मुंह के साथ मस्तिष्क के गहरे आंतरिक संबंध “ओशो”

 मुंह के साथ मस्तिष्क के गहरे आंतरिक संबंध “ओशो”

ओशो– रूस के बहुत बड़े अध्यात्मविद् और मिस्टिक जॉर्ज गुरजिएफ ने अपनी आध्यात्मिक खोज— यात्रा के संस्मरण ‘मीटिंग्स विद दि रिमार्केबल मेन’ नामक पुस्तक में लिखे हैं। एक दरवेश फकीर से उनकी काफी चर्चा भोजन को चबाने के संबंध में तथा योग के प्राणायाम व आसनों के संबंध में हुई जिससे वे बड़े प्रभावित भी हुए। दरवेश ने उन्हें कहा कि भोजन को कम चबाना चाहिए कभी— कभी निगल जाना चाहिए; इससे पेट शक्तिशाली होता है। इसके साथ ही दरवेश ने उन्हें किसी भी प्रकार के श्वास के अभ्यास को न करने का सुझाव दिया। दरवेश का कहना था कि प्राकृतिक श्वास—प्रणाली में कुछ भी परिवर्तन करने से सारा व्यक्तित्व अस्तव्यस्त हो जाता है और उसके घातक परिणाम होते हैं इस संबंध में आपका क्या मत है?

इसमें पहली बात तो यह है कि यह तो ठीक है कि अगर भोजन चबाया न जाए, तो पेट शक्तिशाली हो जाएगा। और जो काम मुंह से कर रहे हैं वह काम भी पेट करने लगेगा। लेकिन इसके परिणाम बहुत घातक होंगे।

पहली तो बात यह है कि मुंह जो है वह पेट का हिस्सा है। वह पेट से अलग चीज नहीं है। वह पेट की शुरुआत है। पेट और मुंह दो चीजें नहीं हैं, दो अलग चीजें नहीं हैं; मुंह पेट की शुरुआत है। तो कहां से पेट शुरू होता है, यह जिस आदमी से गुरजिएफ की बात हुई उस दरवेश को कुछ पता नहीं है। पेट कहां से शुरू होता है? पेट मुंह से शुरू होता है। और अगर मुंह का काम आपने नहीं किया.. .उसका काम है और अनिवार्य काम है। अगर उसे आप छोड़ दें तो पेट उस काम को करने लगेगा। लेकिन उस करने में दोहरे नुकसान होंगे।

मुंह के साथ मस्तिष्क के आंतरिक संबंध:

एक नुकसान तो यह होगा कि शरीर का सारा काम बंटा हुआ है। एक तरह का डिवीजन ऑफ लेबर है, श्रम विभाजित है शरीर में। अगर हम इस श्रम—विभाजन को तोड़ दें और एक ही अंग से और काम भी लेने लगें, तो वह अंग तो शक्तिशाली हो जाएगा, लेकिन जिस अंग से हम काम लेना बंद कर देंगे वह एकदम शक्तिहीन हो जाएगा। और पेट अगर बहुत शक्तिशाली हो तो आप एक पशु तो हो जाएंगे बड़े शक्तिशाली, लेकिन अगर मुंह कमजोर हो जाए तो आप मनुष्य नहीं रह जाएंगे। क्योंकि मुंह की कमजोरी के बहुत घातक परिणाम हैं। क्योंकि मुंह के साथ हमारे मस्तिष्क के बहुत आंतरिक संबंध हैं, जैसे पेट के संबंध हैं, वैसे मस्तिष्क के संबंध हैं। और हमारे मुंह के शक्तिशाली होने पर निर्भर करता है कि हमारे मस्तिष्क के स्नायु शक्तिशाली हों।

तो जैसे एक आदमी अगर गूंगा है, बोल नहीं सकता, तो उसके मस्तिष्क के बहुत से हिस्से सदा के लिए बेकार रह जाएंगे। गूंगा आदमी बुद्धिमान नहीं हो सकता। अंधा आदमी बहुत बुद्धिमान हो जाएगा। गूंगा आदमी ईडियट हो जाएगा, उसमें बुद्धि विकसित नहीं होगी। क्योंकि उसके मुंह के साथ बहुत से उसके मस्तिष्क के जोड़ हैं। और मुंह के चलाने के साथ आपके पेट का चलना शुरू हो जाता है। अगर आप मुंह न चलाएं, तो पेट का जो चलना शुरू होना है वह भी बहुत कठिन बात है। और हमारे मुंह के पास कुछ चीजें हैं, जो पेट के पास नहीं हैं।

प्रश्न: सलाइवा?

हां, सलाइवा; जो कि नहीं है पेट के पास और उसके लिए उसे अतिरिक्त श्रम करना पड़े। और यह बात सच है कि कोई अंग अगर काम करे तो शक्तिशाली होता है। लेकिन अगर उसे ऐसा काम करना पड़े जो कि उसका नहीं है, तो क्षीण होता है; क्योंकि उस पर अतिरिक्त भार है।

और भी बड़े मजे की बात है कि पेट के बहुत से काम को जब हम विभाजित कर देते हैं— कुछ मुंह कर लेता है, कुछ पेट कर लेता है—तो हमारी जो ऊर्जा है, हमारी जो एनर्जी है, वह पेट पर केंद्रित नहीं हो पाती। वह पेट से मुक्त होना शुरू होती है। इसलिए जैसे ही आप खाना खाते हैं, नींद आनी शुरू हो जाती है। क्योंकि आपके मस्तिष्क में जो शक्ति थी वह भी पेट अपने भीतर बुला लेता है। वह कहता है कि अब उसे भी काम में लगा देना है। क्योंकि खाना बहुत बुनियादी तत्व है जीवन के लिए। सोचना वगैरह गौण बातें हैं, इनमें पीछे लगेंगे, अभी पेट को पचा लेने दें। तो जैसे ही आप खाना खाते हैं, वैसे ही मन सोने का होने लगता है। उसका कारण यह है कि मस्तिष्क से सारी ऊर्जा वापस बुला ली गई।

पेट पर जितना काम बढ़ेगा, मस्तिष्क उतना कमजोर होता चला जाएगा। क्योंकि उसको उतनी ऊर्जा की जरूरत पड़ेगी। और जो नॉन—एसेंशियल हिस्से हैं जीवन में, वह उनसे खींच लेगा। मस्तिष्क जो है वह लग्जूरियस हिस्सा है। उसके बिना जानवर काम चला रहे हैं। वह कोई जीवित होने के लिए जरूरी हिस्सा नहीं है। लेकिन पेट जीवित होने के लिए जरूरी हिस्सा है। उसके बिना कोई काम नहीं चला रहा, वृक्ष भी काम नहीं चला सकता उसके बिना। तो वह बहुत एसेंशियल केंद्रीय तत्व है।

तो हमारे मस्तिष्क वगैरह को शक्ति तभी मिलती है, जब वह पेट से बचती है। अगर वह पेट में लग जाए तो वह मस्तिष्क को नहीं मिलती। इसलिए गरीब कौम के पास मस्तिष्क धीरे— धीरे क्षीण होने लगता है, विकसित नहीं होता। क्योंकि उसकी पेट पर सारी की सारी शक्ति लग जाती है। और उसके पेट से ही कुछ नहीं बचता कि वह कहीं और जा सके, शरीर के और हिस्सों में फैलाव हो सके।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ 
जिन खोजा तिन पाइयाँ