हिंदुस्तान में सारी दुनिया से ज्यादा उपदेशक क्यों हैं? महात्माओं की इतनी भीड़ और यह कतार क्यों है? इसलिए नहीं है कि आप बड़े धार्मिक देश हैं जहां कि संत-महात्मा पैदा होते हैं। यह इसलिए है कि आप इस समय पृथ्वी पर सबसे ज्यादा अधार्मिक और अनैतिक देश हैं “ओशो”
सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन उर्जा रुपांतरण का विज्ञान)
ओशो- गांव में चिकित्सक की तभी तक जरूरत है, जब तक लोग बीमार पड़ते हैं। जिस दिन आदमी बीमार पड़ना बंद कर देगा, उस दिन चिकित्सक को विदा कर देना पड़ेगा। तो हालांकि चिकित्सक ऊपर से बीमार का इलाज करता हुआ मालूम पड़ता है, लेकिन भीतर से उसके प्राणों की आकांक्षा यही होती है कि लोग बीमार पड़ते रहें। यह बड़ी उलटी बात है! क्योंकि चिकित्सक जीता है लोगों के बीमार पड़ने पर। उसका प्रोफेशन बड़ा कंट्राडिक्टरी है, उसका धंधा बड़ा विरोधी है। कोशिश तो उसकी यह है कि लोग बीमार पड़ते रहें। और जब मलेरिया फैलता है और फ्लू की हवाएं आती हैं, तो वह भगवान को एकांत में धन्यवाद देता है। क्योंकि यह धंधे का वक्त आया–सीजन!
मैंने सुना है, एक रात एक मधुशाला में बड़ी देर तक कुछ मित्र आकर खाना-पीना करते रहे, शराब पीते रहे। उन्होंने खूब मौज की। और जब वे चलने लगे आधी रात को तो शराबखाने के मालिक ने अपनी पत्नी को कहा कि भगवान को धन्यवाद, बड़े भले लोग आए। ऐसे लोग रोज आते रहें तो कुछ ही दिनों में हम मालामाल हो जाएं। विदा होते मेहमानों को सुनाई पड़ गया और जिसने पैसे चुकाए थे उसने कहा कि दोस्त, भगवान से प्रार्थना करो कि हमारा भी धंधा रोज चलता रहे, तो हम तो रोज आएं।
चलते-चलते उस शराबघर के मालिक ने पूछा कि भाई, तुम्हारा धंधा क्या है?
उसने कहा, मेरा धंधा पूछते हो, मैं मरघट पर लकड़ियां बेचता हूं मुर्दों के लिए। जब आदमी ज्यादा मरते हैं, तब मेरा धंधा चलता है, तब हम थोड़े खुश होते हैं। हमारा धंधा रोज चलता रहे, हम रोज यहां आते रहें।
चिकित्सक का धंधा है कि लोगों को ठीक करे। लेकिन फायदा, लाभ और शोषण इसमें है कि लोग बीमार पड़ते रहें। तो एक हाथ से चिकित्सक ठीक करता है और उसके प्राणों के प्राणों की प्रार्थना होती है कि मरीज जल्दी ठीक न हो जाए।
इसीलिए पैसे वाले मरीज को ठीक होने में बड़ी देर लगती है। गरीब मरीज जल्दी ठीक हो जाता है; क्योंकि गरीब मरीज को ज्यादा देर बीमार रहने से कोई फायदा नहीं है, चिकित्सक को कोई फायदा नहीं है। चिकित्सक को फायदा है अमीर मरीज से! तो अमीर मरीज लंबा बीमार रहता है। सच तो यह है कि अमीर अक्सर ही बीमार रहते हैं। वह चिकित्सक की प्रार्थनाएं काम कर रही हैं। उसकी आंतरिक इच्छा भी उसके हाथ को रोकती है कि मरीज एकदम ठीक ही न हो जाए।
उपदेशक की स्थिति भी ऐसी ही है। समाज जितना नीतिभ्रष्ट हो, जितना व्यभिचार फैले, जितना अनाचार फैले, उतना ही उपदेशक का मंच ऊपर उठने लगता है। क्योंकि जरूरत आ जाती है कि वह लोगों को कहे: अहिंसा का पालन करो, सत्य का पालन करो, ईमानदारी स्वीकार करो; यह व्रत पालन करो, वह व्रत पालन करो। अगर लोग व्रती हों, अगर लोग संयमी हों, अगर लोग शांत हों, ईमानदार हों, तो उपदेशक मर गया। उसकी कोई जगह न रही।
और हिंदुस्तान में सारी दुनिया से ज्यादा उपदेशक क्यों हैं? ये गांव-गांव गुरु और घर-घर स्वामी और संन्यासी क्यों हैं? यह महात्माओं की इतनी भीड़ और यह कतार क्यों है?
यह इसलिए नहीं है कि आप बड़े धार्मिक देश हैं जहां कि संत-महात्मा पैदा होते हैं। यह इसलिए है कि आप इस समय पृथ्वी पर सबसे ज्यादा अधार्मिक और अनैतिक देश हैं, इसलिए इतने उपदेशकों को पालने का ठेका और धंधा मिल जाता है। हमारा तो जातीय रोग हो गया।
मैंने सुना है कि अमेरिका में किसी ने एक लेख लिखा हुआ था। किसी मित्र ने वह लेख मेरे पास भेज दिया। उसमें एक कमी थी, उन्होंने मेरी सलाह चाही। किसी ने लेख लिखा था वहां–मजाक का कोई लेख था–उसने लिखा था कि हर आदमी और हर जाति का लक्षण शराब पिला कर पता लगाया जा सकता है कि बेसिक कैरेक्टर क्या है? तो उसने लिखा था कि अगर डच आदमी को शराब पिला दी जाए तो वह एकदम से खाने पर टूट पड़ता है, फिर वह किचेन के बाहर ही नहीं निकलता, फिर वह एकदम खाने की मेज से उठता ही नहीं। बस शराब पी कि वह दो-दो, तीन-तीन घंटे खाने में लग जाता है। अगर फ्रेंच को शराब पिला दी जाए तो शराब पीने के बाद वह एकदम नाच-गाने के लिए तत्पर हो जाता है। और अगर अंग्रेज को शराब पिला दी जाए तो वह एकदम चुप होकर एक कोने में मौन हो जाता है। वह वैसे ही चुप बैठा रहता है। और शराब पी ली, तो उसका कैरेक्टर है, वह और चुप हो जाता है। ऐसे दुनिया के सारे लोगों के लक्षण थे। लेकिन भूल से या अज्ञान के वश भारत के बाबत कुछ भी नहीं लिखा था। तो किसी मित्र ने मुझे लेख भेजा और कहा कि आप भारत के कैरेक्टर के बाबत क्या कहते हैं? अगर भारतीय को शराब पिलाई जाए तो क्या होगा?
तो मैंने कहा कि वह तो जग-जाहिर बात है। भारतीय शराब पीएगा और तत्काल उपदेश देना शुरू कर देगा। यह उसकी कैरेक्टरस्टिक है। वह उनका जातीय गुण है।
यह जो उपदेशकों का समाज और साधु-संतों और महात्माओं की ये लंबी कतार हैं, ये रोग के लक्षण हैं, ये अनीति के लक्षण हैं। और मजा यह है कि इनमें से कोई भी भीतरी हृदय से कभी नहीं चाहता कि अनीति मिट जाए, रोग मिट जाए; क्योंकि उसके मिटने के साथ वे भी मिट जाते हैं। प्राणों की पुकार यही होती है कि रोग बना रहे और बढ़ता चला जाए।
और उस रोग को बढ़ाने के लिए जो सबसे सुगम उपाय है, वह यह है कि जीवन के संबंध में सर्वांगीण ज्ञान उत्पन्न न हो सके। और जीवन के जो सबसे ज्यादा गहरे केंद्र हैं, जिनके अज्ञान के कारण अनीति और व्यभिचार और भ्रष्टाचार फैलता है, उन केंद्रों को आदमी कभी भी न जान सके। क्योंकि उन केंद्रों को जान लेने के बाद मनुष्य के जीवन से अनीति तत्काल विदा हो सकती है।
और मैं आपसे कहना चाहता हूं कि सेक्स मनुष्य की अनीति का सर्वाधिक केंद्र है। मनुष्य के व्यभिचार का, मनुष्य की विकृति का सबसे मौलिक, सबसे आधारभूत केंद्र वहां है। और इसीलिए धर्मगुरु उसकी बिलकुल बात नहीं करना चाहते!
एक मित्र ने मुझे खबर भिजवाई है कि कोई संत-महात्मा सेक्स की बात नहीं करता। और आपने सेक्स की बात की तो हमारे मन में आपका आदर बहुत कम हो गया है।
मैंने उनसे कहा, इसमें कुछ गलती न हुई। पहले आदर था, उसमें गलती थी। इसमें क्या गलती हुई? मेरे प्रति आदर होने की जरूरत क्या है? मुझे आदर देने का प्रयोजन क्या है? मैंने कब मांगा है कि मुझे आदर दें? देते थे तो आपकी गलती थी; नहीं देते हैं, आपकी कृपा है। मैं महात्मा नहीं रहा। मैंने कभी चाहा होता कि मैं महात्मा होऊं तो मुझे बड़ी पीड़ा होती। और मैं कहता, क्षमा करना, भूल से ये बातें मैंने कह दीं।
मैं महात्मा था नहीं, मैं महात्मा हूं नहीं, मैं महात्मा होना चाहता नहीं। जहां इतने बड़े जगत में इतने लोग दीन-हीन हैं, वहां एक आदमी महात्मा होना चाहे, उससे ज्यादा निम्न प्रवृत्ति और स्वार्थ से भरा हुआ आदमी नहीं है। जहां इतने दीन-हीन जन हैं, जहां इतनी हीन आत्माओं का विस्तार है, वहां महात्मा होने की कल्पना और विचार ही पाप है।
महान मनुष्यता मैं चाहता हूं। महान मनुष्य मैं चाहता हूं। महात्मा होने की मेरे मन में कोई भी इच्छा और आकांक्षा नहीं है। महात्माओं के दिन विदा हो जाने चाहिए। महात्माओं की कोई जरूरत नहीं। महान मनुष्य की जरूरत है। महान मनुष्यता की जरूरत है। ग्रेटमैन नहीं, ग्रेट ह्युमैनिटी! बड़े आदमी बहुत हो चुके। उनसे क्या फायदा हुआ? अब बड़े आदमियों की जरूरत नहीं, बड़ी आदमियत की जरूरत है।
तो मुझे बहुत अच्छा लगा कि कम से कम एक आदमी का इल्यूजन तो टूटा। एक आदमी तो डिसइल्यूजंड हुआ। एक आदमी को तो यह पता चल गया कि यह आदमी महात्मा नहीं है। एक आदमी का भ्रम टूट गया, यह भी बड़ी बात है।
वे शायद सोचे होंगे कि इस भांति कह कर वे शायद मुझे प्रलोभन दे रहे हैं कि मुझे महात्मा और महर्षि बनाया जा सकता है, अगर मैं इस तरह की बातें न करूं।
आज तक महर्षियों और महात्माओं को इसी तरह बनाया गया है। और इसीलिए उन कमजोर लोगों ने इस तरह की बातें नहीं कीं जिनसे महात्मापन छिन सकता था। अपने महात्मापन के बचा रखने के लिए–उस प्रलोभन में–जीवन का कितना अहित हो सकता है, इसका उन्होंने कोई भी खयाल नहीं किया है।
मुझे चिंता नहीं है, मुझे विचार भी नहीं है, मुझे खयाल भी नहीं है! और मुझे घबराहट ही होती है, जब कोई मुझे महात्मा मानना चाहे। और आज की दुनिया में महात्मा बन जाना और महर्षि बन जाना इतना आसान है, जिसका कोई हिसाब नहीं। हमेशा आसान रहा है। हमेशा आसान रहा है। वह सवाल नहीं है। सवाल यह है कि महान मनुष्य कैसे पैदा हो–उसके लिए हम क्या कर सकते हैं? क्या सोच सकते हैं? क्या खोज कर सकते हैं? और मुझे लगता है कि मैंने बुनियादी सवाल पर जो बातें आपसे कही हैं, वे आपके जीवन में एक दिशा तोड़ने में सहयोगी हो सकती हैं। उनसे एक मार्ग प्रकट हो सकता है। और क्रमशः आपकी वासना का रूपांतरण आत्मा की दिशा में हो सकता है। अभी हम वासना हैं, आत्मा नहीं। कल हम आत्मा भी हो सकते हैं। लेकिन वह होंगे कैसे? इसी वासना के सर्वांग रूपांतरण से! इसी शक्ति को निरंतर ऊपर से ऊपर ले जाने से!
जैसा मैंने कल आपको कहा, उस संबंध में भी बहुत से प्रश्न हैं, उसके संबंध में एक बात कहूंगा।
मैंने आपको कहा कि संभोग में समाधि की झलक का स्मरण रखें, रिमेंबरिंग रखें और उस बिंदु को पकड़ने की कोशिश करें–उस बिंदु को जो विद्युत की तरह संभोग के बीच में चमकता है समाधि का। एक क्षण को जो चमक आती है और विदा हो जाती है, उस बिंदु को पकड़ने की कोशिश करें कि वह क्या है? उसे जानने की कोशिश करें। उसको पकड़ लें पूरी तरह से कि वह क्या है?
और एक दफा उसे आपने पकड़ लिया, तो उस पकड़ में आपको दिखाई पड़ेगा कि उस क्षण में आप शरीर नहीं रह जाते हैं–बॉडीलेसनेस। उस क्षण में आप शरीर नहीं हैं। उस क्षण में एक झलक की तरह आप कुछ और हो गए हैं, आप आत्मा हो गए हैं।
और वह झलक आपको दिखाई पड़ जाए तो फिर उस झलक के लिए ध्यान के मार्ग से श्रम किया जा सकता है। उस झलक को फिर ध्यान की तरफ से पकड़ा जा सकता है। उस झलक को फिर ध्यान के रास्ते से जाकर परिपूर्ण रूप से, पूरे रूप से जाना और जीया जा सकता है। और वह अगर हमारे ज्ञान, जानने और जीवन का हिस्सा बन जाए तो आपके जीवन में सेक्स की कोई जगह नहीं रह जाएगी।…. 43 क्रमशः