हर आदमी चाह रहा है कि मैं प्रेम पाऊं और प्रेम करूं! प्रेम का मतलब क्या है? प्रेम का मतलब है कि मैं टूट गया हूं, आइसोलेट हो गया हूं, अलग हो गया हूं, मैं वापस जुड़ जाऊं जीवन से “ओशो”
सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान)
ओशो- मैंने दो सूत्र कहे। तीसरी एक भाव-दशा चाहिए संभोग के पास जाते समय, वैसी भाव-दशा जैसे कोई मंदिर के पास जाता है। क्योंकि संभोग के क्षण में हम परमात्मा के निकटतम होते हैं। इसीलिए तो संभोग में परमात्मा सृजन का काम करता है और नये जीवन को जन्म देता है। हम क्रिएटर के निकटतम होते हैं। संभोग की अनुभूति में हम स्रष्टा के निकटतम होते हैं। इसीलिए तो हम मार्ग बन जाते हैं और एक नया जीवन हमसे उतरता है और गतिमान हो जाता है। हम जन्मदाता बन जाते हैं। क्यों? स्रष्टा के निकटतम है वह स्थिति। अगर हम पवित्रता से, प्रार्थना से सेक्स के पास जाएं, तो हम परमात्मा की झलक को अनुभव कर सकते हैं।
लेकिन हम तो सेक्स के पास एक घृणा, एक दुर्भाव, एक कंडेमनेशन के साथ जाते हैं। इसलिए दीवाल खड़ी हो जाती है और परमात्मा का वहां कोई अनुभव नहीं हो पाता।
सेक्स के पास ऐसे जाएं जैसे मंदिर के पास। पत्नी को ऐसा समझें जैसे कि वह प्रभु है। पति को ऐसा समझें जैसे कि वह परमात्मा है। और गंदगी में, क्रोध में, कठोरता में, द्वेष में, ईर्ष्या में, जलन में, चिंता के क्षणों में कभी भी सेक्स के पास न जाएं। होता उलटा है। जितना आदमी चिंतित होता है, जितना परेशान होता है, जितना क्रोध से भरा होता है, जितना घबराया होता है, जितना एंग्विश में होता है, उतना ही ज्यादा वह सेक्स के पास जाता है। आनंदित आदमी सेक्स के पास नहीं जाता। दुखी आदमी सेक्स की तरफ जाता है। क्योंकि दुख को भुलाने के लिए इसको एक मौका दिखाई पड़ता है।
लेकिन स्मरण रखें कि जब आप दुख में जाएंगे, चिंता में जाएंगे, उदास, हारे हुए, क्रोध में, लड़े हुए जाएंगे, तब आप कभी भी सेक्स की उस गहरी अनुभूति को उपलब्ध नहीं कर पाएंगे, जिसकी कि प्राणों में प्यास है। वह समाधि की झलक वहां नहीं मिलेगी। लेकिन यही उलटा होता है।
मेरी प्रार्थना है: जब आनंद में हों, जब प्रेम में हों, जब प्रफुल्लित हों और जब प्राण प्रेयरफुल हों, जब ऐसा मालूम पड़े कि आज हृदय शांति से और आनंद से, कृतज्ञता से भरा हुआ है, तभी क्षण है–तभी क्षण है संभोग के निकट जाने का। और वैसा व्यक्ति संभोग में समाधि को उपलब्ध होता है। और एक बार भी समाधि की एक किरण मिल जाए तो संभोग से सदा के लिए मुक्त हो जाता है और समाधि में गतिमान हो जाता है।
स्त्री और पुरुष का मिलन एक बहुत गहरा अर्थ रखता है। स्त्री और पुरुष के मिलन में पहली बार अहंकार टूटता है और हम किसी से मिलते हैं।
मां के पेट से बच्चा निकलता है और दिन-रात उसके प्राणों में एक ही बात लगी रहती है, जैसे कि हमने किसी वृक्ष को उखाड़ लिया जमीन से, तो उस पूरे वृक्ष के प्राण तड़फते हैं कि जमीन से कैसे वापस जुड़ जाए। क्योंकि जमीन से जुड़ा हुआ होकर ही उसे प्राण मिलता था, रस मिलता था, जीवन मिलता था, वाइटेलिटी मिलती थी। जमीन से उखड़ गया, तो उसकी सारी जड़ें चिल्लाएंगी कि मुझे जमीन में वापस
भेज दो! उसका सारा प्राण चिल्लाएगा कि मुझे जमीन में वापस भेज दो! वह उखड़ गया, टूट गया, अपरूटेड हो गया।
आदमी जैसे ही मां के पेट से बाहर निकलता है, अपरूटेड हो जाता है। वह सारे जीवन और जगत से एक अर्थ में टूट गया, अलग हो गया। अब उसकी सारी पुकार और सारे प्राणों की आकांक्षा जगत और जीवन और अस्तित्व से, एक्झिस्टेंस से वापस जुड़ जाने की है। उसी पुकार का नाम प्रेम की प्यास है।
प्रेम का और अर्थ क्या है? हर आदमी चाह रहा है कि मैं प्रेम पाऊं और प्रेम करूं! प्रेम का मतलब क्या है? प्रेम का मतलब है कि मैं टूट गया हूं, आइसोलेट हो गया हूं, अलग हो गया हूं, मैं वापस जुड़ जाऊं जीवन से।
लेकिन इस जुड़ने का गहरे से गहरा अनुभव मनुष्य को सेक्स के अनुभव में होता है, स्त्री और पुरुष को होता है। वह पहला अनुभव है जुड़ जाने का। और जो व्यक्ति इस जुड़ जाने के अनुभव को प्रेम की प्यास, जुड़ने की आकांक्षा के अर्थ में समझेगा, वह आदमी एक दूसरे अनुभव को भी शीघ्र उपलब्ध हो सकता है।
योगी भी जुड़ता है, साधु भी जुड़ता है, संत भी जुड़ता है, समाधिस्थ व्यक्ति भी जुड़ता है, संभोगी व्यक्ति भी जुड़ता है।
संभोग करने में दो व्यक्ति जुड़ते हैं। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से जुड़ता है और एक हो जाता है।
समाधि में एक व्यक्ति समष्टि से जुड़ता है और एक हो जाता है।
संभोग दो व्यक्तियों के बीच मिलन है।
समाधि एक व्यक्ति और अनंत के बीच मिलन है।
स्वभावतः, दो व्यक्तियों का मिलन क्षण भर को हो सकता है। एक व्यक्ति और अनंत का मिलन अनंत के लिए हो सकता है। दोनों व्यक्ति सीमित हैं, उनका मिलन असीम नहीं हो सकता है। यही पीड़ा है, यही कष्ट है सारे दांपत्य का, सारे प्रेम का–कि जिससे हम जुड़ना चाहते हैं उससे भी सदा के लिए नहीं जुड़ पाते, क्षण भर को जुड़ते हैं और फिर फासले हो जाते हैं। फासले पीड़ा देते हैं, फासले कष्ट देते हैं, और निरंतर दो प्रेमी इसी पीड़ा में परेशान रहते हैं कि फासला क्यों है? और हर चीज फिर धीरे-धीरे ऐसी मालूम पड़ने लगती है कि दूसरा फासला बना रहा है। इसलिए दूसरे पर क्रोध पैदा होना शुरू हो जाता है।
ताकि सूरज तक पहुंचने के लिए कदम उठाया जा सके, ताकि सूरज की प्यास, असंतोष, आकांक्षा और अभीप्सा भीतर पैदा हो सके।
संगीत के एक छोटे से अनुभव से उस परम संगीत की तरफ जाया जा सकता है। प्रकाश के एक छोटे से अनुभव से अनंत प्रकाश की तरफ जाया जा सकता है। एक बूंद को जान लेना, पूरे सागर को जान लेने के लिए पहला कदम है। एक छोटे से अणु को जान कर हम पदार्थ की सारी शक्ति को जान लेते हैं।
संभोग का एक छोटा सा अणु है, जो प्रकृति की तरफ से मनुष्य को मुफ्त में मिला हुआ है। लेकिन हम उसे जान नहीं पाते हैं। आंख बंद करके जी लेते हैं किसी तरह, पीठ फेर कर जी लेते हैं किसी तरह। उसकी स्वीकृति नहीं है हमारे मन में, स्वीकार नहीं है हमारे मन में। आनंद और अहोभाव से उसे जानने और जीने और उसमें प्रवेश करने की कोई विधि नहीं है हमारे हाथ में।
मैंने जैसा आपसे कहा, जिस दिन आदमी इस विधि को जान पाएगा, उस दिन हम दूसरे तरह के मनुष्य को पैदा करने में समर्थ हो जाएंगे।…. 33 क्रमशः
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3