ओशो– ज्ञान जहां तक जाता है वहां तक उस ज्ञान के विस्तार का नाम वेद है। वेद का अर्थ होता है. ज्ञान; जानना। जिस मूल से वेद शब्द बना है उसी से विद्वान भी। ज्ञान अर्थात वेद।
लेकिन ऐसा भी आयाम है जीवन का, और अस्तित्व की ऐसी गुह्य स्थिति भी है, जहां वेद भी प्रवेश नहीं कर पाता है, जहां ज्ञान भी नही पहुंच पाता है, जहां ज्ञान को भी बाहर ही छोड़ कर प्रवेश मिलता है। इसलिए भारत ने एक अनूठा शब्द गढ़ा है, वह सुना आपने बहुत होगा, समझा शायद ही हो; वह शब्द है, ‘ वेदांत। ‘ वेदांत का अर्थ होता है : जहां वेद का भी अंत हो जाए, जहा वेद की भी पहुंच नहीं, जहां वेद के भी आगे जाना पड़ता है, जहां वेद भी व्यर्थ हो जाता है, जहां वेद की भी गति नहीं। वेद का अर्थ है : समस्त ज्ञान.. जहां तक जाना जा सकता है, वह सब भी काम नहीं पड़ता–जो भी जाना हुआ है वह काम नहीं पड़ता; जो भी जान लिया गया है वह काम नहीं पड़ता; जो भी अनुभव हुआ है वह काम नहीं पडता; जो भी ज्ञात संपदा है वह काम नहीं पड़ती–वहां से वेदांत शुरूहोता है।
जहां वेद समाप्त होता है वहां से वेदांत शुरू होता है; वेद की जहां सीमा आ जाती है वहां वेदांत का प्रारंभ है। अगर वेदांत को हम ठीक से अंग्रेजी में अनुवादित करें तो उसका अर्थ होगा : नो-नॉलेज।
इसकी तीन सीढ़ियां हम समझ लें। एक है, ज्ञान; उसके नीचे एक सीढ़ी है, अज्ञान; और उसके ऊपर एक सीडी है, ज्ञानातीत। अज्ञान–जब हम नहीं जानते; ज्ञान–जब हम जानते हैं… अर्थात न जानने के हम पार गए; और ज्ञानातीत–अर्थात जब हम जानने के भी पार गए।
अज्ञान तो बांधता ही है, ज्ञान भी बांध लेता है। मुक्ति तो तभी है जब ज्ञान भी शून्य हो जाए। एक सीमा आ जाती है जहां ज्ञान को भी मिटाना होता है, वह भी बंधन बन जाता है, न जानना तो बंधन है, जानना भी बंधन बन जाता है। क्योंकि जानने की भी सीमा है। कितना ही कोई जानता हो, जानना असीम नहीं
हो सकता। और असीम को अगर जानना हो, तो समस्त जानने को छोड़ देना पड़ता है। इसलिए गहरे अर्थों में परम ज्ञानी अज्ञानी जैसा हो जाता है–एक अर्थ में अज्ञानी जैसा हो जाता है; क्योंकि ज्ञान उसके पास भी नहीं। एक अर्थ में अज्ञानी से बिलकुल विपरीत होता है; क्योंकि अज्ञानी इसलिए अज्ञानी होता है कि ज्ञान उसके पास नहीं है, और ज्ञानी इसलिए अज्ञानी होता है–यह परम ज्ञानी–कि उसने ज्ञान को भी छोड़ दिया।