साहस को ठीक से जीना आ जाए, तो संत पैदा होता है और साहस को ठीक से जीना न आए, तो पापी पैदा हो जाता है

 साहस को ठीक से जीना आ जाए, तो संत पैदा होता है और साहस को ठीक से जीना न आए, तो पापी पैदा हो जाता है

ओशो- इस जगत के जो महानतम अपराधी हैं, उनके भीतर महानतम संत होने की संभावना है। जो बड़े से बड़ा पापी है, उसके बड़े से बड़े संत होने की संभावना है। असली कठिनाई तो उनकी है, जिनमें साहस नहीं है। किसी तरह का साहस नहीं है। जिनको तुम सज्जन कहते हो, वे अक्सर नपुंसक लोग हैं, जिनमें साहस नहीं है। जिनको तुम कहते हो यह आदमी बड़ा भला है, चोरी नहीं करता है–मगर इसकी चोरी न करने का कारण यह नहीं है कि इसके जीवन में अचौर्य फला है। इसकी चोरी न करने का कुल कारण इतना है कि यह पुलिस से डरता है, कि अदालत से डरता है, कि फंस न जाए। अगर इसको पक्का भरोसा दिला दो कि नहीं फंसेगा, तो यह चोरी करेगा। इसे चोरी में जरा भी एतराज नहीं है; इसे फंसने का डर है। यह भय के कारण चोरी नहीं कर रहा है। या हो सकता है, नरक का भय हो; या भगवान नाराज न हो जाए! मगर भय ही इसके आधार में है। भय के कारण जो सज्जन है, उसकी सज्जनता बहुत गहरी नहीं है–ऊपर ऊपर है; छिलके की तरह है; उसके हार्द में, उसकी आत्मा में नहीं है।

इसलिए तथाकथित सज्जन, जिनको रिस्पेक्टेबल, सम्मानित जन कहा जाता है–गांव के पंच, मुखिया, मेयर इत्यादि, जिनको सम्मानित लोग कहा जाता है–पद्मभूषण, भारत-रत्न इत्यादि; जिनको सम्मानित कहा जाता है, क्योंकि इनके जीवन में कुछ बुराई नहीं दिखाई पड़ती–इनके जीवन में इतनी आसानी से क्रांति नहीं होती। इनके जीवन में क्रांति करने वाला मौलिक तत्व नहीं है। इनके पास अहंकार तो खूब है और साहस बिलकुल नहीं।

इस कीमिया को समझ लो। साहस हो, अहंकार हो–तो अहंकार तोड़ा जा सकता है बहुत आसानी से। जितना साहस हो, उतनी ही आसानी से तोड़ा जा सकता है। वही साहस अहंकार के विपरीत लड़ाया जा सकता है और अहंकार टूट जाएगा। लेकिन जिनके जीवन में अहंकार तो खूब हो और साहस बिलकुल न हो, उनको बदलना बहुत कठिन है। क्योंकि उनके पास साहस न होने से अहंकार को तोड़ने के उपाय नहीं हैं, व्यवस्था नहीं है; अहंकार की अग्नि नहीं है; साहस की अग्नि नहीं है कि अहंकार को जला दे। राख है साहस के नाम पर।

इसलिए मैं तुमसे यह बात कहना चाहूंगा: साहस बहुत निर्णायक है। अगर तुम बुरे आदमी हो और साहस है, तो संभावना है। तुम भले आदमी हो और साहस है, तो भी संभावना है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सभी भले आदमियों में साहस नहीं होता। असल में भलाई करने के लिए भी साहस होता है; साहस की जरूरत होती है। जो आदमी झूठ नहीं बोलता, चाहे कुछ भी दांव पर लग जाए, उसके लिए भी साहस चाहिए।

आदमी झूठ साहस की कमी से ही बोलता है। सोचता है फंस जाऊंगा, तो झूठ बोल दूं। साहसी आदमी झूठ नहीं बोलता।
फर्क समझ लेना। एक तो सज्जन है, जो भय के कारण सज्जन है। और एक संत है, जो साहस के कारण संत है। वह कहता है: चाहे नरक जाना पड़े, लेकिन झूठ नहीं बोलूंगा, चाहे कुछ भी परिणाम हो जाए झूठ नहीं बोलूंगा, चोरी नहीं करूंगा। भय के कारण नहीं कर रहा है। अगर उलटी भी हालत आ जाए…

समझ लो कि परमात्मा का दिमाग खराब हो जाए और वह नियम बदल दे…वे तो कहते हैं न कि सर्वशक्तिमान है, नियम बदल दे–कि अब जो-जो चोरी करेंगे वे स्वर्ग जाएंगे और जो-जो अचौर्य-व्रत का पालन करेंगे, वे-वे नरक जाएंगे–तो यह जो सज्जन हैं, यह चोरी करेगा। इसे स्वर्ग जाना है, नरक से बचना है। और वह जो संत है, वह चोरी नहीं करेगा और नरक जाने की तत्परता रखेगा। वह कहेगा कि ठीक है। नरक और स्वर्ग का कोई मूल्य नहीं है। परिणाम का कोई मूल्य नहीं है। परिणाम भयभीत आदमी के लिए मूल्यवान मालूम होता है। साहसी व्यक्ति को कृत्य का मूल्य है, फल का नहीं।

इसलिए कृष्ण ने अर्जुन को कहा है: सारी फलाकांक्षा छोड़ कर…क्योंकि फल की आकांक्षा ही भयभीत आदमी को होती है। साहसी व्यक्ति तो कृत्य करता है जो कृत्य सामने आ जाए, उसे समग्रता से कर लेता है। फिर परिणाम जो हो। उसे अच्छा अच्छा लगता है तो अच्छा करता है। और उसे बुरा अच्छा लगता है तो बुरा करता है–परिणाम कुछ भी हो।

तो जिसको हम पापी कहते हैं, वह भी परिणाम की फिकर नहीं करता है; और जिसको हम संत कहते हैं, वह भी परिणाम की फिकर नहीं करता। दोनों साहसी होते हैं; फर्क थोड़ा सा है। पापी का अहंकार खोट की तरह मौजूद है। संत की खोट भी चली गई है; संत खालिस सोना है। लेकिन पापी भी सोना है, मौका आ जाए तो रूपांतरण हो सकता है।

लेकिन वे जो बीच में खड़े हैं, जिनमें साहस है ही नहीं, जिनमें रीढ़ है ही नहीं; जो बिलकुल ही निष्प्राण जी रहे हैं; जो सिर्फ डरे-डरे जी रहे हैं; बस हवा में कंपते हुए पत्ते की तरह चौबीस घंटे कंप रहे हैं–यह न हो जाए, यह न हो जाए, हर चीज से भयभीत हैं; जिनका जीवन भय की एक लंबी कथा है; बुराई नहीं करते तो, भय के कारण; और अगर भलाई करते हैं, तो भी भय के कारण; जिनका सारा आधारभूत जीवन भय है–ऐसे व्यक्ति के जीवन में धर्म की क्रांति नहीं हो पाती।

ऐसा ही समझो, वीणा है: अगर बजाना आ जाए तो परम संगीत पैदा होता है; बजाना न आए तो बड़े बेसुरे राग वीणा से निकलते हैं। साहस को ठीक से जीना आ जाए, तो संत पैदा होता है। साहस को ठीक से जीना न आए, तो पापी पैदा हो जाता है। मगर वीणा वही है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३

“अजहूं चेत गंवार -12”