प्रश्न :भगवान! इस भारत-भूमि पर कृष्ण, बुद्ध, महावीर, कबीर, नानक तथा ऐसी ही महान आत्माओं की किरणों का प्रकाश तो मैं प्रत्यक्ष आप में देख रहा हूं। क्या भारत-भूमि ही धार्मिकता की दृष्टि से अग्रणी रहेगी या इसमें भी विदेशी साधक अग्रणी हो जाएंगे? क्योंकि विदेशी वैज्ञानिक, इंजीनियर, डाक्टर, विचारक, द्रष्टा इस प्रकार पूना भागे आ रहे हैं कि पूरे विश्व की संपदा यह आश्रम है। आपके सान्निध्य में ध्यान तथा प्रवचनों में जो सत्य, अहिंसा, करुणा, प्रेम, समर्पण का भाव इन विदेशियों ने सीखा है, आत्मसात किया है, यह आश्रम की गतिविधियों से स्पष्ट नजर आता है। भगवान, क्या आपकी संपदा से फिर भारत-भूमि वंचित रह जाएगी? क्या ढोंगी सत्य साईंबाबा जैसे ही लोग घड़ियां निकाल कर तथा राख गिरा कर भारत को राख में ही नहीं मिला देंगे? या आगे भी ऐसे ही महान पुरुषों का अवतार भारत-भूमि पर होता रहेगा? कृपया समझाने की कृपा करें।ओशो:- भारत और अभारत, देश और विदेश की भाषा अधार्मिक है। यह मौलिक रूप से राजनीति, कूटनीति, हिंसा, प्रतिहिंसा, वैमनस्य, इस सबको तो परिलक्षित करती है–धर्म को नहीं, ध्यान को नहीं, समाधि को नहीं। ध्यान क्या देशी और क्या विदेशी? प्रेम क्या देशी और क्या विदेशी?
रंग लोगों के अलग होंगे, चेहरे-मोहरे भिन्न होंगे; आत्माएं तो भिन्न नहीं! देह थोड़ी-बहुत भिन्न हो सकती है; फिर भी देह का जो शास्त्र है, वह तो एक है। और आत्मा, जो कि बिलकुल एक है, उसके क्या अनेक शास्त्र होंगे? आत्मा को भी देशों के खंडों में बांटोगे?
इस बांटने के कारण ही कितना अहित हुआ है! इस बांटने के कारण ही पृथ्वी स्वर्ग नहीं बन पाई, पृथ्वी नर्क बन गई है। क्योंकि खंडित जहां भी लोग हो जाएंगे, प्रतिस्पर्धा से भर जाएंगे, अहंकार पकड़ लेगा–वहीं नर्क है। यह अहंकार की भाषा है श्रवण। तुम सोचते हो, तुमने बहुत धार्मिक प्रश्न पूछा है। तुम्हारा प्रश्न बिलकुल अधार्मिक है। किसको तुम देश का हिस्सा मानते हो, किसको विदेश का हिस्सा मानते हो? बस नक्शे पर लकीरें खिंच जाती हैं, और तुम सोचते हो भूमि बंट जाती है?
लाहौर कल तक भारत था, अब भारत नहीं है! ढाका कल तक भारत था, अब भारत नहीं है! जब तुम भारत-भूमि शब्द का उपयोग करोगे तो करांची, ढाका, लाहौर उसमें आते हैं या नहीं? कल तक तो आते थे; उन्नीस सौ सैंतालीस के पहले तक तो आते थे; अब नहीं आते। कल देश और भी सिकुड़ सकता है। कल हो सकता है दक्षिण उत्तर से अलग हो जाए। तो फिर भारत देश उत्तर में ही समाहित हो जाएगा; फिर गंगा का कछार ही भारत रह जाएगा; फिर दक्षिण भारत नहीं रहेगा! अभी भी तुमने जिनके नाम गिनाए, वे सब उत्तर के हैं–कृष्ण, बुद्ध, महावीर, कबीर, नानक। उनमें एक भी दक्षिण का व्यक्ति नहीं है। दक्षिण की तो याद ही आती है तो तत्क्षण रावण की याद आती है!
दक्षिण में भी संत हुए हैं–अदभुत संत हुए हैं! तिरुवल्लुवर हुआ, जिसके शास्त्र को दक्षिण में पांचवां वेद कहा जाता है। और निश्चित ही उसका शास्त्र पांचवां वेद है। अगर दुनिया में कोई पांचवां वेद है तो तिरुवल्लुवर की वाणी है। लेकिन दक्षिण को भी तुम गिनोगे नहीं! तुम्हारा भारत सिकुड़ता जाता है, छोटा होता जाता है।
यह सारी पृथ्वी एक है। तुमने इसमें क्राइस्ट को क्यों नहीं जोड़ा? तुमने इसमें जरथुस्त्र को क्यों नहीं जोड़ा? लाओत्सू को क्यों नहीं जोड़ा? पाइथागोरस को क्यों नहीं जोड़ा? हेराक्लाइटस को क्यों नहीं जोड़ा?
बस इसलिए, चूंकि वे तुम्हारे राजनीतिक भारत के हिस्से नहीं हैं, द्रष्टा न रहे? ज्योतिर्मय पुरुष न रहे? सूरज जैसा पूरब का है, वैसा पश्चिम का। ऐसे ही आत्मा का प्रकाश जैसे पूरब का है, वैसे पश्चिम का। सबका अधिकार है।
धर्म को राजनीति से न बांधो। धर्म की राजनीति से सगाई न करो। धर्म का राजनीति से तलाक होना चाहिए। यह सगाई बड़ी महंगी पड़ी है। इसमें राजनीति छाती पर चढ़ गई और धर्म धूल-धूसरित हो गया।