ओशो- इस पृथ्वी पर जितने भी सदगुरु हुए हैं उनमें गौतम बुद्ध सर्वश्रेष्ठ हैं। ईसा क्राइस्ट, महावीर, मोहम्मद और अन्य कई महान सदगुरु हुए परंतु बुद्ध फिर भी इन सबमें श्रेष्ठ हैं। ऐसा नहीं है कि बुद्ध की ज्ञानोपलब्धि किसी अन्य की ज्ञानोपलब्धि से अधिक है–ज्ञान की उपलब्धि न कम होती है न ज्यादा। वस्तुतः गुणात्मक दृष्टि से तो बुद्ध भी उसी चेतना को प्राप्त हुए जिस चेतना को महावीर, क्राइस्ट, जरथुस्त्रा तथा लाओत्सु प्राप्त हुए। अतः यह सवाल ही नहीं है कि कौन किससे अधिक ज्ञानोपलब्धि को प्राप्त हुआ।
परंतु जहां तक सदगुरु होने का प्रश्न है, बुद्ध अतुलनीय हैं क्योंकि उनके द्वारा हजारों व्यक्तियों को ज्ञान उपलब्ध हुआ। यह घटना किसी अन्य गुरु के साथ कभी नहीं हुई। बुद्ध की परंपरा सबसे अधिक फलदायी रही है। आज तक बुद्ध का परिवार सर्वाधिक सृजनात्मक परिवार रहा है। बुद्ध एक विशाल वृक्ष की तरह हैं जिसकी अनेक शाखाएं हैं, और प्रत्येक शाखा फलवती रही है, फूलों से लदी हुई है।
महावीर एक तरह से अधिक आंचलिक या स्थानीय घटना के रूप में रहे। कृष्ण की दुर्गति पंडितों और शास्त्रज्ञों के हाथों हुई। क्राइस्ट को पुरोहितों ने पूरी तरह नष्ट कर दिया। बहुत कुछ संभव था परंतु न हो पाया। बुद्ध इस दृष्टि से अत्यंत भाग्यशाली सिद्ध हुए। ऐसा नहीं कि पुरोहितों और पंडितों ने बुद्ध पर भा अपने हथकंडे नहीं आजमाए, उन्होंने जो कुछ किया जा सकता था किया। परंतु बुद्ध ने अपनी शिक्षा कुछ इस ढंग निर्मित की थी कि उसका नष्ट होना असंभव था। इसलिए वह अभी तक जीवत है। पच्चीस सौ वर्ष बीत जाने पर भा कुछ फूल इस वृक्ष पर अभी भी खिल उठते है। बुद्ध का वृक्ष अभी भी हरा-भरा है। अभी भी जब बसंत आता है तो यह वृक्ष अपनी सुगंध फैला देता है, अभी भी उसमें फूल खिलते है।
सरहा इसी वृक्ष का एक फूल है। सरहा का जन्म बुद्ध के कोई दो सौ वर्ष बाद हुआ था। वे एक दूसरी ही शाखा से उदभूत परंपरा के अंग थे। एक शाखा चलती है महाकश्यप से बोधिधर्म तक, जिसमें से झेन का जन्म हुआ और जो अभी तक फूलों से भरी है। दूसरी शाखा निकलती है बुद्ध से उनके पुत्र राहुलभद्र, राहुलभद्र से श्री कीर्ति, श्री कीर्ति से सरहा, और सरहा से नागार्जुन तक यह तंत्र की शाखा तिब्बत में आज भी फूल दे रही है।
तंत्र ने तिब्बत को बदल दिया, और जिस प्रकार बोधिधर्म झेन के जनक हैं उसी प्रकार सरहा तंत्र के जनक हैं। बोधिधर्मा ने चीन, कोरिया तथा जापान पर विजय पाई, सरहा ने तिब्बत को विजय किया।