जो लोग जबरदस्ती ब्रह्मचर्य थोपने की कोशिश करते हैं, वे सिर्फ विक्षिप्त होते हैं, और कहीं भी नहीं पहुंचते, ब्रह्मचर्य थोपा नहीं जाता, वह अनुभव की निष्पत्ति है “ओशो”

 जो लोग जबरदस्ती ब्रह्मचर्य थोपने की कोशिश करते हैं, वे सिर्फ विक्षिप्त होते हैं, और कहीं भी नहीं पहुंचते, ब्रह्मचर्य थोपा नहीं जाता, वह अनुभव की निष्पत्ति है “ओशो”

सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान)

ओशो- एक बात, पहली बात स्पष्ट कर लेनी जरूरी है वह यह कि यह भ्रम छोड़ देना चाहिए कि हम पैदा हो गए हैं इसलिए हमें पता है–क्या है काम, क्या है संभोग। नहीं, पता नहीं है। और नहीं पता होने के कारण जीवन पूरे समय काम और सेक्स में उलझा रहता है और व्यतीत होता है।
मैंने आपसे कहा, पशुओं का बंधा हुआ समय है, उनकी ऋतु है, उनका मौसम है। आदमी का कोई बंधा हुआ समय नहीं है। क्यों? पशु शायद मनुष्य से ज्यादा संभोग की गहराई में उतरने में समर्थ है और मनुष्य उतना भी समर्थ नहीं रह गया है! जिन लोगों ने जीवन के इन तलों पर बहुत खोज की है और गहराइयों में गए हैं और जिन लोगों ने जीवन के बहुत से अनुभव संगृहीत किए हैं, उनको यह जानना, यह सूत्र उपलब्ध हुआ है कि अगर संभोग एक मिनट तक रुकेगा तो आदमी दूसरे दिन फिर संभोग के लिए लालायित हो जाएगा। अगर तीन मिनट तक रुक सके तो एक सप्ताह तक उसे सेक्स की वह याद भी नहीं आएगी। और अगर सात मिनट तक रुक सके तो तीन महीने तक के लिए सेक्स से इस तरह मुक्त हो जाएगा कि उसकी कल्पना में भी विचार प्रविष्ट नहीं होगा। और अगर तीन घंटे तक रुक सके तो जीवन भर के लिए मुक्त हो जाएगा, जीवन में उसको कल्पना भी नहीं उठेगी।
लेकिन सामान्यतः क्षण भर का अनुभव है मनुष्य का। तीन घंटे की कल्पना करनी भी मुश्किल है। लेकिन मैं आपसे कहता हूं कि तीन घंटे अगर संभोग की स्थिति में, उस समाधि की दशा में व्यक्ति रुक जाए तो एक संभोग पूरे जीवन के लिए सेक्स से मुक्त करने के लिए पर्याप्त है। इतनी तृप्ति पीछे छोड़ जाता है, इतना अनुभव, इतना बोध छोड़ जाता है कि जीवन भर के लिए पर्याप्त हो जाता है। एक संभोग के बाद व्यक्ति ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो सकता है।
लेकिन हम तो जीवन भर संभोग के बाद भी उपलब्ध नहीं होते। क्या है? बूढ़ा हो जाता है आदमी, मरने के करीब पहुंच जाता है और संभोग की कामना से मुक्त नहीं हो पाता! संभोग की कला और संभोग के शास्त्र को उसने समझा नहीं है। और न कभी किसी ने समझाया है, न विचार किया है, न सोचा है, न बात की है, कोई संवाद भी नहीं हुआ जीवन में–कि अनुभवी लोग उस पर संवाद करते और विचार करते। हम बिलकुल पशुओं से भी बदतर हालत पर उस स्थिति में हैं।
आप कहेंगे कि एक क्षण से तीन घंटे तक संभोग की दशा ठहर सकती है, लेकिन कैसे?
कुछ थोड़े से सूत्र आपको कहता हूं, उन्हें थोड़ा खयाल में रखेंगे तो ब्रह्मचर्य की तरफ जाने में बड़ी यात्रा सरल हो जाएगी।
संभोग करते क्षणों में श्वास जितनी तेज होगी, संभोग का काल उतना ही छोटा होगा। श्वास जितनी शांत और शिथिल होगी, संभोग का काल उतना ही लंबा हो जाएगा। अगर श्वास को बिलकुल शिथिल रहने का थोड़ा सा अभ्यास किया जाए, तो संभोग के क्षणों को कितना ही लंबा किया जा सकता है। और संभोग के क्षण जितने लंबे होंगे, उतने ही संभोग के भीतर से समाधि का जो सूत्र मैंने आपसे कहा है–निरहंकार भाव, ईगोलेसनेस और टाइमलेसनेस का अनुभव शुरू हो जाएगा। श्वास अत्यंत शिथिल होनी चाहिए। श्वास के शिथिल होते ही संभोग की गहराई, अर्थ और नये उदघाटन शुरू हो जाएंगे।
और दूसरी बात, संभोग के क्षण में ध्यान दोनों आंखों के बीच, जहां योग आज्ञाचक्र को बताता है, वहां अगर ध्यान हो तो संभोग की सीमा और समय तीन घंटों तक बढ़ाया जा सकता है। और एक संभोग व्यक्ति को सदा के लिए ब्रह्मचर्य में प्रतिष्ठित कर देगा–न केवल इस जन्म के लिए, बल्कि अगले जन्म के लिए भी।
किन्हीं एक बहन ने पत्र लिखा है और मुझे पूछा है कि विनोबा तो बाल-ब्रह्मचारी हैं, क्या उनको समाधि का अनुभव नहीं हुआ होगा? मेरे बाबत पूछा है कि मैंने तो विवाह नहीं किया, मैं तो बाल-ब्रह्मचारी हूं, मुझे समाधि का अनुभव नहीं हुआ होगा?
उन बहन को, अगर वे यहां मौजूद हों तो मैं कहना चाहता हूं, विनोबा को या मुझे या किसी को भी बिना अनुभव के ब्रह्मचर्य उपलब्ध नहीं होता–वह अनुभव चाहे इस जन्म का हो, चाहे पिछले जन्म का हो। जो इस जन्म में ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होता है, वह पिछले जन्मों के गहरे संभोग के अनुभव के आधार पर, और किसी आधार पर नहीं। कोई और रास्ता नहीं है।
लेकिन अगर पिछले जन्म में किसी को गहरे संभोग की अनुभूति हुई हो तो इस जन्म के साथ ही वह सेक्स से मुक्त पैदा होगा। उसकी कल्पना के मार्ग पर सेक्स कभी भी खड़ा नहीं होगा। और उसे हैरानी होगी दूसरे लोगों को देख कर कि यह क्या बात है! लोग क्यों पागल हैं? क्यों दीवाने हैं? उसे कठिनाई होगी यह जांच करने में भी कि कौन स्त्री है, कौन पुरुष है? इसका भी हिसाब रखने में और फासला करने में कठिनाई होगी।
लेकिन कोई अगर सोचता हो कि बिना गहरे अनुभव के कोई बाल-ब्रह्मचारी हो सकता है, तो बाल-ब्रह्मचारी नहीं होगा, सिर्फ पागल हो जाएगा। जो लोग जबरदस्ती ब्रह्मचर्य थोपने की कोशिश करते हैं, वे सिर्फ विक्षिप्त होते हैं, और कहीं भी नहीं पहुंचते। ब्रह्मचर्य थोपा नहीं जाता। वह अनुभव की निष्पत्ति है। वह किसी गहरे अनुभव का फल है। और वह अनुभव संभोग का ही अनुभव है। अगर वह अनुभव एक बार भी हो जाए तो अनंत जीवन की यात्रा के लिए सेक्स से मुक्ति हो जाती है।
तो दो बातें मैंने कहीं उस गहराई के लिए–श्वास शिथिल हो, इतनी शिथिल हो कि जैसे चलती ही नहीं; और ध्यान, सारा अटेंशन आज्ञाचक्र के पास हो, दोनों आंखों के बीच के बिंदु पर हो। जितना ध्यान मस्तिष्क के पास होगा, उतने ही संभोग की गहराई अपने आप बढ़ जाएगी। और जितनी श्वास शिथिल होगी, उतनी लंबाई बढ़ जाएगी। और आपको पहली दफा अनुभव होगा कि संभोग का आकर्षण नहीं है मनुष्य के मन में, मनुष्य के मन में समाधि का आकर्षण है। और एक बार उसकी झलक मिल जाए, एक बार बिजली चमक जाए और हमें दिखाई पड़ जाए अंधेरे में कि रास्ता क्या है, फिर हम रास्ते पर आगे निकल सकते हैं।
एक आदमी एक गंदे घर में बैठा है। दीवालें अंधेरी हैं और धुएं से पुती हुई हैं। घर बदबू से भरा हुआ है। लेकिन खिड़की खोल सकता है। उस गंदे घर की खिड़की में खड़े होकर भी वह देख सकता है–दूर आकाश को, तारों को, सूरज को, उड़ते हुए पक्षियों को। और तब उस घर के बाहर निकलने में कठिनाई न रह जाएगी। जिसे एक बार दिखाई पड़ गया कि बाहर निर्मल आकाश है, सूरज है, चांद है, तारे हैं, उड़ते हुए पक्षी हैं, हवाओं में झूमते हुए वृक्ष और फूलों की सुगंध है, मुक्ति है बाहर, वह फिर अंधेरी और धुएं से भरी हुई और सीलन और बदबू से भरी हुई कोठरियों में बैठने को राजी नहीं होगा, वह बाहर निकल जाएगा। जिस दिन आदमी को संभोग के भीतर समाधि की पहली, थोड़ी सी भी अनुभूति होती है, उसी दिन सेक्स का गंदा मकान, सेक्स की दीवालें, अंधेरे से भरी हुई व्यर्थ हो जाती हैं और आदमी बाहर निकल आता है।
लेकिन यह जानना जरूरी है कि साधारणतः हम उस मकान के भीतर पैदा होते हैं, जिसकी दीवालें बंद हैं, जो अंधेरे से पुती हैं, जहां बदबू है, जहां दुर्गंध है। और इस मकान के भीतर ही पहली दफा मकान के बाहर का अनुभव करना जरूरी है, तभी हम बाहर जा सकते हैं और इस मकान को छोड़ सकते हैं। जिस आदमी ने खिड़की नहीं खोली उस मकान की और उसी मकान के कोने में आंख बंद करके बैठ गया है कि मैं इस गंदे मकान को नहीं देखूंगा, वह चाहे देखे और चाहे न देखे, वह गंदे मकान के भीतर ही है और भीतर ही रहेगा।
जिनको आप ब्रह्मचारी कहते हैं–तथाकथित जबरदस्ती थोपे हुए ब्रह्मचारी–वे सेक्स के मकान के भीतर उतने ही हैं, जितना कि कोई भी साधारण आदमी है। वे आंख बंद किए बैठे हैं, आप आंख खोले हुए बैठे हैं, इतना ही फर्क है। जो आप आंख खोल कर कर रहे हैं, वे आंख बंद करके भीतर कर रहे हैं। जो आप शरीर से कर रहे हैं, वे मन से कर रहे हैं। और कोई भी फर्क नहीं है।
इसलिए मैं कहता हूं कि संभोग के प्रति दुर्भाव छोड़ दें। समझने की चेष्टा, प्रयोग करने की चेष्टा करें, और संभोग को एक पवित्रता की स्थिति दें।….. 32 क्रमशः

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3