जीवन का भय मत करो, जीवन के सब रूप शुभ हैं, इन सभी रूपों में सजग भाव से गुजरो “ओशो”

 जीवन का भय मत करो, जीवन के सब रूप शुभ हैं, इन सभी रूपों में सजग भाव से गुजरो “ओशो”

ओशो– तीन सीढ़ियां हैं मनुष्य कीः शरीर, मन, आत्मा। और तब चौथी दशा हैः तुरीय। पलटू कहते हैं न कि तुरिया में चढ़कर बैठ गया हूं और तुरिया को ही बेच रहा हूं! वह चौथी अवस्था हैः परमात्मा। शरीर से अगर बचकर निकलना चाहा तो मुश्किल हो जाएगी; मन तक न पहुंच पाओगे। मन से अगर बचकर निकलना चाहा तो आत्मा तक न पहुंच पाओगे। और अगर आत्मा से बचकर निकलना चाहा तो परमात्मा तक न पहुंच पाओगे।शरीर पर चढ़ो हिम्मत से; शरीर के मालिक बनो। शरीर से डरने की कोई जरूरत नहीं है। इस घोड़े पर लगाम लगाई जा सकती है। मगर डरकर बैठो ही मत घोड़े पर, तो तुम इसके कभी मालिक न बन सकोगे। शरीर पर चढ़ो। शरीर की सीढ़ी पर पैर रखो, मन की भी सीढ़ी पर पैर रखो। मन बहुत-सी वासनाओं के जाल दिखाता है। उसमें चुन लो, बहुत-सी वासनाएं नहीं हैं। अगर बहुत गौर से देखोगे तो उंगलियों पर गिनी जा सकें, ऐसी वासनाएं हैं। कितनी बहुत-सी वासनाएं हैं? चूंकि दमन करते हो, इसलिए एक ही वासना हजार-हजार रूपों में प्रकट होती है? अगर उसको भोग ही लो, समाप्त हो जाती है।मन से चढ़ो तो आत्मा मिलती है।

कुछ लोग शरीर में अटक गए हैं। उनकी सारी जीवनचर्या बस शरीर में ही अटकी है। इनमें से कई लोग धार्मिक समझे जाते हैं। अटके हैं शरीर में–उपवास करना, स्नान करना, जनेऊ, और यह और वह–और सब शरीर का ही गोरखधंधा है। गंगा जाएंगे, तीर्थयात्रा करेंगे; मगर शरीर से पार नहीं हैं। शूद्र छू देगा तो स्नान करना पड़ेगा। शरीर की ही बुद्धि है; जैसे शरीर ही सब कुछ है। खूब घिस-घिस कर शरीर धोते रहेंगे। मगर इससे कुछ भीतर की स्वच्छता नहीं आती। अपना भोजन खुद ही बनाकर करेंगे, क्योंकि दूसरे के छुए भोजन में कहीं कुछ अशुद्धि हो जाए! मगर भोजन शरीर में जाता है; शरीर के पार नहीं जाता।

कुछ लोग हैं जो मन में उलझे हैं। उनकी झंझट यही है कि वासना से कैसे छूटें, विचार से कैसे छूटें, वृत्ति से कैसे छूटें। क्योंकि पतंजलि तो कह गए, चित्तवृत्ति-निरोध, तो ही योग होगा। तो यह चित्तवृत्ति का निरोध कैसे हो? वे वहीं उलझे हैं। वे रुग्ण होते जाते हैं, विक्षिप्त होते जाते हैं, पगलाते जाते हैं। किसी तरह बाहर तो संयम बांध-बांधकर खड़ा कर लेते हैं, लेकिन भीतर आग जलती है असंयम की।

कुछ लोग वहां से भी पार हो जाते हैं तो आत्मा में अटक जाते हैं। तो मैं-भाव में अटक जाते हैं, आत्मा में अटक जाते हैं, तो अहंकार में अटक जाते हैं।
उससे भी जो पार होता है वह परमात्मा में पहुंचता है।

ये तीन सीढ़ियां हैं जीवन की, इनके पार होना है। इन तीनों सीढ़ियों के पार प्रभु का मंदिर है। मगर अनुभव से ही पार हो सकता है कोई। चढ़कर ही गुजर कर ही पार हो सकता है कोई।

भय मत करो–जीवन का भय मत करो। जीवन शुभ है। जीवन के सब रूप शुभ हैं। इन सभी रूपों में सजग भाव से गुजरो।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३
अजहू चेत गवांर-(पलटू दास)
जानिये तो देव, नहीं तो पत्‍थर (प्रवचन-छठवां)