पुत्र पिता में ही छिपा है, पिता बीज है, पुत्र उसी का अंकुर है, हिरण कश्यप को भी पता नहीं कि मेरे घर भक्त पैदा होगा “ओशो”

 पुत्र पिता में ही छिपा है, पिता बीज है, पुत्र उसी का अंकुर है, हिरण कश्यप को भी पता नहीं कि मेरे घर भक्त पैदा होगा “ओशो”

ओशो– हिरण कश्यप पिता है, पिता से ही पुत्र आता है, पुत्र पिता में ही छिपा है, पिता बीज है, पुत्र उसी का अंकुर है, हिरण कश्यप को भी पता नहीं कि मेरे घर भक्त पैदा होगा, मेरे घर और भक्त सोच भी नहीं सकता, मेरे प्राणों से आस्तिकता जन्मेगी, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता, लेकिन प्रहलाद जन्मा हिरण कश्यप से, हिरण कश्यप ने अपने को बचाने की चेष्टा शुरू कर दी, घबरा गया होगा, डरा होगा, ये छोटा सा अंकुर था प्रहलाद, इससे डर भी क्या था, फिर ये अपना ही था, इससे भय क्या था? लेकिन जीवन भर की मान्यताएं, जीवन भर की धारणाएं दाव पर लग गई होगी, संप्रदाय यानी हिरण कश्यप, धर्म यानी प्रहलाद, निश्चित ही हिरण कश्यप शक्तिशाली, प्रतिष्ठित है, सब ताकत उसके हाथ में है, प्रहलाद की सामर्थ्य क्या है, नया नया उगा अंकुर है, कोमल अंकुर है, सारी शक्ति तो अतीत की है, वर्तमान तो अभी-अभी आया है, ताजा ताजा है, बल क्या है वर्तमान का, पर मजा यही है कि वर्तमान जीतेगा और अतीत हारेगा, क्योंकि वर्तमान जीवंतता है और अतीत मौत है, हिरण कश्यप के पास सब था, फौज फांटे थे, पहाड़ पर्वत थे, वो जो चाहता करता, जो चाहा उसने करने की कोशिश भी की, फिर भी हारता गया, शक्ति नहीं जीतती, जीवन जीतता है, प्रतिष्ठा नहीं जीतती, सत्य जीतता है, जीवन को मिटा के भी तुम मिटा नहीं सकते, सत्य को तुम छिपा के भी छिपा नहीं सकते, दबा के भी दबा नहीं सकते, उभरेगा, हजार हजार रूपों में उभरेगा, हजार हजार गुना बलशाली होकर उभरेगा, लेकिन सदा यह भ्रांति होती है कि ताकत किनके हाथ में, ताकत तो अतीत के हाथ में होती है, समाज के हाथ में होती है, संप्रदाय के हाथ में होती है, राज्य के हाथ में होती है, जब कोई धार्मिक व्यक्ति पैदा होता है तो कोमल कोपल सा होता है, लगता है जरा सा धक्का दे देंगे मिट जाएगा, लेकिन आखिर में वही जीतता है, उस कोमल से, कोमल की चोट से महासाम्राज्य गिर जाते हैं, क्या बल है निर्बल का, निर्बल के बलराम, कुछ एक शक्ति है जो व्यक्ति की नहीं है, परमात्मा की है, हिरण कश्यप बलशाली है, वही उसकी निर्मलता सिद्ध हुई, प्रहलाद बिल्कुल निर्बल है, वही उसका बल सिद्ध हुआ, लेकिन वो चलता रहा, उसका गीत ना रुका, उसका भजन ना रोका, बाप के विपरीत भी चलता रहा, हिरण कश्यप, प्रहलाद के सामने कमजोर मालूम होने लगा होगा, आनंद के सामने दुख सदा कमजोर हो जाता है, हो ही जाएगा है ही कमजोर दुख नकार है आनंद विधायक ऊर्जा का आविर्भाव है दुख में कभी कोई फूल खिले हैं? कांटे ही लगते हैं प्रहलाद के फूल के सामने हिरण कश्यप का कांटा शर्मिंदा हो उठा होगा लज्जा से भर गया होगा ईर्षा से जल गया होगा यह ताज गी यह कुआरापन यह सुगंध यह संगीत यह प्रल्लाद के भगवान के नाम पर गाए गए गीत उसे बहुत बेचैन करने लगे होंगे, वह घबराने लगा, उसकी सांस घुटने लगी, उसे एक बार भी वही सूझा जो सूझता है नकार को नास्तिक को, निर्बल, दुर्बल को वही सुझा उसे, मिटा दो इसे, विध्वंस सूझा, प्रहलाद अपने गीत गाया चला गया, अपना गुनगुन उसने जारी रखी, अपने भजन में उसने व्यतिरोध ना आने दिया, पहाड़ से फेंका, पानी में डुबाया, आग में जलाया, लेकिन उसकी आस्तिकता पे आंच ना आई, उसके आस्तिक प्राणों में पिता के प्रति दुर्भाव पैदा ना हुआ, वही मृत्यु है आस्तिक की, जिस क्षण तुम्हारे मन में दुर्भाव आ जाए, उसी क्षण आस्तिक मर गया, जीसस को सूली लग गई, अंतिम क्षण में उन्होंने कहा, हे परमात्मा, इन सभी को माफ कर देना, क्योंकि ये जानते नहीं ये क्या कर रहे हैं, यह ना समझ है, कहीं ऐसा ना हो कि तू इनको दंड दे दे, ये दया के योग है, दंड के योग नहीं, शरीर मर गया, जीसस को मारना मुश्किल है, इस आस्तिकता को कैसे मारोगे? किस सूली पर लटकाओगे, किस आग में जलाओगे? ना प्रहलाद अपना गीत गाए चला गया, नास्तिकता विधवंशात्मक है, यही अर्थ है कि हिरण कश्यप की बहन है, अग्नि, हिरण कश्यप की बहन है अग्नि यानी विधवंश नास्तिकता सहोदर है, एक ही साथ पैदा हुए हैं जैसे एक ही पेट से पैदा हुए हैं जैसे भाई बहन जैसा नाता है जहां जहां नास्तिकता है वहां वहां होली का मौजूद होगी वो बहन है, वो छाया की तरह साथ लगी है, और आश्चर्य मत करो पूछा है आश्चर्य तो यही है कि वह सभी जगह बच जाता है और प्रभु के गुण गाता है आश्चर्य मत करो. जिससे प्रभु का गुणगान आ गया, जिसने एक बार उस स्वाद को चख लिया, उसे फिर कोई आग दुखी नहीं कर सकती, जिसने एक बार उस महाजीवन को जान लिया, फिर उसे कोई मृत्यु मार नहीं सकती, जिसने एक बार उसका सहारा पकड़ लिया, फिर उसे कोई बेसहारा नहीं कर सकता. आश्चर्य मत करो, आश्चर्य होता है, यह स्वाभाविक है, पर आश्चर्य मत करो, स्वभावत तब से इस देश में उस परम विजय के दिन को हम उत्सव की तरह मनाते रहे है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३