साधु-संन्यासियों से मुक्त होने की जरूरत है नारी को “ओशो”

 साधु-संन्यासियों से मुक्त होने की जरूरत है नारी को “ओशो”

ओशो– आश्चर्य की बात है कि जिन धर्मों ने, जिन धर्मगुरुओं ने, जिन साधु-संन्यासियों और महात्माओं ने नारी को आत्मा मिलने में सबसे ज्यादा बाधा दी है, नारी अजीब पागल है, उन साधु-संन्यासियों और महात्माओं को पालने का सारा ठेका नारियों ने ले रखा है।
ये मंदिर और मस्जिद नारी के ऊपर चलते हैं। साधु और संन्यासी नारी के शोषण पर जीते हैं और उनकी ही सारी की सारी करतूत और लंबा षड्‌यंत्र है कि नारी को अस्तित्व नहीं मिल पाता। जो रोज-रोज घोषणा करते हैं कि नारी नरक का द्वार है, नारी उन्हीं के चरणों में–दूर से, पास से छू तो नहीं सकती, क्योंकि छूने की मनाही है–दूर से नमस्कार करती रहती है, भीड़ लगाए रहती है।
अभी मैं बंबई था। एक महिला ने मुझे आकर कहा कि एक संन्यासी का, एक महात्मा का प्रवचन चलता है। हजारों लोग सुनने इकट्ठे होते हैं, लेकिन कोई नारी उनका पैर नहीं छू सकती। लेकिन एक दिन एक नारी ने भूल से उनका पैर छू दिया। महात्मा ने सात दिन का उपवास किया प्रायश्चित्त में। और इस प्रायश्चित्त का परिणाम यह हुआ कि नारियों की, लाखों नारियों की संख्या उनके दर्शन करने के लिए इकट्ठी हो गई कि बहुत बड़े महात्मा हैं।
बेवकूफी की भी कोई सीमाएं होती हैं! एक नारी को नहीं जाना चाहिए था फिर वहां। और नारी को विरोध करना चाहिए था कि वहां कोई भी नहीं जाएगा। लेकिन नारी बड़ी प्रसन्न हुई होगी कि बड़ा पवित्र आदमी है यह। नारी को छूने से सात दिन का उपवास करके प्रायश्चित्त करता है, महान आत्मा है यह।
नारियों के मन में भी यह खयाल पैदा कर दिया है पुरुषों ने कि वे अपवित्र हैं, और उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया है, उसे वे मान कर बैठ गई हैं।
कितने आश्चर्य की बात है, ये जो महात्मा जिनके पैर छूने से सात दिन का इन्होंने उपवास किया, ये एक नारी के पेट में नौ महीने रहे होंगे, और अगर अपवित्र होना है तो हो चुके होंगे। अब बचना बहुत मुश्किल है अपवित्रता से। और एक नारी की गोद में बरसों बैठे रहे होंगे–खून उसका है, मांस उसका है, हड्डी उसकी है, मज्जा उसकी है, सारा व्यक्तित्व उसका है–और उसी के छूने से ये सात दिन का इन्हें उपवास करना पड़ता है, क्योंकि वह नरक का द्वार है।
साधु-संन्यासियों से मुक्त होने की जरूरत है नारी को। और जब तक वह साधु-संन्यासियों के खिलाफ उसकी सीधी बगावत नहीं होती और वह यह घोषणा नहीं करती कि नारी को नरक कहने वाले लोगों को कोई सम्मान नहीं मिल सकता है, नारी को अपवित्र कहने वाले लोगों के लिए कोई आदर नहीं मिल सकता है–सीधा विद्रोह और बगावत चाहिए–तो नारी की आत्मा की यात्रा की पहली सीढ़ी पूरी होगी।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३