श्रेष्ठ आत्माओं की पुकार के लिए श्रेष्ठ संभोग का अवसर और सुविधा चाहिए, महावीर या बुद्ध या क्राइस्ट और कृष्ण आकस्मिक रूप से पैदा नहीं हो जाते हैं “ओशो”
सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान)
ओशो- मैं इस संदर्भ में आपसे यह कहना चाहता हूं कि स्त्री और पुरुष दो अपोजिट पोल्स हैं विद्युत के–पाजिटिव और निगेटिव, विधायक और नकारात्मक दो छोर हैं। उन दोनों के मिलन से एक संगीत पैदा होता है; विद्युत का पूरा चक्र पैदा होता है।
मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूं कि जैसा मैंने कहा कि अगर गहराई और देर तक संभोग थिर रह जाए–स्त्री और पुरुष का एक जोड़ा अगर आधे घंटे के पार तक संभोग में रह जाए–तो दोनों के पास प्रकाश का एक वलय, दोनों के पास प्रकाश का एक घेरा निर्मित हो जाता है। दोनों की विद्युत जब पूरी तरह मिलती है तो आस-पास अंधेरे में भी एक रोशनी दिखाई पड़ने लगती है। कुछ अदभुत खोजियों ने उस दिशा में काम किया है और फोटोग्राफ भी लिए हैं। जिस जोड़े को उस विद्युत का अनुभव उपलब्ध हो जाता है, वह जोड़ा सदा के लिए संभोग के बाहर हो जाता है।
लेकिन यह हमारा अनुभव नहीं है। और ये बातें अजीब लगेंगी, कि यह तो हमारे अनुभव में नहीं है यह बात। अगर अनुभव में नहीं है तो उसका मतलब है कि आप फिर से सोचें, फिर से देखें और जिंदगी को–कम से कम सेक्स की जिंदगी को–क ख ग से फिर से शुरू करें, समझने के लिए, बोधपूर्वक जीने के लिए।
मेरी अपनी अनुभूति यह है, मेरी अपनी धारणा यह है कि महावीर या बुद्ध या क्राइस्ट और कृष्ण आकस्मिक रूप से पैदा नहीं हो जाते हैं। यह उन दो व्यक्तियों के परिपूर्ण मिलन का परिणाम है। मिलन जितना गहरा होगा, जो संतति पैदा होगी वह उतनी ही अदभुत होगी। मिलन जितना अधूरा होगा, जो संतति पैदा होगी वह उतनी ही कचरा और दलित होगी।
आज सारी दुनिया में मनुष्यता का स्तर रोज नीचे चला जा रहा है। लोग कहते हैं कि नीति बिगड़ गई है, इसलिए स्तर नीचे जा रहा है। लोग कहते हैं कि कलियुग आ गया है, इसलिए स्तर नीचे जा रहा है। गलत, बेकार की और फिजूल की बातें कहते हैं। सिर्फ एक फर्क पड़ा है। मनुष्य के संभोग का स्तर नीचे उतर गया है। मनुष्य के संभोग ने पवित्रता खो दी है। मनुष्य के संभोग ने वैज्ञानिकता खो दी है, सरलता और प्राकृतिकता खो दी है। मनुष्य का संभोग जबरदस्ती, एक नाइटमेयर, एक दुखद स्वप्न जैसा हो गया है। मनुष्य के संभोग ने एक हिंसात्मक स्थिति ले ली है। वह एक प्रेमपूर्ण कृत्य नहीं है, वह एक पवित्र और शांत कृत्य नहीं है, वह एक ध्यानपूर्ण कृत्य नहीं है। इसलिए मनुष्य नीचे उतरता चला जाएगा।
एक कलाकार कुछ चीज बनाता हो–कोई मूर्ति बनाता हो–और कलाकार नशे में हो, तो आप आशा करते हैं कि कोई सुंदर मूर्ति बन पाएगी? एक नृत्यकार नाच रहा हो, क्रोध से भरा हो, अशांत हो, चिंतित हो, तो आप आशा करते हैं कि नृत्य सुंदर हो सकेगा?
हम जो भी करते हैं, वह हम किस स्थिति में हैं, इस पर निर्भर होता है। और सबसे ज्यादा उपेक्षित, निग्लेक्टेड सेक्स है, संभोग है। और बड़े आश्चर्य की बात है, उसी संभोग से जीवन की सारी यात्रा चलती है! नये बच्चे, नई आत्माएं जगत में प्रवेश करती हैं!
शायद आपको पता न हो, संभोग एक सिचुएशन है, जिसमें एक आकाश में उड़ती हुई आत्मा अपने योग्य स्थिति को समझ कर प्रविष्ट होती है। आप सिर्फ एक अवसर पैदा करते हैं। आप बच्चे के जन्मदाता नहीं हैं, सिर्फ एक अवसर पैदा करते हैं। वह अवसर जिस आत्मा के लिए जरूरी, उपयोगी और सार्थक मालूम होता है, वह आत्मा प्रविष्ट होती है।
अगर आपने एक रुग्ण अवसर पैदा किया है, अगर क्रोध में, दुख में, पीड़ा में और चिंता में आप हैं, तो जो आत्मा अवतरित होगी वह आत्मा इसी तल की हो सकती है, इससे ऊंचे तल की नहीं हो सकती है। श्रेष्ठ आत्माओं की पुकार के लिए श्रेष्ठ संभोग का अवसर और सुविधा चाहिए, तो श्रेष्ठ आत्माएं जन्मती हैं और जीवन ऊपर उठता है।
इसलिए मैंने कहा कि जिस दिन आदमी संभोग के पूरे शास्त्र में निष्णात होगा, जिस दिन हम छोटे-छोटे बच्चों से लेकर सारे जगत को उस कला और विज्ञान के संबंध में सारी बात कह सकेंगे और समझा सकेंगे, उस दिन हम बिलकुल नये मनुष्य को–जिसे नीत्शे सुपरमैन कहता था, जिसे अरविंद अतिमानव कहते थे, जिसको महान आत्मा कहा जा सके–वैसा बच्चा, वैसी संतति, वैसा जगत निर्मित किया जा सकता है। और जब तक हम ऐसा जगत निर्मित नहीं कर लेते हैं, तब तक न शांति हो सकती है विश्व में, न युद्ध रुक सकते हैं, न घृणा रुकेगी, न अनीति रुकेगी, न दुश्चरित्रता रुकेगी, न व्यभिचार रुकेगा, न जीवन का यह अंधकार रुकेगा। लाख राजनीतिज्ञ चिल्लाते रहें…
(बारिश की हलकी बौछारें, श्रोताओं में कुछ हलन-चलन।)
मत फिक्र करें, यह पांच मिनट के पानी गिरने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बंद कर लें छाते! क्योंकि दूसरे लोगों के पास छाते नहीं हैं; यह बहुत अधार्मिक होगा कि कुछ लोग छाता खोल लें। उसे बंद कर लें! सबके पास छाते होते तो ठीक था। और लोगों के पास नहीं हैं और आप खोल कर बैठेंगे तो कैसा बेहूदा होगा, कैसा असंस्कृत होगा। उसको बंद कर लें! मैं जरूर, मेरे ऊपर छप्पर है, तो जितनी देर आप पानी में बैठे रहेंगे, मीटिंग के बाद उतनी देर मैं पानी में खड़ा हो जाऊंगा।
…नहीं मिटेंगे युद्ध, नहीं मिटेगी अशांति, नहीं मिटेगी हिंसा, नहीं मिटेगी ईर्ष्या। कितने दिन हो गए! दस हजार साल हो गए! मनुष्य-जाति के पैगंबर, तीर्थंकर, अवतार समझा रहे हैं कि मत लड़ो, मत करो हिंसा, मत करो क्रोध। लेकिन किसी ने कभी नहीं सुना। जिन्होंने हमें समझाया कि मत करो हिंसा, मत करो क्रोध, उनको हमने सूली पर लटका दिया। यह उनकी शिक्षा का फल हुआ।
गांधी हमें समझाते थे कि प्रेम करो, एक हो जाओ! हमने गोली मार दी। यह कुल उनकी शिक्षा का फल हुआ। दुनिया के सारे मनुष्य, सारे महापुरुष हार गए हैं, यह समझ लेना चाहिए। असफल हो चुके हैं। आज तक का कोई भी मूल्य जीत नहीं सका। सब मूल्य हार गए। सब मूल्य असफल हो गए। बड़े से बड़े पुकारने वाले लोग, भले से भले लोग भी हार गए और समाप्त हो गए। और आदमी रोज अंधेरे और नरक में चला जाता रहा है।
क्या इससे यह पता नहीं चलता कि हमारी शिक्षाओं में कहीं कोई बुनियादी भूल है! अशांत आदमी इसलिए अशांत है कि वह अशांति में जन्मता है। उसके पास अशांति के कीटाणु हैं। उसके प्राणों की गहराई में अशांति का रोग है। जन्म के पहले दिन वह अशांति को, दुख और पीड़ा को लेकर पैदा हुआ है। जन्म के पहले क्षण में ही उसके जीवन का सारा स्वरूप निर्मित हो गया है।
इसलिए बुद्ध हार जाएंगे, महावीर हारेंगे, कृष्ण हारेंगे, क्राइस्ट हारेंगे। हार चुके हैं। हम शिष्टतावश यह कहते हों कि वे नहीं हारे हैं तो दूसरी बात है, लेकिन वे सब हार चुके हैं। और आदमी रोज बिगड़ता चला गया है, रोज बिगड़ता गया है। अहिंसा की इतने दिन की शिक्षा, और हम छुरी से एटम और हाइड्रोजन बम पर पहुंच गए हैं। यह अहिंसा की शिक्षा की सफलता होगी?
पिछले पहले महायुद्ध में तीन करोड़ लोगों की हमने हत्या की थी। और उसके बाद–शांति और प्रेम की बातें करने के बाद–दूसरे महायुद्ध में हमने साढ़े सात करोड़ लोगों की हत्या की। और उसके बाद भी चिल्ला रहे हैं बर्ट्रेंड रसेल से लेकर विनोबा तक सारे लोग कि शांति चाहिए, शांति चाहिए, और हम तीसरे महायुद्ध की तैयारी कर रहे हैं। और तीसरा महायुद्ध दूसरे महायुद्ध को बच्चों का खेल बना देगा।…… 34 क्रमशः
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3