सभ्य लोगों की आंतरिक विक्षिप्तता, आदमी बहुत चालाक है और वह अपनी कमजोरियों को भी अच्छे शब्दों में छिपा लेता है और दूसरे की श्रेष्ठताओं को भी बहुत बुरे शब्द देकर निश्चिंत हो जाता है “ओशो”

 सभ्य लोगों की आंतरिक विक्षिप्तता, आदमी बहुत चालाक है और वह अपनी कमजोरियों को भी अच्छे शब्दों में छिपा लेता है और दूसरे की श्रेष्ठताओं को भी बहुत बुरे शब्द देकर निश्चिंत हो जाता है “ओशो”

ओशो- विक्षिप्तता और स्वास्थ्य का एक ही लक्षण है जिसकी मालकियत हाथ में हो उसको स्वास्थ्य समझना, और जिसकी मालकियत हाथ में न हो उसको विक्षिप्तता समझना। अब यह बड़े मजे का क्राइटेरियन है। अब जो हो रहा है जिनको, जब मैं कहता हूं शांत हो जाएं, वे तत्काल शांत हो गए हैं। और वे जो स्वस्थ बैठे हैं, उनसे मैं कहूं कि अपने विचारों को शांत कर दो, वे कहते हैं, होता ही नहीं; हम कितना ही करें, वे नहीं होते। विक्षिप्त हैं आप, पागल हैं आप। जिस पर आपका वश नहीं है, वह पागलपन है; जिस पर आपका वश है, वह स्वास्थ्य है। जिस दिन आपके विचार ऑन—ऑफ कर सकेंगे आप—कि कह दें मन को कि बस, तो मन वहीं ठहर जाए—तब आप समझना कि स्वस्थ हुए। और आप कह रहे हैं बस, और मन कहता है, कहते रहो; हम जा रहे हैं जहां जाना है, जो कर रहे हैं, कर रहे हैं। सिर पटक रहे हैं, लेकिन वह मन जो करना है, कर रहा है। आप भगवान का भजन कर रहे हैं और मन सिनेमागृह में बैठा है तो वह कहता है—बैठेंगे, यही देखेंगे, करो भजन कितना ही!लेकिन आदमी बहुत चालाक है और वह अपनी कमजोरियों को भी अच्छे शब्दों में छिपा लेता है और दूसरे की श्रेष्ठताओं को भी बहुत बुरे शब्द देकर निश्चिंत हो जाता है। इससे बचना। सच तो यह है कि दूसरे के संबंध में सोचना ही मत। किस को क्या हो रहा है, कहना बहुत मुश्किल है। जीवन इतना रहस्यपूर्ण है कि दूसरे के संबंध में सोचना ही मत। अपने ही संबंध में सोच लेना, वही काफी है—कि मैं तो पागल नहीं हूं इतना सोच लेना। मैं कमजोर हूं ताकतवर हूं क्या हूं अपने बाबत सोचना। लेकिन हम सब सदा दूसरों के बाबत सोच रहे हैं कि किस को क्या हो रहा है? गलत है वह बात।

🍁🍁ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३🍁🍁
जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-04)