सांप्रदायिक सौहार्द, धार्मिक सहिष्णुता और कांवर यात्रा

 सांप्रदायिक सौहार्द, धार्मिक सहिष्णुता और कांवर यात्रा

Alert chhattisgarh: आधुनिकता का दावा करते समाजों में जब जब व्यक्ति और समुदायों का मूल्यांकन उनके धर्म के आधार पर होने लगे तो यह प्रश्न उठना लाज़मी हो जाता है कि हम वास्तव में आगे की तरफ बढ़ रहे हैं या पक्षगामी हो रहे है. ये प्रसंग सदियों से इस इस मुल्क के बौद्धिकों को उद्वेलित करता रहा है। की एक व्यक्ति और नागरिक के रूप में पहचान कब मिलेगी वर्तमान संदर्भ में ये मुद्दा तब उठ खड़ा होता है जब हर वर्ष की तरह इस बार भी कावंड यात्रा की शुरूआत होनी है लेकिन मुजफ्फरनगर प्रशासन की तरफ से निर्गत आदेश जिसमें कहा गया है कि कांवड़ यात्रा मार्ग में आने वाले सभी ढाबों, होटलों और रेस्तरों के मालिकों और वहाँ काम कर रहे लोगों की नाम और पहचान लिखा जाय ताकि कावड यात्रियों की आस्था आहात न हो। इस फैसले में अंतर्निहित मंशा ने विपक्ष के साथ ही अनेक धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों और संगठनों को एकसाथ लामबंद करने का कार्य किया और इसके साथ ही उस सनातन बहस को जिंदा कर दिया कि इस मुल्क की तरबियत क्या है क्या सही मायनों में हमने संविधान में स्थापित धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को आत्मसात् किया ये ये अभी दूर की कौड़ी है ?? कुछ इन्ही प्रश्नों के साथ दो चार होता हुआ और इतिहास के आईनों में सामुदायिक सौहार्द की तस्वीरों को साझा करता हुआ ये आलेख प्रस्तुत है।

मानव समाज ने खानाबदोश स्तर से वर्तमान बहुलवादी समाज की यात्रा लाखों वर्षों में तय की मानव समाज के विकास के विभिन्न चरणों में तमाम मौलिक अंतर और उद्विकास के अलग अलग आयाम होने के बावजूद जिस एक संस्था ने सभी चरणों को एक सूत्र में बांधा है तो वो है धर्म। उद्विकास के क्रम में प्रकृति पूजा से बहुदेववाद और एकेश्वरवाद के रूप में धर्म का औपचारिक और संस्थापित रूप दिखलायी पड़ता है। कुछ शताब्दियों पहले तक हर समाज में एक ही धर्म के मानने वाले लोग रहते थे और उन समाजों में धर्म एकीकरण का महत्वपूर्ण प्रकार्य करता था। लेकिन कालांतर में धार्मिक प्रचारकों के आवागमन व्यापार और विभिन्न मुल्कों के साम्राज्यवादी नीतियों के कारण विभित्र समाजों के मध्य अंतक्रिया में विस्तार हुआ और विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोग हर समाजों में अस्तित्व में आने लगे। जहां तक भारतीय समाज के संदर्भ में बात किया जाये तो प्राचीन काल से ही विभिन्न धार्मिक समूह समय समय पर भारतीय समाज में आते रहे कुछ ने यहाँ की संस्कृति और सभ्यता के साथ अंतःक्रिया के पश्चात यहाँ की संस्कृति के साथ समन्वय स्थापित करते हुए जीवन निर्वाह की वृत्ति सीख ती वहीं कुछेक धार्मिक- सांस्कृतिक समूहों ने अपनी विशिष्ट विशेषताओं को बनाए रखा। आर्य द्रविड़ से प्रारंभ होकर ब्राह्मण श्रमण परंपरा से होते हुए मध्यकाल में इस्लाम सनातन हिंदू और आधुनिक काल में भारतीय यूरोपिय संस्कृति और धार्मिक समूहों के मध्य निरंतर अंतःक्रिया होती रही इस दरम्यान इन सबने एक दूसरे को जोड़ा घटाया। इस अंतक्रिया की अभिव्यक्ति इतिहास के अधिकांश समय में समन्वयकारी रही लेकिन कभी- कभी धार्मिक मदांधता के फलस्वरूप सांप्रदायिक तनाव भी देखने को मिलते है। प्राचीन भारत में भी सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता के कई उदाहरण मिलते हैं। मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अपने शासनकाल में धार्मिक सहिष्णुता और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा दिया। उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया, लेकिन साथ ही अन्य धर्मों के प्रति भी सम्मान और सहिष्णुता बनाए रखी। उनके शिलालेखों में सभी धर्मों के प्रति सम्मान और अहिंसा का संदेश दिया गया है। इसी प्रकार गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है। इस समय में हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म एक साथ फलते- फूलते रहे। गुप्त सम्राटों ने सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का पालन किया और धार्मिक संस्थानों को समर्थन दिया। नालंदा विश्वविद्यालय जैसे संस्थान विभिन्न धमों के छात्रों और विद्वानों के लिए खुले थे। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य और उनके मंत्री चाणक्य (कौटिल्य) ने एक समावेशी शासन प्रणाली का निर्माण किया, जिसमें सभी धर्मों और संस्कृतियों को स्थान दिया गया। उनकी शासन व्यवस्था में सभी धर्मों के लोगों को समान अवसर और अधिकार दिए गए। कुषाण सम्राट कनिष्क ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया, लेकिन उनके शासनकाल में हिंदू, बौद्ध, और अन्य धर्मों के लोग भी शांति और सौहार्द के साथ रहते थे। उनके शासन में धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समन्वय का एक अच्छा उदाहरण देखने को मिलता है। प्राची भारतीय साहित्य और शिक्षा में भी सांप्रदायिक सौहार्द के उदाहरण मिली है। भा उपनिष नालंदा जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में विधि के
दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान करते थे। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में भी सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जिसने समाज को समृद्ध और संतुलित बनाए रखा।

मध्यकालीन भारत में भी सांप्रदायिक सौहार्द के कई उदाहरण मिलते हैं, जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग मिलकर रहते थे और आपसी सहयोग व सम्मान का पालन करते थे। भक्ति आंदोलन और सूफीवाद दोनों ही धार्मिक और सांस्कृतिक समन्वय के महत्वपूर्ण स्रोत थे। भक्ति संत जैसे कबीर, गुरु नानक, और मीराबाई ने धार्मिक भेदभाव को नकारा और सभी धर्मों के प्रति सम्मान का संदेश दिया। सूफी संतों जैसे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया, और बाबा फरीद ने भी हिंदू मुस्लिम एकता और प्रेम का प्रचार किया। मुगल सम्म्राट अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया और विभिन्न धर्मों के लोगों को अपने दरबार में शामिल किया। उन्होंने “दीन-ए-इलाही” नामक एक नए धर्म की स्थापना की, जो विभिन्न धमों की शिक्षाओं का समन्वय था। राजस्थान के राजपूत और मुगलों के संबंधः कई राजपूत राजाओं ने मुगलों के साथ राजनीतिक और सामाजिक संबंध बनाए। राजपूत राजा अकबर के शासनकाल में मुगलों के साथ मिलकर काम करते थे और यहां तक कि उनकी बेटियों की शादी मुगल शहजादों से होती थी। इससे हिंदू-मुस्लिम संबंध मजबूत हुए। मध्यकालीन साहित्य और कला में भी धार्मिक समन्वय देखने को मिलता है। अमीर खुसरो जैसे कवियों ने फारसी और हिंदी के मिश्रण से काव्य रचा, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों संस्कृति का प्रभाव था। इसी प्रकार, ताजमहल, कुतुब मीनार और अन्य स्थापत्य कला में हिंदू और इस्लामी कला का संगम दिखाई देता है। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि मध्यकालीन भारत में सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता एक महत्वपूर्ण तत्व थे, जिसने भारतीय समाज को एकजुट बनाए रखा।

आधुनिक भारत में सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता के कई महत्वपूर्ण उदाहरण मिलते हैं, जो देश की विविधता और एकता को दर्शाते है। महात्मा गांधी ने अपने जीवन में अहिंसा और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा दिया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए अनेक प्रयास किए और हमेशा विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच भाईचारे और प्रेम का संदेश दिया। उनकी विचारधारा और नेतृत्व ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा दिया। स्वामी विवेकानंद ने विभिन्न धर्मों की शिक्षाओं में समानता और सहिष्णुता पर जोर दिया। 1893 के शिकागो धर्म संसद में उनके भाषण ने विभिन्न धर्मों के प्रति सम्मान और सहिष्णुता का संदेश दिया और भारत के धार्मिक सहिष्णुता की परंपरा को विश्व में प्रकट किया। भारतीय संविधान में सभी धर्मों के लोगों के लिए समान अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। संविधान का मूल सिद्धांत धर्मनिरपेक्षता है, जो सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार और सम्मान की बात करता है। बॉलीवुड और भारतीय संगीत उद्योग भी सांप्रदायिक सौहार्द के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। यहाँ विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग मिलकर काम करते हैं और अपनी कला के माध्यम से एकता और प्रेम का संदेश देते हैं। ए.आर. रहमान, जो खुद एक मुस्लिम हैं, ने विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों में संगीत दिया है जो सभी धर्मों के लोगों को जोड़ता है। भारत में विभिन्न धर्मों के त्यौहार जैसे दीवाली, ईद, क्रिसमस, गुरुपर्व आदि सभी धर्मों के लोग मिलकर मनाते हैं। यह सांप्रदायिक सौहार्द और आपसी प्रेम का प्रतीक है। कई सामाजिक संगठन और गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। ये संगठन विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि आधुनिक भारत में भी सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता की परंपरा जीवित है और यह देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि इस मुल्क ने समय समय पर अपने मूल स्वाभाव को प्रदर्शित किया है, यहाँ यदि आततायी शासकों का इतिहास है। जिन्होंने कुछ समय के लिए देश और समाज में साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का कार्य किया तो बुद्ध, कबीर, गोस्वामी तुलसीदास गाँधी और आंबेडकर जैसे नायकों ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि देश का असली नायक वही हो सकता है, जिसमे समन्वय की विराट चेष्टा हो।