ओशो- एक छोटी सी कहानी है…एक बहुत बड़ा जौहरी मर गया। उसकी पत्नी ने बहुत दिनों तक कुछ पत्थरों को कीमती मान कर, समझ कर तिजोरी में छिपा रखा था। जौहरी के मर जाने पर भी वह निश्चित थी अपनी संपत्ति के लिए। बहुत संपत्ति उसके पास थी। लड़का था एक, बड़ा होगा। बहुत संपत्ति उसके पास है। कोई भय का कारण नहीं है। लड़का बड़ा हुआ और एक दिन उसने कहा कि जाओ और किसी जौहरी को दिखाओ। जो पत्थर हमारे पास हैं, बहुमूल्य हैं। थोड़ा-थोड़ा उनमें से बेचें, तुम्हारी शिक्षा और तुम्हारे जीवन के लिए व्यवस्था हो।
वह अपने पति के पुराने परिचित जौहरी के पास गया अपनी पोटली लेकर। बहुत सम्हाल कर, जाकर उसने पोटली खोली और कहा कि इनमें से कुछ बेचना शुरू करें और हमें सुविधा हो।
उस जौहरी ने देखा, छुआ भी नहीं, कहा पोटली बंद कर लो, अभी बाजार भाव अच्छे नहीं हैं। जब बाजार-भाव अच्छे होंगे तो जरूर बेच देंगे। और एक काम करो, तुम्हारे पति का मेरे ऊपर बहुत ऋण है। उनसे ही मैंने बहुत कुछ सीखा था।
तो तुम घंटे को दुकान पर आने लगो और जो कुछ मैं जानता हूं इस जौहरी की कला में तुम सीख लो। उस लड़के ने दूसरे दिन से उस दुकान पर जाना शुरू कर दिया।
एक वर्ष बीतने पर अचानक सुबह ही सुबह वह जौहरी के घर आया और उसने कहा कि अब बाजार के भाव अच्छे हैं, तुम अपनी तिजोरी खोलो, अपने पत्थर निकाल लाओ।
वह मां और बेटे बड़ी खुशी से तिजोरी खोले, पोटली खोली। उस लड़के ने पोटली के पत्थर देखे, पोटली बांधी और बाहर खोली। उस लड़के ने पोटली के पत्थर देखे, पोटली बांधी और बाहर जाकर कचरे-घर में फेंक आया।
मां एकदम पागल हो गई। उसने कहाः तुमने यह क्या किया? उस लड़के ने कहाः वह सब नकली कांच के टुकड़े हैं।
लेकिन जब तक वह असली पत्थर थे तो तिजोरी में थे।
जब तक सपना सत्य मालूम होता था तो उस पर ताला था, उसकी सुरक्षा थी और जब ये कांच के टुकड़े हो गए, सत्य न रहे तो उनका निवास घूरे पर, कचरे पर हो गया।
लेकिन अगर वर्ष भर पहले उस जौहरी ने कहा होता कि कांच के टुकड़े हैं तो विश्वास न आता। विश्वास कैसे आता? यही ख्याल उठता कि शायद छीन-झपट लेने का इरादा है।
कांच के टुकड़े बता कर सस्ते में खरीद ने का विचार है। शायद धोखा है कोई। इसलिए उस जौहरी ने नहीं कहा कि कांच के टुकड़े हैं। कहा कि वर्ष भर आओ, सीखो, समझो।
मैं भी आपसे नहीं कहना चाहता कि जो आपका जीवन है, वह मेरे कहने से आप मान लें कि छाया है और माया है। मैं भी आपसे कहूंगा कि कुछ सीखें, जौहरी की कला सीखें, कुछ परखना सीखें तो पहचानना कठिन नहीं होगा कि कौन से कांच के टुकड़े है और कौन से हीरे हैं।
और जिस दिन आपको दिखाई पड़ना शुरू हो जाए कि कांच के टुकड़े क्या हैं, उस दिन तिजोरियों में उनको सम्हाल कर रखने का न कोई सवाल है, न प्रश्न है। उस दिन उनका आवास वहीं घूरे पर, कचरे के ढेर पर होगा।
हमारे जीवन में बहुत कुछ है जो कचरे के ढेर पर होने लायक है, लेकिन उसे हम तिजोरी में सम्हाल कर रखे हैं, क्योंकि सपना सत्य मालूम होता है, कांच के टुकड़ों में हीरे होने का भ्रम है। मैं नहीं कहता।
बुद्ध कहते हों, महावीर कहते हों, रामकृष्ण कहते हों, किसी के कहने को कभी मत मानना क्योंकि जौहरी धोखा दे सकते हैं। और आपके असली हीरे हो, और कोई कांच के टुकड़े बना कर, बात कर फिंकवा दे, इस भ्रम में कभी नहीं पड़ना।
और इसलिए मैं कहता हूं कि नहीं पड़ना तो आप हंसते हैं, हालांकि आप सब होशियार हैं और कभी नहीं पड़ते हैं। किसी के धोखे में आप पड़ते नहीं।
राम के, कृष्ण के, बुद्ध के, महावीर के धोखे में अगर आप पड़ गए होते तो इतनी तिजोरियां न होती, इतने ताले न होते, इतने उन पर पहरे न होते।
कभी पड़े भी नहीं धोखे में, कोई कभी पड़ता भी नहीं। कभी कोई भूल से न पड़ जाए, इसलिए मैं प्रार्थना भी करता हूं। लेकिन कुछ परखना सीखें।