो मृत्यु को जानते ही हैं, आप मृत्यु के देव हैं। आप नहीं बताएंगे, तो मुझे कौन बताएगा!

बुद्धिमान होगा नचिकेता, कृष्ण के अर्थों में। हम बुद्धिमान नहीं हो सकते; हम अल्पबुद्धि हैं। खयाल रखें, कृष्ण कह रहे हैं, अल्पबुद्धि; बुद्धिहीन भी नहीं कह रहे हैं। बुद्धिहीन भी नहीं कह रहे हैं, अल्पबुद्धि।

अगर मनुष्य बिलकुल बुद्धिहीन हो, तब तो कोई संभावना नहीं रह जाती। बुद्धि तो है; बहुत छोटी है। बड़ी हो सकती है, विकसित हो सकती है। जो बीज की तरह है, वह वृक्ष की तरह हो सकती है। जो आज बहुत छोटी है, वह कल विराट बन सकती है।

अशोक युद्ध पर गया था। अल्पबुद्धि आदमी नहीं था। कलिंग के युद्ध पर लड़ा। एक लाख आदमी मारे गए। अशोक के पहले भी सम्राट लड़े हैं, बाद में भी लड़ते रहे हैं, सदा लड़ते रहेंगे। लेकिन जो अशोक को दिखाई पड़ा, वह पहले के सम्राटों को भी कभी दिखाई नहीं पड़ा, बाद के सम्राटों को भी कभी दिखाई नहीं पड़ा।

अशोक कलिंग के युद्ध से वापस लौटा, जीतकर लौटा था, लेकिन उदास लौटा।

जीतकर दुनिया में बहुत कम लोग हैं, जो उदास लौटते हैं। जीतकर तो आदमी प्रसन्न होकर लौटता है, अल्पबुद्धि का लक्षण है वह। जब कोई जीतकर प्रसन्न होकर लौटे, तो समझना कि वह अल्पबुद्धि है। और जब कोई हारकर प्रसन्न लौट आए, तो समझना कि वह अल्पबुद्धि नहीं है। जीतकर कोई उदास लौटे, तो समझना कि वह अल्पबुद्धि नहीं है। और जीतकर कोई हंसता हुआ लौटे, तो समझना कि वह अल्पबुद्धि है।अशोक उदास लौट आया। उसे नाम ही उसके माता-पिता ने अशोक इसलिए दिया था कि वह कभी उदास नहीं होता था; सदा प्रफुल्लित था, चियरफुल था। उसे नाम ही इसलिए दिया था कि वह सदा आनंदित और प्रफुल्लित रहता था। लेकिन इतने बड़े राज्य को जीतकर लौटा है, कलिंग की विजय करके लौटा है, और उदास लौटा आया है! चिंता फैल गई है। उसके मित्रों ने पूछा, इतने उदास हो जीतकर! हार जाते तो क्या होता? स्वभावतः, अल्पबुद्धि के लिए यह सवाल उठा होगा। जीतकर इतने उदास हो, हार जाते तो क्या होता!

अशोक ने कहा, युद्ध अब असंभव है, एक अनुभव काफी सिद्ध हुआ। अब नहीं युद्ध कर सकूंगा, अब नहीं जीतने जा सकूंगा। क्योंकि कितनी कामना की थी कि कलिंग को जीत लूंगा, तो इतना आनंद मिलेगा। लेकिन कलिंग हाथ में आ गया, आनंद तो हाथ में नहीं आया। हालांकि मेरा मन फिर धोखा दे रहा है कि अभी और भी जीतने को जगह पड़ी है, उनको भी जीत लो। लेकिन इस मन की अब दुबारा नहीं मानूंगा। मानकर देख लिया एक बार; एक लाख आदमियों की लाशें बिछा दीं। सिर्फ खून बहा; हाथ में खून के दाग लगे। करुण चीत्कारें सुनाई पड़ीं; रोना; और न मालूम कितने घरों के दीए बुझ गए। और इस मन ने मुझे कहा था, आनंद मिलेगा; वह मैं भीतर खोज रहा हूं, वह मुझे कहीं मिला नहीं। लाखों लोग मर गए, लाखों परिवार उजड़ गए, और जिस सुख के लिए इस मन ने मुझे कहा था, उसकी रेखा भी मुझे दिखाई नहीं पड़ती। युद्ध समाप्त हो गया; मेरे लिए अब कोई युद्ध नहीं है।

और उसी दिन से अशोक ने भिक्षु की तरह रहना शुरू कर दिया। उसने कहा कि जब युद्ध मेरे लिए नहीं है, तो अब सम्राट होने का कोई अर्थ नहीं रहा। वह तो युद्ध के साथ जुड़ा हुआ भाव था–सम्राट होने का।

एच.जी.वेल्स ने विश्व इतिहास में लिखा है कि दुनिया में बहुत सम्राट हुए, लेकिन अशोक जैसा चमकता हुआ तारा विश्व के इतिहास में दूसरा नहीं है। कारण है उसका। महाबुद्धि है। और उसके महाबुद्धि होने की बात क्या है? राज क्या है? राज यह है कि युद्ध के एक अनुभव ने उसे मन का पूरा रहस्य समझा दिया।

आपने कितनी बार क्रोध किया है, लेकिन क्रोध का रहस्य आप समझ पाए? कितनी बार कामवासना में उतरे हैं, कामवासना का रहस्य समझ पाए? कितनी बार प्रेम किया है, प्रेम का रहस्य समझ पाए? कितनी बार घृणा की है, घृणा का रहस्य समझ पाए?

नहीं, रोज वही करते रहे हैं, लेकिन हाथ में कोई भी निष्पत्ति, कोई भी कनक्लूजन नहीं है। हाथ खाली का खाली है, और कल आप फिर बच्चे जैसा ही व्यवहार करेंगे। अल्पबुद्धि है चित्त।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३

गीता-दर्शन–भाग 3
अध्याय—7 ( प्रवचन—9)