जो हर ले वह हरि “ओशो”

 जो हर ले वह हरि “ओशो”

ओशो– परमात्मा तो चारो तरफ से कोशिश कर रहा है तुम में प्रवेश कर जाने की , मगर तुम्हारी प्याली इतनी भरी है कि कही कोई जगह ही नही है ।

उसकी बदलिया तो तुम्हे अभी भी घेरे खड़ी है । उसके लोक में तो सदा ही सावन है ।

उसके लोक में तो कभी सावन के अतिरिक्त और कोई ऋतू होती ही नही ; वहा तो सदा एक ही ऋतू है —सदा हरापन , सदा जीवन , सदा यौवन ! वहां पतझड़ कभी नही आता है ।

परमात्मा तो केवल वसंत को ही जानता है , जैसे तुम केवल पतझड़ को ही जानते हो, ऐसे परमात्मा केवल वसंत को ही जानता है ।

जैसे तुम केवल मृत्यु को ही जानते हो , परमात्मा केवल अमृत को ही जानता है ।
परमात्मा तुमसे ठीक विपरीत छोर पर खड़ा है , और चारो तरफ से घेरे हुए है कि कभी मौका मिल जाए , कभी तुमसे भूल चूक हो जाए , द्वार दरवाजे खुले छूट जाए ।

वह चोर की तरह रात को भी तुम्हारे चारो तरफ खड़ा रहता है ।

इसलिये तो हिंदुओ ने उसको एक नाम दिया है —— हरि !

हरि का अर्थ होता है चोर ।

जो हर ले, वह हरि ! जो झपट ले , जो मौका पा जाए तो तुम्हे ले उड़े —– वह हरि !

जो तुम्हे घेरे खड़ा है , कभी मौका मिल जाए , शायद , तुम्हारे बावजूद , कभी तुम द्वार पर सांकल लगाना भूल जाओ , कि खिड़की रात छूट जाए , कि कही दरवाजे से संध् मिल जाए – —- तो वह घुस आए ।

मगर कही से तुम्हारे भीतर जगह नही , तुम बिलकुल भरे पड़े हो बुंदभर भी रखने को जगह नही ।

नही तो उसकी बदली तुम्हे सदा घेरे है।

उतना ही गहरा परमात्मा तुम में उतरेगा जितना गहरा तुम खाली हो गये । उसी अनुपात में उतरेगा , उससे ज्यादा उतर नही सकता ।

कैसे तुम खाली होओ ? तुम्हारा कृत्य पर से भरोसा छूट जाए , तो तुम खाली हो जाओ ।

☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
झुक आयी बदरिया सावन की