अपना मित्र होना ही योग है और अपना शत्रु होना अयोग “ओशो”

 अपना मित्र होना ही योग है और अपना शत्रु होना अयोग “ओशो”

ओशो- गुरजिएफ अपने संस्मरणों में लिखता है, मैं जिंदगी में कोई बुरा काम नहीं कर पाया। मेरे बाप ने मुझे धोखा दे दिया। उसने कहा, चौबीस घंटे बाद कर लेना। लेकिन चौबीस घंटा तो बहुत वक्त है, चौबीस सेकेंड भी कोई बुरा काम करते वक्त रुक जाए, तो नहीं कर सकता। चौबीस सेकेंड भी! क्योंकि उतने में ही होश आ जाएगा कि मैं अपनी दुश्मनी कर रहा हूं। इसलिए बुरा काम हम बहुत शीघ्रता से करते हैं; देर नहीं लगाते।अगर एक मित्र को संन्यास लेना है, तो वह पूछता है कि एक साल और रुक जाऊं! उसको जुआ खेलना है, तो वह नहीं पूछता। अगर उसे संन्यास लेना है, तो वह पूछता है कि एक साल रुक जाएं, तो कोई हर्ज है? लेकिन उसे क्रोध करना होता है, तब वह एक सेकेंड नहीं रुकता। बहुत आश्चर्यजनक है। अच्छा काम करना हो, तो आप पूछते हैं, थोड़ा स्थगित कर दें तो कोई हर्ज है? और बुरा काम करना हो तो! तो तत्काल कर लेते हैं। तत्काल। एक सेकेंड नहीं चूकते! क्यों?

वह बुरा काम अगर एक सेकेंड चूके, किया नहीं जा सकेगा। और उसे करना है, इसलिए एक सेकेंड स्थगित करना ठीक नहीं है। और अच्छे काम को करना नहीं है, इसलिए जितना स्थगित कर सकें, उतना अच्छा है। जितना टाल सकें, उतना अच्छा है।

हम अच्छे कामों को टालते चले जाते हैं कल पर और बुरे काम करते चले जाते हैं आज। और एक दिन आता है कि मौत कल को छीन लेती है। बुरे कामों का ढेर लग जाता है; अच्छे काम का कोई हाथ में हिसाब ही नहीं होता।

मित्र वह है अपना, जो अशुभ को स्थगित कर दे और शुभ को कर ले। और शत्रु वह है अपना, जो शुभ को स्थगित कर दे और अशुभ को कर ले। एक क्षण रुककर देख लेना कि जिस चीज से दुख आता हो, उसे आप कर रहे हैं? तो फिर अपने शत्रु हैं।

और जो अपना शत्रु है, उसकी अधोयात्रा जारी है। वह नीचे गिरेगा, गिरता चला जाएगा–अंधकार और महा अंधकार, पीड़ा और पीड़ा। वह अपने ही हाथ से अपने को नर्क में धकाता चला जाएगा।

लेकिन जो व्यक्ति अपना मित्र बन जाता है, वह ऊपर की ऊर्ध्व-यात्रा पर निकल जाता है। उसकी यात्रा दीए की ज्योति की तरह आकाश की तरफ होने लगती है। वह फिर पानी की तरह गङ्ढों में नहीं उतरता, अग्नि की तरह आकाश की तरफ उठने लगता है।

यह जो ऊपर उठती हुई चेतना है, यही योग है। अपना मित्र होना ही योग है। अपना शत्रु होना ही अयोग है। ऊपर की तरफ बढ़ते चले जाना ही आनंद है।

☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ ☘️☘️
गीता-दर्शन – भाग 3
मालकियत की घोषणा—(अध्याय-6) प्रवचन—तीसरा