गांधी के भक्त और गांधी के अनुयायी गांधी को इतने दूर तक स्मरण कराने में कभी भी सफल नहीं हो सकते थे, जितना अकेले गोडसे ने कर दिया है क्यूंकि खाट पर मरने वाले हमेशा के लिए मर जाते हैं, गोली खाकर मरने वालों का मरना बहुत मुश्किल हो जाता है “ओशो”

 गांधी के भक्त और गांधी के अनुयायी गांधी को इतने दूर तक स्मरण कराने में कभी भी सफल नहीं हो सकते थे, जितना अकेले गोडसे ने कर दिया है क्यूंकि खाट पर मरने वाले हमेशा के लिए मर जाते हैं, गोली खाकर मरने वालों का मरना बहुत मुश्किल हो जाता है “ओशो”

सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन उर्जा रुपांतरण का विज्ञान)

ओशो- जीसस क्राइस्ट को दुनिया कभी की भूल गई होती, अगर उसको सूली पर न लटकाया गया होता। जीसस क्राइस्ट को दुनिया कभी की भूल गई होती, अगर उसको सूली न मिली होती। सूली देने वाले ने बड़ी कृपा की।
और मैंने तो यहां तक सुना है कुछ इनर सर्किल्स में–जो जीवन की गहराइयों की खोज करते हैं, उनसे मुझे यह भी ज्ञात हुआ है–कि जीसस ने खुद अपनी सूली लगवाने के लिए योजना और षड्‌यंत्र किया था। जीसस ने चाहा था कि मुझे सूली लगा दी जाए। क्योंकि सूली लगते ही, जो जीसस ने कहा है, वह करोड़ों-करोड़ों वर्ष के लिए अमर हो जाएगा और हजारों लोगों के, लाखों लोगों के काम आ सकेगा।
इस बात की बहुत संभावना है। क्योंकि जुदास, जिसने ईसा को बेचा तीस रुपयों में, वह ईसा के प्यारे से प्यारे शिष्यों में से एक था। और यह संभव नहीं है कि जो वर्षों से ईसा के पास रहा हो, वह सिर्फ तीस रुपये में ईसा को बेच दे, सिवाय इसके कि ईसा ने उसको कहा हो कि तू कोशिश कर, दुश्मन से मिल जा, और किसी तरह मुझे उलझा दे और सूली लगवा दे! ताकि मैं जो कह रहा हूं, वह अमृत का स्थान ले ले और करोड़ों लोगों का उद्धार बन जाए।
महावीर को अगर सूली लगी होती तो दुनिया में केवल तीस लाख जैन नहीं होते, तीस करोड़ हो सकते थे। लेकिन महावीर शांति से मर गए, सूली का उन्हें पता भी नहीं था। न किसी ने लगाई, न उन्होंने लगवाने की व्यवस्था की। आज आधी दुनिया ईसाई है। उसका सिवाय इसके कोई कारण नहीं कि ईसा अकेला सूली पर लटका हुआ है–न बुद्ध, न मोहम्मद, न महावीर, न कृष्ण, न राम। सारी दुनिया भी ईसाई हो सकती है। वह सूली पर लटकने से यह फायदा हो गया।
तो मैं उनसे कहता हूं कि जल्दी मत करना, नहीं तो नुकसान में पड़ जाओगे।
दूसरी बात यह कहना चाहता हूं कि घबराएं न वे। मेरे इरादे खाट पर मरने के हैं भी नहीं। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि कोई न कोई गोली मार ही दे! तो मैं खुद ही कोशिश करूंगा, जल्दी उनको करने की आवश्यकता नहीं है। समय आने पर मैं चाहूंगा कि कोई गोली मार ही दे! जिंदगी भी काम आती है और गोली लग जाए तो मौत भी काम आती है और जिंदगी से ज्यादा काम आ जाती है। जिंदगी जो नहीं कर पाती है, वह गोली लगी हुई मौत कर देती है।
अब तक हमेशा यह भूल की है दुश्मनों ने, नासमझी की है। सुकरात को जिन्होंने सूली पर लटका दिया, जिन्होंने जहर पिला दिया; मंसूर को जिन्होंने सूली पर लटका दिया; और अभी गोडसे ने गांधी को गोली मार दी। गोडसे को पता नहीं कि गांधी के भक्त और गांधी के अनुयायी गांधी को इतने दूर तक स्मरण कराने में कभी भी सफल नहीं हो सकते थे, जितना अकेले गोडसे ने कर दिया है। और अगर गांधी ने मरते वक्त, जब उन्हें गोली लगी और हाथ जोड़ कर गोडसे को नमस्कार किया होगा, तो बड़ा अर्थपूर्ण था वह नमस्कार। वह अर्थपूर्ण था कि मेरा अंतिम शिष्य सामने आ गया। अब जो मुझे आखिरी और हमेशा के लिए अमर किए दे रहा है। भगवान ने आदमी भेज दिया जिसकी जरूरत थी।
जिंदगी का ड्रामा, वह जो जिंदगी की कहानी है, वह बहुत उलझी हुई है। वह इतनी आसान नहीं है। खाट पर मरने वाले हमेशा के लिए मर जाते हैं, गोली खाकर मरने वालों का मरना बहुत मुश्किल हो जाता है।
सुकरात से किसी ने पूछा–उसके मित्रों ने–कि अब तुम्हें जहर दे दिया जाएगा और तुम मर जाओगे, तो हम तुम्हारे गाड़ने की कैसी व्यवस्था करें? जलाएं, कब्र बनाएं, क्या करें?
सुकरात ने कहा, पागलो, तुम्हें पता नहीं है कि तुम मुझे नहीं गाड़ सकोगे। तुम जब सब मिट जाओगे, तब भी मैं जिंदा रहूंगा। मैंने मरने की तरकीब जो चुनी है, वह हमेशा जिंदा रहने वाली है।
तो वे मित्र अगर कहीं हों तो उनको पता होना चाहिए, जल्दी न करें। जल्दी में नुकसान हो जाएगा उनका। मेरा कुछ होने वाला नहीं है। क्योंकि जिसको गोली लग सकती है, वह मैं नहीं हूं; और जो गोली लगने के बाद भी पीछे बच जाता है, वही हूं। तो वे जल्दी न करें। और दूसरी बात यह कि वे घबराएं भी न। मैं हर तरह की कोशिश करूंगा कि खाट पर न मर सकूं। वह मरना बड़ा गड़बड़ है। वह बेकार ही मर जाना है। वह निरर्थक मर जाना है। मर जाने की भी सार्थकता चाहिए। और तीसरी बात यह कि वे दस्तखत करने से न घबराएं, न पता लिखने से घबराएं। क्योंकि अगर मुझे लगे कि कोई आदमी मारने को तैयार हो गया है, तो वह जहां मुझे बुलाएगा, मैं चुपचाप बिना किसी को खबर किए वहां आने को हमेशा तैयार हूं, ताकि उस पर पीछे कोई मुसीबत न आए।
लेकिन ये पागलपन सूझते हैं। इस तरह के धार्मिक…और जिस बेचारे ने लिखा है, उसने यही सोच कर लिखा है कि वह धर्म की रक्षा कर रहा है। उसने यही सोच कर लिखा है कि मैं धर्म को मिटाने की कोशिश कर रहा हूं, वह धर्म की रक्षा कर रहा है। उसकी नीयत में कहीं कोई खराबी नहीं है। उसके भाव बड़े अच्छे और बड़े धार्मिक हैं। ऐसे ही धार्मिक लोग तो दुनिया को दिक्कत में डालते रहे हैं। उनकी नीयत बड़ी अच्छी है, लेकिन बुद्धि मूढ़ता की है।
तो हजारों साल से तथाकथित नैतिक लोगों ने जीवन के सत्यों को पूरा-पूरा प्रकट होने में बाधा डाली है, उसे प्रकट नहीं होने दिया। नहीं प्रकट होने के कारण एक अज्ञान व्यापक हो गया। और उस अज्ञान की अंधेरी रात में हम टटोल रहे हैं, भटक रहे हैं, गिर रहे हैं। और वे मॉरल टीचर्स, वे नीतिशास्त्र के उपदेशक, हमारे इस अंधकार के बीच में मंच बना कर उपदेश देने का काम करते रहते हैं!
यह भी सच है कि जिस दिन हम अच्छे लोग हो जाएंगे, जिस दिन हमारे जीवन में सत्य की किरण आएगी, समाधि की कोई झलक आएगी, जिस दिन हमारा सामान्य जीवन भी परमात्म-जीवन में रूपांतरित होने लगेगा, उस दिन उपदेशक व्यर्थ हो जाएंगे, उनकी कोई जगह नहीं रह जाने वाली है। उपदेशक तभी तक सार्थक है, जब तक लोग अंधेरे में भटकते हैं। ……. 42 क्रमशः 

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3