Diwali 2024: सफाई का मतलब जो अनावश्यक हैं उसे छोड़ते जाना.. जो आवश्यक है उसे सजोते रहना “ओशो”

 Diwali 2024: सफाई का मतलब जो अनावश्यक हैं उसे छोड़ते जाना.. जो आवश्यक है उसे सजोते रहना “ओशो”

ओशो– सफाई सृष्टि का सब से महत्वपूर्ण अंग है। सृष्टि का सफाई का इंतजाम भी इतना पुख्ता होता है …इतना पक्का होता है की उसे जो चीजें यहां चाहिए …वहीं रह सकती है।
हम भी प्रकृति के लिए एक वस्तु की तरह ही है। मानव प्रकृति की एक ऐसी आखिरी कड़ी है जो शरीर को पा कर वह जीता है उसे उसी शरीर को छोड़कर फिर से प्रकृति में समा जाना होता है….एक हो जाना होता है। प्रकृति इस का भी संतुलन रखती है। आप संसार में कभी न पाओंगे की कुछ असंतुलित घट रहा है। प्रकृति में यदि पतझड़ है तो बरसात भी है जो बृक्ष से गिरे सभी पत्तों को बहाकर ले जाती है । आप देखना यहां भी असंतुलन होगा वहां मानव का ही हाथ होगा।
यदि प्रकृति केवल अच्छा ही चाहती तो संतो की आयु सबसे ज्यादा होती और असंत को जल्दी ले जाती।
वह उस असंत का शरीर जल्दी भी ले तो भी वह फिर शरीर धारण कर वहीं करने लगेगा। वह सब उसे मालूम है।
प्रकृति सब को एक जैसा …चाहे वह साधु हो या असाधु अवसर देती है की आओं मुझ मे समा जाओं…यही मुक्ति है, यही मोक्ष है।
सभी संत प्रकृति के इस स्वभाव को जानते है इसलिए वह किसी भी बात का विरोध नहीं करते कोई झूठा जाल नही बनाते है। कबीर साहेब ने भी इस प्रकृति के स्वभाव को समझा और कहाः
पानी वाढ़ै नाव में, घर में बाढे दाम।
दोऊ हाथ उलिचिए यही सयानों काम।।
कबीर कहते है जिस प्रकार नाव में पानी आ जाए उसी प्रकार यदि अपना दाम जो धन से बढता है वह भी बढने लगे तो दोनों हाथ उलिचिए यही है सयानपत्त यानि बुद्धिमत्ता है।
मतलब बुरे का तो ठीक यदि अच्छाई भी बढे तो भी उलिच के बाहर फेक देना। यही प्रकृति का भी नियम है। सफाई आवश्यक है। बाहर से भी और भीतर से भी …दिवाली के दिनों में बाहर की सफाई से चूक भी जाओ तो कोई बात नहीं मगर भीतर की सफाई….. मतलब अपने विचारों की शुन्यता ,शुद्धता को बढ़ना
वहीं असली सफाई है।
सफाई का मतलब जो अनावश्यक हैं उसे छोडते जाना… जो आवश्यक है उसे सजोते रहना…बस इतना ही…इस लिए अपने आप को बाहर भीतर देख लेना ही कुछ भी अनावश्यक तो नहीं…मिल जाए तो फौरन सफाई कर देना…तभी शुद्धि बरकरार रहेगी..।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३