परमात्मा ऐसी जगह छिपा है कि आदमी ईश्वर से शिकायत करने में असफल हो गया है “ओशो”

 परमात्मा ऐसी जगह छिपा है कि आदमी ईश्वर से शिकायत करने में असफल हो गया है “ओशो”

ओशो– सुना है मैंने कि ईश्वर ने सारी सृष्टि बना डाली, फिर उसने आदमी बनाया। वह बड़ा खुश था। सारी दुनिया उसने बना डाली। बहुत खुश था। सब कुछ सुंदर था। फिर उसने आदमी बनाया। और उस दिन से वह बेचैन और परेशान हो गया। आदमी ने उपद्रव शुरू कर दिए। आदमी के साथ उपद्रव का जन्म हो गया।

तो उसने अपने सारे देवताओं को बुलाया और उनसे पूछा कि एक बड़ी मुश्किल हो गई है। यह आदमी को बनाकर तो गलती हो गई मालूम होती है। और आदमी रोज—रोज उसके दरवाजे पर खड़े रहने लगे। यह शिकायत है, वह शिकायत है। यह कमी है, वह कमी है। ईश्वर ने कहा, अब एक उपाय करो कुछ। मैं किसी तरह आदमी से बचना चाहता हूं। मैं कहां छिप जाऊं?किसी देवता ने कहा, हिमालय पर बैठ जाएं, गौरीशंकर पर। ईश्वर ने कहा कि तुम्हें पता नहीं, कुछ ही समय बाद हिलेरी और तेनसिंग एवरेस्ट पर चढ़ जाएंगे, फिर मेरी मुसीबत फिर शुरू हो जाएगी। किसी ने कहा, तो चलें चांद पर बैठ जाएं। तो ईश्वर ने कहा, चांद पर पहुंचने में कितनी देर लगेगी! जल्दी ही आदमी चांद पर उतर जाएगा। मुझे कोई ऐसी जगह बताओ, जहां आदमी पहुंच ही न पाए।

तब एक के देवता ने ईश्वर के कान में कहा। ईश्वर ने कहा, बिलकुल ठीक। यह बात जंच गई। और देवताओं ने पूछा कि कौन— सी है वह बात? ईश्वर ने कहा, अब तुम उसको पूछो ही मत। क्योंकि लीक आउट हो जाए, आदमी तक पहुंच जाए, तो खतरा हो सकता है।

उस के ने ईश्वर के कान में कहा कि आप आदमी के ही भीतर छिप जाइए। यह वहां कभी नहीं पहुंच पाएगा। एवरेस्ट चढ़ लेगा, चांद पर उतर जाएगा, भीतर खुद के…। ईश्वर ने कहा, यह बात जंच गई।

और कथा है कि तब से ईश्वर आदमी के भीतर छिप गया है। और तब से आदमी ईश्वर से शिकायत करने में असफल हो गया है। खोजता है बहुत, लेकिन मिल नहीं पाता कि उससे शिकायत कर दे, कि कोई प्रार्थना कर दे, कि कोई स्तुति कर दे।

भीतर जाना— उस भीतर जाने के लिए कृष्‍ण धीरे— धीरे अर्जुन को एक—एक कदम अनेक—अनेक इशारों को देकर आखिरी जगह ले आए हैं, जहां वे कहते हैं, अर्जुन, हे धनंजय, पांडवों में मैं तुझमें हूं। तू अपने में ही देख ले। मत पूछ कि क्या मैं भाव करूं। मत पूछ कि कहां मैं खोजूं। सच ही खोजना चाहता है, तो मैं तेरे भीतर मौजूद हूं तू वहीं देख ले, वहीं खोज ले।

हम सबको भी भरोसा नहीं आता इस बात का कि परमात्मा हमारे भीतर मौजूद है। आएगा भी नहीं। अगर कोई हमसे कहे कि शैतान आपके भीतर मौजूद है, तो हम थोड़ा मान भी लें। क्योंकि हमारा अपने से जो परिचय है, उससे शैतान का तो तालमेल बैठ जाता है। लेकिन कोई हमसे कहे कि परमात्मा आपके भीतर है, तो हम सोचते हैं, कोई मेटाफिजिकल, कोई ऊंचे दर्शन की बात चल रही है! इसमें कुछ है नहीं सार।

परमात्मा, मेरे भीतर! हम किसी के भी भीतर मानने को राजी हो जाएं, खुद के भीतर मानने में बड़ी तकलीफ होगी। क्योंकि हम भीतर अपने जानते हैं कि क्या है। भीतर के चोर को हम जानते हैं। भीतर के बेईमान को हम जानते हैं। भीतर के व्यभिचारी को हम जानते हैं। कैसे हम मान लें कि परमात्मा हमारे भीतर है।

लेकिन इसका सिर्फ एक ही मतलब है कि आप भीतर को जानते ही नहीं। जिसको आप जानते हैं भीतर, वह आपका मन है, वह वस्तुत: भीतर नहीं है, वह वास्तविक इनरनेस नहीं है। जिसको आप जानते हैं मन, वह आपका आंतरिक अंतस्तल नहीं है। वह केवल बाहर की परछाईं है, जो आपके भीतर इकट्ठी हो गई है। वे केवल बाहर से बनी हुई प्रतिक्रियाएं हैं, जो आपके भीतर इकट्ठी हो गई हैं।

ऐसा समझें कि आप जिसको मन कहते हैं, वह बाहर से ही आए हुए प्रभावों का जोड़ है। वह भीतर नहीं है। मन के भी भीतर आप हैं। अगर मैं आपको देखता हूं तो बाहर एक दुनिया है। एक दुनिया मेरे बाहर है। फिर मैं भीतर आंख बंद करता हूं तो भीतर विचारों की एक दुनिया है। वह भी मुझसे बाहर है। क्योंकि उसको भी मैं देखता हूं भीतर। तो विचार मुझे दिखाई पड़ते हैं; क्रोध, कामवासना मुझे दिखाई पड़ती है। जैसे आप मुझे दिखाई पड़ते हैं, ऐसे ही विचारों की भीड़ भीतर दिखाई पड़ती है। वह भी मुझसे बाहर है। मेरे शरीर के भीतर है, लेकिन मुझसे बाहर है।

आप मुझसे बाहर हैं। आंख बंद करता हूं आपकी तस्वीर मुझे भीतर दिखाई पड़ती है, वह भी मुझसे बाहर है। और वह तस्वीर आपकी है। आपने अपने भीतर कभी कोई एकाध तस्वीर देखी है, जो बाहर से न आई हो? आपने अपने भीतर कभी कोई एकाध विचार देखा, जो बाहर से न आया हो? आपने भीतर ऐसा कुछ भी देखा है, जो बाहर का ही प्रतिफलन न हो?

तो फिर से खोज करें। आप अपने भीतर की जांच करें, तो आप पाएंगे, वह तो सब बाहर की ही कतरन, बाहर का ही कचरा, बाहर का ही जोड़ है। तो यह फिर भीतर नहीं है। यह बाहर का ही हाथ है, जो आपके भीतर प्रवेश कर गया है। अगर आपको अंतस्तल को जानना है, तो थोड़ा और पीछे चलना पड़े।

🍁🍁ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ 🍁🍁
गीता दर्शन, भाग-5
(प्रवचन-14)
अध्‍याय-10