अमेरिका के मनोवैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया है कि न्यूयार्क जैसे नगर में केवल अठारह प्रतिशत लोग मानसिक रूप से स्वस्थ कहे जा सकते हैं जाने वजह “ओशो”

 अमेरिका के मनोवैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया है कि न्यूयार्क जैसे नगर में केवल अठारह प्रतिशत लोग मानसिक रूप से स्वस्थ कहे जा सकते हैं जाने वजह “ओशो”

ओशो- पिछले पहले महायुद्ध में तीन करोड़ लोगों की हमने हत्या की थी। और उसके बाद–शांति और प्रेम की बातें करने के बाद दूसरे महायुद्ध में हमने साढ़े सात करोड़ लोगों की हत्या की। और उसके बाद भी चिल्ला रहे हैं बट्रेंड रसेल से लेकर विनोबा तक सारे लोग कि शांति चाहिए, शांति चाहिए, और हम तीसरे महायुद्ध की तैयारी कर रहे हैं। और तीसरा महायुद्ध दूसरे महायुद्ध को बच्चों का खेल बना देगा।

आइंस्टीन से किसी ने पूछा था कि तीसरे महायुद्ध में क्या होगा ? आइंस्टीन ने कहा कि तीसरे के बाबत कुछ भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन चौथे के संबंध में मैं कुछ कह सकता हूं। पूछने वालों ने कहा, आश्चर्य! आप तीसरे के संबंध में नहीं कह सकते तो चौथे के संबंध में क्या कहेंगे ?आइंस्टीन ने कहा, चौथे के संबंध में एक बात निश्चित है कि चौथा महायुद्ध कभी नहीं होगा। क्योंकि तीसरे के बाद किसी आदमी के बचने की कोई उम्मीद नहीं।

यह मनुष्य की सारी नैतिक और धार्मिक शिक्षा का फल है। मैं आपसे कहना चाहता हूं, इसकी बुनियादी वजह दूसरी है। जब तक हम मनुष्य के संभोग को सुव्यवस्थित, मनुष्य के संभोग को आध्यात्मिक, जब तक हम मनुष्य के संभोग को समाधि का द्वार बनाने में सफल नहीं होते, तब तक अच्छी मनुष्यता पैदा नहीं हो सकती है। रोज बदतर से बदतर मनुष्यता पैदा होगी, क्योंकि आज के बदतर बच्चे कल संभोग करेंगे और अपने से बदतर लोगों को जन्म दे जाएंगे। हर पीढ़ी नीचे उतरती चली जाएगी, यह बिलकुल ही निश्चित है, इसकी प्रोफेसी की जा सकती है, इसकी भविष्यवाणी की जा सकती है।

और अब तो हम उस जगह पहुंच गए हैं कि शायद और पतन की गुंजाइश नहीं है। करीब-करीब सारी दुनिया एक मैड हाउस, एक पागलखाना हो गई है।अमेरिका के मनोवैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया है कि न्यूयार्क जैसे नगर में केवल अठारह प्रतिशत लोग मानसिक रूप से स्वस्थ कहे जा सकते हैं। अठारह प्रतिशत ! अठारह प्रतिशत लोग मानसिक रूप से स्वस्थ हैं, तो बयासी प्रतिशत लोगों की क्या हालत है ? बयासी प्रतिशत लोग करीब-करीब विक्षिप्त होने की हालत में हैं।

आप कभी अपने संबंध में कोने में बैठ कर विचार करना, तो आपको पता चलेगा कि पागलपन कितना है भीतर ! किसी तरह दबाए हैं पागलपन को, किसी तरह सम्हल कर चले जा रहे हैं, वह बात दूसरी है। जरा सा कोई धक्का दे दे, और कोई भी आदमी पागल हो सकता है।

यह संभावना है कि सौ वर्ष के भीतर सारी मनुष्यता एक पागलघर बन जाए, सारे लोग करीब-करीब पागल हो जाएं। फिर हमें एक फायदा होगा कि पागलों के इलाज की कोई जरूरत न रहेगी। एक फायदा होगा कि पागलों के चिकित्सक नहीं होंगे। एक फायदा होगा कि कोई अनुभव नहीं करेगा कि कोई पागल है। क्योंकि पागल का पहला लक्षण यह है कि वह कभी नहीं मानता कि मैं पागल हूं। इतना ही फायदा होगा।

लेकिन यह रुग्णता बढ़ती चली जाती है। यह रोग, यह अस्वास्थ्य, यह मानसिक चिंता और मानसिक अंधकार बढ़ता चला जाता है। क्या मैं आपसे कहूं कि सेक्स को स्प्रिचुएलाइज किए बिना, संभोग को आध्यात्मिक बनाए बिना कोई नई मनुष्यता पैदा नहीं हो सकती है?

इन तीन दिनों में यही थोड़ी सी बातें मैंने आपसे कहीं। निश्चित ही एक नये मनुष्य को जन्म देना है। मनुष्य के प्राण आतुर हैं ऊंचाइयों को छूने के लिए, आकाश में उठ जाने के लिए, चांद-तारों जैसे रोशन होने के लिए, फूलों जैसे खिल जानें के लिए, नृत्य के लिए, संगीत के लिए, आदमी की आत्मा रोती है और प्यासी है। और आदमी कोल्हू के बैल की तरह एक चक्कर में घूमता है और उसी में समाप्त हो जाता है, चक्कर के बाहर नहीं उठ पाता है! क्या है कारण?

कारण एक ही है। मनुष्य के जन्म की प्रक्रिया बेहूदी है, एब्सर्ड है। मनुष्य के पैदा होने की विधि पागलपन से भरी हुई है। मनुष्य के संभोग को हम द्वार नहीं बना सके समाधि का, इसलिए। मनुष्य का संभोग समाधि का द्वार बन सकता है।

इन तीन दिनों में इसी छोटे से मंत्र पर मैंने सारी बातें कहीं। और अंत में एक बात दोहरा दूं और आज की चर्चा मैं पूरी करूं।

मैं यह कह देना चाहता हूं कि जीवन के सत्यों से आंखें चुराने वाले लोग मनुष्य के शत्रु हैं। जो आपसे कहे कि संभोग और सेक्स की बात विचार भी नहीं करनी चाहिए, वह आदमी मनुष्य का दुश्मन है। क्योंकि ऐसे ही दुश्मनों ने हमें सोचने नहीं दिया। अन्यथा यह कैसे संभव था कि हम आज तक वैज्ञानिक दृष्टि न खोज लेते और जीवन को नया करने का प्रयोग न खोज लेते !

जो आपसे कहे कि सेक्स का धर्म से कोई संबंध नहीं है, वह आदमी सौ प्रतिशत गलत बात कहता है। क्योंकि सेक्स की ऊर्जा ही परिवर्तित और रूपांतरित होकर धर्म के जगत में प्रवेश पाती है। वीर्य की शक्ति ही ऊर्ध्वस्वी होकर मनुष्य को उन लोकों में ले जाती है, जिनका हमें कोई भी पता नहीं है, जहां कोई मृत्यु नहीं है, जहां कोई दुख नहीं है, जहां आनंद के अतिरिक्त और कोई अस्तित्व नहीं है। उस सत्-चित्-आनंद में ले जाने वाली शक्ति और ऊर्जा किसके पास है और कहां है?

हम उसे व्यय कर रहे हैं। हम उन पात्रों की तरह हैं जिनमें छेद हैं, जिन्हें हम कुओं में डालते हैं खींचने के लिए। ऊपर तक पात्र तो आ जाता है, शोरगुल भी बीच में बहुत होता है और पानी गिरता है और लगता है कि पानी आता होगा। लेकिन पानी सब बीच में गिर जाता है, खाली पात्र हाथ में वापस आ जाते हैं।

हम उन नावों की तरह हैं जिनमें छेद हैं। हम नावों को खेते हैं–सिर्फ डूबने के लिए; नावें किसी किनारे पर नहीं पहुंचा पातीं, सिर्फ मझधार में डुबा देती हैं और नष्ट कर देती हैं।

और ये सारे छिद्र मनुष्य की सेक्स ऊर्जा के गलत मार्गों से प्रवाहित और बह जाने के कारण हैं। और उन गलत मार्गों पर बहाने वाले लोग वे नहीं हैं जिन्होंने नंगी तस्वीरें लटकाई हैं, वे नहीं हैं जिन्होंने नंगे उपन्यास लिखे हैं, वे नहीं हैं जो नंगी फिल्में बना रहे हैं।

मनुष्य की ऊर्जा को विकृत करने वाले वे लोग हैं जिन्होंने मनुष्य को सेक्स के सत्य से परिचित होने में बाधा दी है। और वे ही लोगों के कारण ये नंगी तस्वीरें बिक रही हैं, नंगी फिल्में बिक रही हैं, लोग नंगे क्लबों को ईजाद कर रहे हैं और गंदगी के नये-नये और बेहूदगी के नये-नये रास्ते निकाल रहे हैं।

किनके कारण ? ये उनके कारण जिनको हम साधु और संन्यासी कहते हैं! उन्होंने इनके बाजार का रास्ता तैयार किया है। अगर गौर से हम देखें तो वे इनके विज्ञापनदाता हैं, वे इनके एजेंट हैं।

एक छोटी सी कहानी, मैं अपनी बात पूरी कर दूंगा।’

एक पुरोहित जा रहा था अपने चर्च की तरफ। दूर था गांव, भागा हुआ चला जा रहा था। तभी उसे पास की खाई में जंगल में एक आदमी पड़ा हुआ दिखाई पड़ा– घावों से भरा हुआ, खून बह रहा है, छुरी उसकी छाती में चुभी है।

पुरोहित को खयाल आया कि चलूं, मैं इसे उठा लूं। लेकिन उसने देखा कि चर्च पहुंचने में देर हो जाएगी और वहां उसे व्याख्यान देना है और लोगों को समझाना है। आज वह प्रेम के संबंध में ही समझाने जाता था। आज उसने विषय चुना थाः लव इज़ गाँड। क्राइस्ट के वचन को चुना था कि ईश्वर, परमात्मा प्रेम है। वह यही समझाने जा रहा था, वह उसी का हिसाब लगाता हुआ भागा जा रहा है। लेकिन उस आदमी ने आंखें खोलीं और उसने चिल्लाया कि पुरोहित, मुझे पता है कि तू प्रेम पर बोलने जा रहा है। मैं भी आज सुनने आने वाला था। लेकिन दुष्टों ने मुझे छुरी मार कर यहां पटक दिया है। लेकिन याद रख, अगर मैं जिंदा रह गया तो गांव भर में खबर कर दूंगा कि आदमी मर रहा था और यह आदमी प्रेम पर व्याख्यान देने चला गया! देख, आगे मत बढ़ !

इससे पुरोहित को थोड़ा डर लगा। क्योंकि अगर यह आदमी जिंदा रह जाए और गांव में खबर कर दे, तो लोग कहेंगे कि प्रेम का व्याख्यान बड़ा झूठा था, आपने इस आदमी की फिक्र न की जो मरता था! तो मजबूरी में उसे नीचे उतर कर उसके पास जाना पड़ा। वहां जाकर उसका चेहरा देखा तो वह बहुत घबराया। चेहरा तो पहचाना हुआ सा मालूम पड़ता था ! उसने कहा, ऐसा मालूम होता है मैंने तुम्हें कहीं देखा है। और उस मरणासन्न आदमी ने कहा, जरूर देखा होगा। मैं शैतान हूं, और पादरियों से अपना पुराना नाता है। तुमने नहीं देखा होगा तो किसने मुझे देखा होगा !

तब उसे खयाल आया कि वह तो शैतान है, चर्च में उसकी तस्वीर लटकी हुई है। उसने अपने हाथ अलग कर लिए और कहा कि मर जा! शैतान को तो हम चाहते हैं कि वह मर ही जाए। अच्छा हुआ कि तू मर जा। मैं तुझे बचाने का क्यों उपाय करूं? मैंने तेरा खून भी छू लिया, यह भी पाप हुआ। मैं जाता हूं।वह शैतान जोर से हंसा, उसने कहा, याद रखना, जिस दिन मैं मर जाऊंगा, उस दिन तुम्हारा धंधा भी मर जाएगा। मेरे बिना तुम जिंदा नहीं रह सकते हो। मैं हूं, इसलिए तुम जिंदा हो। मैं तुम्हारे धंधे का आधार हूं। मुझे बचाने की कोशिश करो! नहीं तो जिस दिन शैतान मर जाएगा, उसी दिन पुरोहित, पंडा, पुजारी सब मर जाएगा; क्योंकि दुनिया अच्छी हो जाएगी, पंडे, पुजारी, पुरोहित की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी।

पुरोहित ने सोचा और घबराया कि यह तो बहुत बेसिक, बहुत बुनियादी बात कह रहा है वह आदमी। उसने उसे तत्काल कंधे पर उठा लिया और कहा, प्यारे शैतान, घबराओ मत! मैं ले चलता हूं अस्पताल, तुम्हारा इलाज करवाऊंगा, तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगे। लेकिन देखो, मर मत जाना। तुम ठीक कहते हो, तुम मर गए तो हम बिलकुल बेकार हो जाने वाले हैं।

हमें खयाल भी नहीं आ सकता कि पुरोहित के धंधे के पीछे शैतान है। हमें यह भी खयाल नहीं आ सकता कि शैतान के धंधे के पीछे पुरोहित है। यह जो शैतान का धंधा चल रहा है–सेक्स का शोषण चल रहा है सारी दुनिया में, हर चीज के पीछे सेक्स का शोषण चल रहा है–हमें खयाल भी नहीं आ सकता कि पुरोहित का हाथ है इसके पीछे। पुरोहित ने जितनी निंदा की है, सेक्स उतना आकर्षक हो गया है। फिर उसने जितने दमन के लिए कहा है, आदमी उतना भोग में गिर गया है। पुरोहित ने जितना इनकार किया कि सेक्स के संबंध में सोचना ही मत, सेक्स उतनी ही अनजान पहेली हो गई और हम उसके संबंध में कुछ भी करने में असमर्थ हो गए।

नहीं! ज्ञान चाहिए। ज्ञान शक्ति है। और सेक्स का ज्ञान बड़ी शक्ति बन सकता है। अज्ञान में जीना हितकर नहीं है। और सेक्स के अज्ञान में जीना तो बिलकुल हितकर नहीं है।

यह भी हो सकता है कि हम न जाएं चांद पर। कोई जरूरत नहीं है चांद पर जाने की। चांद को जान लेने से कोई मनुष्य जाति का बहुत हित नहीं हो जाएगा। यह भी जरूरी नहीं है कि हम पैसिफिक महासागर की गहराइयों में उतरें पांच मील, जहां कि सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंचती। उसको जान लेने से भी मनुष्य जाति का कोई बहुत परम मंगल हो जाने वाला नहीं है। यह भी जरूरी नहीं है कि हम एटम को तोड़ें और पहचानें।

लेकिन एक बात बिलकुल जरूरी है, सबसे ज्यादा जरूरी है, अल्टीमेट कंसर्न की है, और वह यह है कि हम मनुष्य के सेक्स को ठीक से जान लें और समझ लें, ताकि नये मनुष्य को जन्म देने में सफल हो सकें।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३

संभोग से समाधि की ओर प्र.4 (पार्ट 4)