अगर विवाह दो पंडितों के और दो ज्योतिषियों के हिसाब-किताब से निकलता हो, और जाति के विचार से निकलता हो, और धन के विचार से निकलता हो, तो वैसा विवाह कभी भी शरीर से ज्यादा गहरा नहीं जा सकता

 अगर विवाह दो पंडितों के और दो ज्योतिषियों के हिसाब-किताब से निकलता हो, और जाति के विचार से निकलता हो, और धन के विचार से निकलता हो, तो वैसा विवाह कभी भी शरीर से ज्यादा गहरा नहीं जा सकता

सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन उर्जा रुपांतरण का विज्ञान)ओशो– एक मित्र ने पूछा है कि मैंने कहा कि काम का रूपांतरण ही प्रेम बनता है। तो उन्होंने पूछा है कि भगवान, मां का बेटे के लिए प्रेम–क्या वह भी काम है, वह भी सेक्स है?

और भी कुछ लोगों ने इसी तरह के प्रश्न पूछे हैं।
इसे थोड़ा समझ लेना उपयोगी होगा।
अगर मेरी बात आपने ध्यान से सुनी है, तो मैंने कहा कि सेक्स के अनुभव की बड़ी गहराइयां हैं जिन तक आदमी पहुंच भी नहीं पाता है। तीन तल हैं सेक्स के अनुभव के, वह मैं आपसे कहूं।
एक तल तो शरीर का तल है–बिलकुल फिजियोलाजिकल। एक आदमी वेश्या के पास जाता है। उसे जो सेक्स का अनुभव होता है, वह शरीर से गहरा नहीं हो सकता। वेश्या शरीर बेच सकती है, मन नहीं बेचा जा सकता। और आत्मा के बेचने का तो कोई उपाय नहीं है। शरीर मिल सकता है। एक आदमी बलात्कार करता है, तो बलात्कार में किसी का मन भी नहीं मिल सकता और किसी की आत्मा भी नहीं। शरीर पर बलात्कार किया जा सकता है, आत्मा पर बलात्कार करने का न कोई उपाय खोजा जा सका है, न खोजा जा सकता है। तो बलात्कार में भी जो अनुभव होगा, वह शरीर का होगा।
सेक्स का प्राथमिक अनुभव शरीर से ज्यादा गहरा नहीं होता। लेकिन शरीर के अनुभव पर ही जो रुक जाते हैं, वे सेक्स के पूरे अनुभव को उपलब्ध नहीं होते। उन्हें, मैंने जो गहराइयों की बातें कही हैं, उसका उन्हें कोई भी पता नहीं चल सकता। और अधिक लोग शरीर के तल पर ही रुक गए हैं।
इस संबंध में यह भी जान लेना जरूरी है कि जिन देशों में भी प्रेम के बिना विवाह होता है, उस देश में सेक्स शरीर के तल पर ही रुक जाता है, उससे गहरा नहीं जा सकता। विवाह दो शरीरों का हो सकता है, विवाह दो आत्माओं का नहीं। दो आत्माओं का प्रेम हो सकता है। तो अगर प्रेम से विवाह निकलता हो, तब तो विवाह एक गहरा अर्थ ले लेता है। और अगर विवाह दो पंडितों के और दो ज्योतिषियों के हिसाब-किताब से निकलता हो, और जाति के विचार से निकलता हो, और धन के विचार से निकलता हो, तो वैसा विवाह कभी भी शरीर से ज्यादा गहरा नहीं जा सकता।
लेकिन ऐसे विवाह का एक फायदा है। शरीर मन की बजाय ज्यादा स्थिर चीज है। इसलिए शरीर जिन समाजों में विवाह का आधार है, उन समाजों में विवाह सुस्थिर होगा, जीवन भर चल जाएगा। शरीर अस्थिर चीज नहीं है। शरीर बहुत स्थिर चीज है। उसमें परिवर्तन बहुत धीरे-धीरे आता है और पता भी नहीं चलता। शरीर जड़ता का तल है। इसलिए जिन समाजों ने यह समझा कि विवाह को स्थिर बनाना जरूरी है–एक ही विवाह पर्याप्त हो, बदलाहट की जरूरत न पड़े, उनको प्रेम अलग कर देना पड़ा। क्योंकि प्रेम होता है मन से और मन चंचल है।
जो समाज प्रेम के आधार पर विवाह को निर्मित करेंगे, उन समाजों में तलाक अनिवार्य होगा। उन समाजों में विवाह परिवर्तित होगा; विवाह स्थायी व्यवस्था नहीं हो सकती। क्योंकि प्रेम तरल है।
मन चंचल है। शरीर स्थिर और जड़ है।
आपके घर में एक पत्थर पड़ा हुआ है। सुबह पत्थर पड़ा था, सांझ भी पत्थर वहीं पड़ा रहेगा। सुबह एक फूल खिला था, सांझ तक मुर्झा जाएगा और गिर जाएगा। फूल जिंदा है, जन्मेगा, जीएगा, मरेगा। पत्थर मुर्दा है, वैसे का वैसा सुबह था, वैसा ही शाम पड़ा रहेगा। पत्थर बहुत स्थिर है।
विवाह पत्थर की तरह है। शरीर के तल पर जो विवाह है, वह स्थिरता लाता है, समाज के हित में है। लेकिन एक-एक व्यक्ति के अहित में है। क्योंकि वह स्थिरता शरीर के तल पर लाई गई है और प्रेम से बचा गया है। इसलिए शरीर के तल से ज्यादा पति और पत्नी का संभोग और सेक्स नहीं पहुंच पाता गहरे में। एक यांत्रिक, एक मैकेनिकल रूटीन हो जाती है। एक यंत्र की भांति जीवन हो जाता है सेक्स का। उस अनुभव को रिपीट करते रहते हैं और जड़ होते चले जाते हैं। लेकिन उससे ज्यादा गहराई कभी भी नहीं मिलती।
जहां प्रेम के बिना विवाह होता है उस विवाह में और वेश्या के पास जाने में बुनियादी भेद नहीं है, थोड़ा सा भेद है। बुनियादी नहीं है वह। वेश्या को आप एक दिन के लिए खरीदते हैं और पत्नी को आप पूरे जीवन के लिए खरीदते हैं। इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। जहां प्रेम नहीं है, वहां खरीदना ही है, चाहे एक दिन के लिए खरीदो, चाहे पूरी जिंदगी के लिए खरीदो। हालांकि साथ रहने से रोज-रोज एक तरह का संबंध पैदा हो जाता है एसोसिएशन से। लोग उसी को प्रेम समझ लेते हैं। वह प्रेम नहीं है। प्रेम और ही बात है। शरीर के तल पर विवाह है इसलिए शरीर के तल से गहरा संबंध कभी भी नहीं उत्पन्न हो पाता। यह एक तल है।
दूसरा तल है सेक्स का–मन का तल, साइकोलाजिकल। वात्स्यायन से लेकर पंडित कोक तक जिन लोगों ने भी इस तरह के शास्त्र लिखे हैं सेक्स के बाबत, वे शरीर के तल से गहरे नहीं जाते। दूसरा तल है मानसिक। जो लोग प्रेम करते हैं और फिर विवाह में बंधते हैं, उनका सेक्स शरीर के तल से थोड़ा गहरा जाता है। वह मन तक जाता है। उसकी गहराई साइकोलाजिकल है। लेकिन वह भी रोज-रोज पुनरुक्त होने से थोड़े दिनों में शरीर के तल पर आ जाता है और यांत्रिक हो जाता है।
पश्चिम ने जो व्यवस्था विकसित की है दो सौ वर्षों में प्रेम-विवाह की, वह मानसिक तल तक सेक्स को ले जाती है। और इसीलिए पश्चिम में समाज अस्तव्यस्त हो गया है; क्योंकि मन का कोई भरोसा नहीं है। वह आज कहता है कुछ, कल कुछ कहने लगता है। सुबह कुछ कहता है, सांझ कुछ कहने लगता है। घड़ी भर पहले कुछ कहता है, घड़ी भर बाद कुछ कहने लगता है।
शायद आपने सुना होगा कि बायरन ने जब शादी की, तो कहते हैं कि तब तक वह कोई साठ-सत्तर स्त्रियों से संबंधित रह चुका था। एक स्त्री ने उसे मजबूर ही कर दिया विवाह के लिए। तो उसने विवाह किया। और जब वह चर्च से उतर रहा था विवाह करके अपनी पत्नी का हाथ हाथ में लेकर–घंटियां बज रही हैं चर्च की; मोमबत्तियां अभी जो जलाई गई हैं, जल रही हैं; अभी जो मित्र स्वागत करने आए थे, वे विदा हो रहे हैं; और वह अपनी पत्नी का हाथ पकड़ कर सामने खड़ी घोड़ागाड़ी में बैठने के लिए चर्च की सीढ़ियां उतर रहा है–तभी उसे चर्च के सामने ही एक और स्त्री जाती हुई दिखाई पड़ी। एक क्षण को वह भूल गया अपनी पत्नी को, उसके हाथ को, अपने विवाह को। सारा प्राण उस स्त्री का पीछा करने लगा।
जाकर वह गाड़ी में बैठा। बहुत ईमानदार आदमी रहा होगा। उसने अपनी पत्नी से कहा कि तूने कुछ ध्यान दिया? एक अजीब घटना घट गई। कल तक तुझसे मेरा विवाह नहीं हुआ था तो मैं विचार करता था कि तू मुझे मिल पाएगी या नहीं? तेरे सिवाय मुझे कोई भी नहीं दिखाई पड़ता था। और आज जब कि विवाह हो गया है, मैं तेरा हाथ पकड़ कर नीचे उतर रहा हूं, मुझे एक स्त्री दिखाई पड़ी गाड़ी के उस तरफ जाती हुई–और तू मुझे भूल गई और मेरा मन उस स्त्री का पीछा करने लगा। और एक क्षण को मुझे लगा कि काश, यह स्त्री मुझे मिल जाए!
मन इतना चंचल है। तो जिन लोगों को समाज को व्यवस्थित रखना था, उन्होंने मन के तल पर सेक्स को नहीं जाने दिया, उन्होंने शरीर के तल पर रोक लिया। विवाह करो, प्रेम नहीं। फिर विवाह से प्रेम आता हो तो आए, न आता हो न आए। शरीर के तल पर स्थिरता हो सकती है। मन के तल पर स्थिरता बहुत मुश्किल है।
लेकिन मन के तल पर सेक्स का अनुभव शरीर से ज्यादा गहरा होता है। पूरब की बजाय पश्चिम का सेक्स का अनुभव ज्यादा गहरा है। तो पश्चिम के जो मनोवैज्ञानिक हैं फ्रायड से जुंग तक, उन सारे लोगों ने जो भी लिखा है, वह सेक्स की दूसरी गहराई है, वह मन की गहराई है।
लेकिन मैं जिस सेक्स की बात कर रहा हूं, वह तीसरा तल है। वह न आज तक पूरब में पैदा हुआ है, न पश्चिम में। वह तीसरा तल है–स्प्रिचुअल। वह तीसरा तल है–आध्यात्मिक।
शरीर के तल पर भी एक स्थिरता है, क्योंकि शरीर जड़ है। और आत्मा के तल पर भी एक स्थिरता है, क्योंकि आत्मा के तल पर कोई परिवर्तन कभी होता ही नहीं। वहां सब शांत है, वहां सब सनातन है। बीच में एक तल है मन का, जहां तरलता है, पारे की तरह तरल है मन, जरा में बदल जाता है। ……. 37 क्रमशः 

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3