जीवन की उलझनों में दूसरे कभी भी उत्तरदायी नहीं होते “ओशो”

 जीवन की उलझनों में दूसरे कभी भी उत्तरदायी नहीं होते “ओशो”

प्रश्न: भगवान, जब कोई छल और दगाबाजी करता है, या जब कोई मुझे वस्तु की तरह उपयोग करता है, ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए? मैं उस व्यक्ति को चोट भी नहीं पहुंचाना चाहती। मन की शांति कैसे मिले? मैं टूट-फूट गई हूं।

ओशो : जीवन की उलझनों में दूसरे कभी भी उत्तरदायी नहीं होते। सारा उत्तरदायित्व अपना होता है। जैसे तुमने कहा कि जब कोई मुझसे छल और दगा करता है तो मेरे दिल को चोट पहुंचती है। थोड़ा सोचो, दिल को चोट किसी के छल और दगा करने से नहीं होती। तुमने चाहा था कि कोई छल और दगा न करे इसलिए चोट होती है। यह तुम्हारी चाह का फल है। और सारी दुनिया तुम्हारी चाह को मानकर चले, यह तुम्हारे हाथ में नहीं। यह किसी के भी हाथ में नहीं। लेकिन हम यूं ही सोचने के आदी हो गए हैं कि हर चीज का दायित्व दूसरे पर थोप दें। इससे आसानी होती है, राहत मिलती है। राहत मिलती है कि मैं जिम्मेवार नहीं हूं। अब कोई छल कर रहा है इसलिए कष्ट हो रहा है।

लेकिन तुमने चाहा ही क्यों कि कोई छल न करे? और यह हमारे हाथ में कहा है कि हम ऐसी दुनिया बना लें जिसमें छल और कपट न हो? छल भी होगा, कपट भी होगा। हम इतना जरूर कर सकते हैं कि हम अपने के ऐसा बना लें कि दूसरे के छल और कपट को भी स्वीकार कर सकें कर्म उसका है, फल उसका होगा। तुम्हें परेशानी क्यों हो? और तुम्हारी परेशानी उसके छल और कपट को नहीं रोक पाएगी। हां, तुम अगर गैर-परेशान रह जाओ, तुम्हारी शांति में अगर कोई विघ्न और कोई बाधा न पड़े,तुम्हारा हृदय अगर निष्कंप रह जाए, कोई कलुष, कोई शिकायत, कोई शिकवा न उठे तो शायद तुम उस दूसरे व्यक्ति को बदलने में समर्थ भी हो जाओ। यह बहुत मुश्किल है उस आदमी को धोखा देना, जो तुमसे धोखा खाने को चुपचाप राजी है;लेकिन शिकायत है न शिकवा है। इतना गिरा हुआ आदमी जमीन पर पैदा ही नहीं हुआ। और न पैदा हो सकता है। लेकिन तुम्हारा दुख, तुम्हारी पीड़ा उसकी विजय है। और जब उसे छल से और छलावे से विजय मिलती हो तो विजय को छोड़ना बहुत मुश्किल है।

इस दुनिया में तुम्हें सब तरह के लोग मिलेंगे। और यूं तुम अगर हर आदमी से प्रभावित होते रहे, थपेड़े खाते रहे, तुम्हारे जीवन की नौका यूं ही डगमगाती ही रहेंगी। तुम किनारा कभी पा न सकोगे। तुम मझधार में डूबोगे। साहिल तुम्हें मिलेगा नहीं।

एक बात ठीक से समझ लो। हम अपनी दुनिया खुद बनाते हैं। और अगर कोई तुम्हारे साथ छल करता है, या कपट करता है, क्या छीन लेगा? तुम्हारे पास है क्या? तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। और जो गरीब छल-कपट कर रहा है वह दीन, दरिद्र है। उसके पास भी कुछ नहीं है। सोचता है शायद छल-कपट से कुछ मिल जाएगा।

मेरी सलाह, पहली सलाह: जो तुम्हें धोखा दे, समझना कि बड़ा गरीब है। तुमसे तो ज्यादा गरीब है। जो तुम्हारे साथ छल कर, कपट करे, समझना कि बड़ा दीन है। तुमसे तो बड़ा भिखारी है। उस पर दया करना। उस पर करुणा करना। इसलिए नहीं कि तुम्हारी दया और करुणा से वह बदल ही जाएगा। वह बदले या न बदले लेकिन तुम बदल जाओगे। और असलियत बात यही है कि तुम बदल जाओ। और तुम एक ऐसी स्थिति में आ जाओ कि दुनिया तुम्हारे साथ कुछ भी करे लेकिन तुम्हें डांवाडोल न कर सके।

तुमने पूछा है कि लोग जब किसी वस्तु की तरह मेरा उपयोग करते हैं तो बड़ी चोट पहुंचती है। लेकिन तुम खुद अपने को वस्तु की तरह उपयोग कर रहे हो यह तुमने सोचा? तुमने अपने को आत्मा की तरह उपयोग किया है? कभी जीवन के किसी क्षण में? तुमने खुद अपने को वस्तु की तरह उपयोग किया है, एक शरीर मात्र। और जब तुम खुद ही अपने यह दुर्व्यवहार कर रहे हो, तो दूसरों से क्या शिकायत? वे तुमसे वही कर रहे हैं जो तुम अपने से कर रहे हो। और शरीर तो वस्तु है ही। तुम अपने भीतर छिपे हुए उस चैतन्य को पहचानने की कोशिश करो जो वस्तु नहीं है। फिर तुम्हारा कोई भी कैसा भी उपयोग करे, तुम भलीभांति समझोगे कि तुम दूर खड़े देख रहे हो। वह तुम्हारा उपयोग नहीं है।

 ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३

“कोपलें फिर फूट आई”
प्रवचन# 05