ओशो– जीवन में सिद्धात थोपना जीवन को विकृत करना है। लेकिन हम सारे लोग सिद्धात थोपते हैं। कोई हिंसक है और अहिंसक होने की कोशिश कर रहा है; कोई क्रोधी है, शांत होने की कोशिश कर रहा है, कोई दुष्ट है, वह दयालु होने की कोशिश कर रहा है, कोई चोर है, वह दानी होने की कोशिश कर रहा है। यह हमारे सारे जीवन की व्यवस्था है जो हम हैं, उस पर हम कुछ थोपने की कोशिश में लगे हैं। हम सफल हों तो भी असफल, हम असफल हों तो भी असफल। क्योंकि चोर लाख उपाय करे तो दानी नहीं हो सकता। ही, दान कर सकता है। दानी नहीं हो सकता। दान करने से भ्रम पैदा हो सकता है कि चोर दानी हो गया। लेकिन चोर का चित्त दान में भी चोरी की तरकीबें निकाल लेगा।मैंने सुना है कि एकनाथ यात्रा पर जा रहे थे। तो गांव में एक चोर था, उसने एकनाथ से कहा कि मैं भी चलूं तीर्थयात्रा पर आपके साथ? बहुत पाप हो गए, गंगा—स्नान मैं भी कर आऊं। एकनाथ ने कहा, चलने में तो कोई हर्ज नहीं, बाकी भी सब तरह— तरह के चोर जा रहे हैं, तू भी चल सकता है। लेकिन एक बात है बाकी जो चोर मेरे साथ जा रहे हैं, वे कहते हैं कि उस चोर को मत ले चलना, नहीं तो हमारी सब चीजें रास्ते में गड़बड़ करेगा। तो तू एक पक्की शर्त बांध ले कि रास्ते में तीर्थयात्रियों के साथ चोरी नहीं करना। उसने कहा, कसम खाता हूं! जाने से लेकर आने तक चोरी नहीं करूंगा।
फिर तीर्थयात्रा शुरू हुई, वह चोर भी साथ हो गया। बाकी भी चोर थे, भिन्न—भिन्न तरह के चोर हैं। कोई एक तरह के चोर हैं? कई तरह के चोर हैं। कोई चोर मजिस्ट्रेट बनकर बैठा है, कोई चोर कुछ और बनकर बैठा है। सब तरह के चोर गए, वह चोर भी साथ गया। लेकिन चोरी की आदत! दिन भर तो गुजार दे, रात बड़ी मुश्किल में पड़ जाए; सब यात्री तो सो जाएं, उसकी बड़ी बेचैनी हो जाए, उसके धंधे का वक्त आ जाए। एक दिन, दो दिन.. .उसने कहा, मर जाएंगे, न मालूम तीन—चार महीने की यात्रा है, ऐसे कैसे चलेगा? और सबसे बड़ा खतरा यह है कि किसी तरह यात्रा भी गुजार दी और कहीं चोरी करना भूल गए तो और मुसीबत, लौटकर क्या करेंगे? कोई तीर्थ जिंदगी भर होता है?तीसरी रात गड़बड़ शुरू हो गई। पर गड़बड़ व्यवस्थित हुई, धार्मिक ढंग की हुई। चोरी तो उसने की, लेकिन तरकीब से की। एक बिस्तर में से सामान निकाला और दूसरे में डाल दिया, अपने पास न रखा। सुबह यात्री बड़े परेशान होने लगे किसी का सामान किसी की संदूक में मिले, और किसी का सामान किसी के बिस्तर में। सौ—पचास यात्री थे, बड़ी खोजबीन में मुश्किल हो गई। सबने कहा, यह मामला क्या है? यह हो क्या रहा है? चीजें जाती तो नहीं हैं, लेकिन इधर—उधर चली जाती हैं।
फिर एकनाथ को शक हुआ कि वही चोर होना चाहिए जो तीर्थयात्री बन गया है। तो वे रात जगते रहे। देखा कोई दो बजे रात वह चोर उठा और उसने एक की चीज दूसरे के पास करनी शुरू कर दी। एकनाथ ने उसे पकड़ा और कहा, यह क्या कर रहा है? उसने कहा कि मैंने कसम खा ली है कि चोरी न करूंगा। चोरी मैं बिलकुल नहीं कर रहा। लेकिन कम से कम चीजें इधर— उधर तो करने दें! मैं कोई चीज रखता नहीं, अपने लिए छूता नहीं, बस इधर से उधर कर देता हूं। यह तो मैंने आपसे कहा भी नहीं था कि ऐसा मैं नहीं करूंगा।
एकनाथ बाद में कहते थे, चोर अगर बदलने की भी कोशिश करे तो भी फर्क नहीं पड़ता।