जिस दिन दुनिया में ब्रह्मचर्य से बच्चे आएंगे उस दिन से ही एक नये मनुष्य का जन्म होगा “ओशो”
सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन उर्जा रुपांतरण का विज्ञान)
ओशो- मैंने तो सुना है कि चीन में एक बार एक बड़ी प्रतियोगिता हुई और उस प्रतियोगिता में चीन के सबसे बड़े झूठ बोलने वाले लोग इकट्ठे हुए। झूठ बोलने की प्रतियोगिता थी कि कौन सबसे बड़ा झूठ बोलता है, उसको पहला पुरस्कार मिल जाएगा।
एक आदमी को पहला पुरस्कार मिल गया। और उसने यह बात बोली थी सिर्फ कि मैं एक बगीचे में गया। दो औरतें एक ही बेंच पर पांच मिनट तक चुप बैठी रहीं। और लोगों ने कहा कि इससे बड़ा झूठ कुछ भी नहीं हो सकता! यह तो अल्टीमेट अनट्रुथ हो गया। और भी बड़ी-बड़ी झूठ लोगों ने बोली थी। उन्होंने कहा, वह सब बेकार, पुरस्कार इसको दे दो। यह आदमी बाजी मार ले गया।
लेकिन कभी आपने सोचा कि स्त्रियां इतनी बातें क्यों करती हैं? पुरुष काम करते हैं, स्त्रियों के हाथ में कोई काम नहीं है। और जब काम नहीं होता तो बात होती है।
भारत इतनी बातचीत क्यों करता है? वही स्त्रियों वाला दुर्गुण है। काम कुछ भी नहीं है, बातचीत-बातचीत है।
ब्रह्मचर्य से एक नये मनुष्य का जन्म होगा, जो बातचीत करने वाला नहीं, जीने वाला होगा। वह धर्म की बात नहीं करेगा, धर्म को जीएगा। लोग भूल ही जाएंगे कि धर्म कुछ है, वह इतना स्वभाव हो सकता है। उस मनुष्य के बाबत विचार करना भी अदभुत है। वैसे कुछ मनुष्य पैदा होते रहे हैं। आकस्मिक था उनका पैदा होना।
कभी एक महावीर पैदा हो जाता है। ऐसा सुंदर आदमी पैदा हो जाता है कि अगर वह वस्त्र पहने तो उतना सुंदर न मालूम पड़े। नग्न खड़ा हो जाता है। उसके सौंदर्य की सुगंध फैल जाती है सब तरफ। लोग महावीर को देखने चले आते हैं। वह ऐसा मालूम होता है, संगमरमर की प्रतिमा हो। उसमें इतना वीर्य प्रकट होता है कि–उसका नाम तो वर्धमान था–लोग उसको महावीर कहने लगते हैं। उसके ब्रह्मचर्य का तेज इतना प्रकट होता है कि लोग अभिभूत हो जाते हैं कि वह आदमी ही और है।
कभी एक बुद्ध पैदा होता है, कभी एक क्राइस्ट पैदा होता है, कभी एक कनफ्यूशियस पैदा होता है। पूरी मनुष्य-जाति के इतिहास में दस-पच्चीस नाम हम गिन सकते हैं जो पैदा हुए हैं।
जिस दिन दुनिया में ब्रह्मचर्य से बच्चे आएंगे–और यह शब्द ही सुनना आपको अजीब लगेगा कि ब्रह्मचर्य से बच्चे! मैं एक नये ही कंसेप्ट की बात कर रहा हूं। ब्रह्मचर्य से जिस दिन बच्चे आएंगे, उस दिन सारे जगत के लोग ऐसे होंगे–ऐसे सुंदर, ऐसे शक्तिशाली, ऐसे मेधावी, ऐसे विचारशील। फिर कितनी देर होगी उन लोगों को कि वे परमात्मा को न जानें? वे परमात्मा को इसी भांति जानेंगे, जिस तरह हम रात को सोते हैं।
लेकिन जिस आदमी को नींद नहीं आती, उससे अगर कोई कहे कि मैं सिर्फ तकिए पर सिर रखता हूं और सो जाता हूं, तो वह आदमी कहेगा, यह बिलकुल गलत, झूठ बात है। मैं तो बहुत करवट बदलता हूं, उठता हूं, बैठता हूं, माला फेरता हूं, गाय-भैंस गिनता हूं; लेकिन कुछ नहीं! नींद आती नहीं। आप झूठ कहते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि तकिए पर सिर रखा और नींद आ जाए। तकिए पर सिर रखा और नींद आ जाती है? आप सरासर झूठ बोलते हैं! क्योंकि मैंने तो बहुत प्रयोग करके देख लिया; नींद तो कभी नहीं आती, रात-रात गुजर जाती है।
अमेरिका में न्यूयार्क जैसे नगरों में तीस से लेकर चालीस प्रतिशत लोग नींद की दवाएं लेकर सो रहे हैं। और अमेरिकी मनोवैज्ञानिक कहता है कि सौ वर्ष के भीतर न्यूयार्क जैसे नगर में एक भी आदमी सहज रूप से नहीं सो सकेगा, दवा लेनी ही पड़ेगी। तो यह हो सकता है कि न्यूयार्क में सौ साल बाद होगा, दो सौ साल बाद हिंदुस्तान में होगा; क्योंकि हिंदुस्तान के नेता इस बात के पीछे पड़े हैं कि हम उनका मुकाबला करके रहेंगे! हम उनसे पीछे नहीं रह सकते। वे कहते हैं कि हम उनसे पीछे नहीं रह सकते, उनकी सब बीमारियों में हम मुकाबला करके रहेंगे!
तो यह हो सकता है कि पांच सौ साल बाद सारी दुनिया के लोग नींद की दवा लेकर ही सोएं! और बच्चा जब पहली दफा पैदा हो मां के पेट से, तो वह दूध न मांगे, वह कहे–ट्रैंक्वेलाइजर! नौ महीने सो नहीं पाया तुम्हारे पेट में, ट्रैंक्वेलाइजर कहां है? तो पांच सौ साल बाद उन लोगों को यह विश्वास दिलाना कठिन होगा कि आज से पांच सौ साल पहले सारी मनुष्यता आंख बंद करती थी और सो जाती थी। वे कहेंगे, इंपासिबल! असंभव है यह बात। यह नहीं हो सकता। कैसे हो सकती है यह बात!
मैं आपसे कहता हूं, उस ब्रह्मचर्य से जो जीवन उपजेगा, उसको यह विश्वास करना कठिन हो जाएगा कि लोग चोर थे, लोग बेईमान थे, लोग हत्यारे थे, लोग आत्महत्याएं कर लेते थे, लोग जहर खाते थे, लोग शराब पीते थे, लोग छुरे भोंकते थे, लोग युद्ध करते थे। यह उनको विश्वास करना मुश्किल होगा कि यह कैसे हो सकता है?
काम से अब तक उत्पत्ति हुई है। और वह भी उस काम से जो फिजियोलाजिकल से ज्यादा नहीं है। एक आध्यात्मिक काम का जन्म हो सकता है और एक नये जीवन का प्रारंभ हो सकता है। उस नये जीवन के प्रारंभ के लिए ये थोड़ी सी बातें इन चार दिनों में मैंने आपसे कही हैं।
मेरी बातों को इतने प्रेम और इतनी शांति से–और ऐसी बातों को, जिन्हें प्रेम और शांति से सुनना बहुत मुश्किल गया होगा, बड़ी कठिनाई मालूम पड़ी होगी।
एक मित्र तो मेरे पास आए और कहने लगे कि मैं डर रहा था कि कहीं दस-बीस आदमी खड़े होकर यह न कहने लगें कि बंद करिए, यह बात नहीं होनी चाहिए!
मैंने कहा, इतने हिम्मतवर आदमी भी होते तो भी ठीक था। इतने हिम्मतवर आदमी भी कहां हैं कि किसी को कह दें कि बंद करिए यह बात! अगर इतने ही हिम्मतवर आदमी इस मुल्क में होते तो बेवकूफों की कतार, जो कुछ भी कह रही है मुल्क में, वह कभी की बंद हो गई होती। लेकिन वह बंद नहीं हो पा रही। मैंने कहा, मैं तो प्रतीक्षा करता हूं कि कभी कोई बहादुर आदमी खड़े होकर कहेगा कि बंद कर दो यह बात, उससे कुछ बात करने का मजा होगा।
तो ऐसी बातों को, जिनसे कि मित्र डरे हुए थे कि कहीं कोई खड़े होकर न कह दे, आप इतने प्रेम से सुनते रहे, आप बड़े भले आदमी हैं और जितना आपका ऋण मानूं उतना कम है। अंत में यही कामना करता हूं परमात्मा से कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर जो काम है, वह राम के मंदिर तक पहुंचाने की सीढ़ी बन सके। बहुत-बहुत धन्यवाद! और अंत में सबके भीतर बैठे हुए परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें। …..45 क्रमशः
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३