Diwali 2024: हमारी सारी जीवन-ऊर्जा बाहर की तरफ यात्रा कर रही है

 Diwali 2024: हमारी सारी जीवन-ऊर्जा बाहर की तरफ यात्रा कर रही है

परमात्मा किसी को कम और ज्यादा देता नहीं। उसका सूरज सबके लिए उगता है। उसकी आंखों में न कोई छोटा है न कोई बड़ा है। न खुद जगमगाए बल्कि इनकी जगमगाहट से और भी लोग जगमगाएं। दीयों से दीये जलते चले गए। ज्योति से ज्योति जले! परमात्मा की तरफ से प्रत्येक को बराबर मिला है फिर हम अंधेरे में क्यों हैं?

ओशो- हम दीपावली अमावस की रात को मनाते हैं! दीयों की पंक्तियां बाहर जला लेते हैं, पर दीये तो भीतर नहीं जा सकते। भीतर की अमावस तो अमावस ही रहेगी। धोखे छोड़ो! इसे स्वीकार करो कि तुम बुझे हुए दीपक हो। अपने ही कारण तुम बुझे हुए हो। अपने ही कारण भीतर प्रकाश नहीं जागा। कहां चूक हो गई है?

वस्तुत: हमारी सारी जीवन-ऊर्जा बाहर की तरफ यात्रा कर रही है। इस बहिर्यात्रा में ही हम भीतर अंधेरे में पड़े हैं। यह ऊर्जा भीतर की तरफ लौटे तो यही ऊर्जा प्रकाश बनेगी। तुम्हारा सारा प्रकाश बाहर पड़ रहा है। सबको देख लेते हो, अपने प्रति अंधे रह जाते हो। जिसने स्वयं को न देखा, उसने कुछ भी न देखा। तुम्हारे भीतर का दीया कैसे जले, सच्ची दीपावली कैसे पैदा हो?
उसके सूत्र हैं बड़े मधु-भरे! पीओगे तो जी उठोगे। ध्यान धरोगे इन पर, संभल जाओगे। डुबकी मारोगे इनमें, तो तुम जैसे हो वैसे मिट जाओगे और तुम्हें जैसा होना चाहिए, वैसे ही प्रकट हो जाओगे। सूत्र यह है कि जिस प्रकाश को तुम खोज रहे हो, वह तुम्हारे भीतर बैठा है। तुम्हारी खोज के कारण ही तुम उसे नहीं पा रहे हो। तुम दौड़े जाते हो। थकते हो, गिरते हो। जिसे तुम खोजने चले हो, उस मालिक ने तुम्हारे घर में बसेरा किया हुआ है।
तुम जिसे खोजने चले हो, वह अतिथि नहीं है, आतिथेय है। खोजने वाले में ही छिपा है। वह जो गंतव्य है, कहीं दूर नहीं, कहीं भिन्न नहीं, गंता की आंतरिक अवस्था है। अगर उसे देखना हो, उसके प्रति चैतन्य से भरना हो तो आंखें उलटाना सीखना पड़ेगा। यही ध्यान है। ध्यान साधारणतया दृश्य से जुड़ा है।
परमात्मा किसी को कम और ज्यादा देता नहीं। उसका सूरज सबके लिए उगता है। उसकी आंखों में न कोई छोटा है, न कोई बड़ा है। न खुद जगमगाए, बल्कि इनकी जगमगाहट से और भी लोग जगमगाएं। दीयों से दीये जलते चले गए। ज्योति से ज्योति जले! परमात्मा की तरफ से प्रत्येक को बराबर मिला है, फिर हम अंधेरे में क्यों हैं?
ध्यान तुम्हारे पास उतना ही है, जितना मेरे पास। लेकिन तुमने ध्यान वस्तुओं पर लगाया है। तुमने ध्यान किसी विषय पर लगाया है। वस्तुओं को हट जाने दो, विषय वस्तु से मुक्त हो जाओ, मात्र ध्यान को रह जाने दो। निरालंब! तब आंख भीतर मुड़ जाती है। जब तक आलंबन है, तब तक तुम बाहर जाओगे, क्योंकि आलंबन बाहर है। जब आलंबन नहीं, तब तुम भीतर आओगे।