जिस दिन काम का पूरा शास्त्र और पूरा विचार और पूरा विज्ञान विकसित होगा, उस दिन हम बिलकुल नये तरह के आदमी को पैदा करने में समर्थ हो सकते हैं

 जिस दिन काम का पूरा शास्त्र और पूरा विचार और पूरा विज्ञान विकसित होगा, उस दिन हम बिलकुल नये तरह के आदमी को पैदा करने में समर्थ हो सकते हैं

सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान)

ओशो- यही बात मैं सेक्स के संबंध में भी आपसे कहना चाहता हूं हम कुछ भी नहीं जानते हैं।
आप बहुत हैरान होंगे। आप कहेंगे, हम यह मान सकते हैं कि ईश्वर के संबंध में कुछ नहीं जानते, आत्मा के संबंध में कुछ नहीं जानते; लेकिन हम यह कैसे मान सकते हैं कि हम काम के, यौन के और सेक्स के संबंध में कुछ नहीं जानते? सबूत है–हमारे बच्चे पैदा हुए हैं, पत्नी है–हम सेक्स के संबंध में नहीं जानते हैं!
लेकिन मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं–यह बहुत कठिन पड़ेगा, लेकिन इसे समझ लेना जरूरी है–आप सेक्स के अनुभव से गुजरे होंगे, लेकिन सेक्स के संबंध में आप उतना ही जानते हैं जितना छोटा सा बच्चा जानता है, उससे ज्यादा कुछ भी नहीं जानते। अनुभव से गुजर जाना जान लेने के लिए पर्याप्त नहीं है।
एक आदमी कार चलाता है, वह कार चलाना जानता है और हो सकता है हजारों मील कार चला कर वह आ गया हो। लेकिन इससे यह कोई मतलब नहीं होता कि वह कार के भीतर के यंत्र और मशीन और उसकी व्यवस्था, उसके काम करने के ढंग के संबंध में कुछ भी जानता हो। वह कह सकता है कि मैं हजार मील चल कर आया हूं कार से–मैं नहीं जानता हूं कार के संबंध में? लेकिन कार चलाना एक ऊपरी बात है और कार की पूरी आंतरिक व्यवस्था को जानना बिलकुल दूसरी बात है।
एक आदमी बटन दबाता है और बिजली जल जाती है। वह आदमी यह कह सकता है कि मैं बिजली के संबंध में सब जानता हूं। क्योंकि मैं बटन दबाता हूं और बिजली जल जाती है, बटन दबाता हूं बिजली बुझ जाती है। मैंने हजार दफा बिजली जलाई और बुझाई, इसलिए मैं बिजली के संबंध में सब जानता हूं। हम कहेंगे वह पागल है। बटन दबाना और बिजली जला लेना और बुझा लेना बच्चे भी कर सकते हैं, इसके लिए बिजली के ज्ञान की कोई भी जरूरत नहीं है।
बच्चे कोई भी पैदा कर सकता है। सेक्स को जानने से इसका कोई संबंध नहीं। शादी कोई भी कर सकता है। पशु भी बच्चे पैदा कर रहे हैं। लेकिन वे सेक्स के संबंध में कुछ जानते हैं, इस भ्रम में पड़ने का कोई कारण नहीं। सच तो यह है कि सेक्स का कोई विज्ञान ही विकसित नहीं हो सका, सेक्स का कोई शास्त्र ठीक से विकसित नहीं हो सका, क्योंकि हर आदमी यह मानता है कि हम जानते हैं! शास्त्र की जरूरत क्या है? विज्ञान की जरूरत क्या है?
और मैं आपसे कहता हूं कि इससे बड़े दुर्भाग्य की और कोई बात नहीं है। क्योंकि जिस दिन सेक्स का पूरा शास्त्र और पूरा विचार और पूरा विज्ञान विकसित होगा, उस दिन हम बिलकुल नये तरह के आदमी को पैदा करने में समर्थ हो सकते हैं। फिर यह कुरूप और यह अपंग मनुष्यता पैदा करने की जरूरत नहीं है। ये रुग्ण और रोते हुए और उदास आदमी पैदा करने की जरूरत नहीं है। ये पाप और अपराध से भरी हुई संतति को जन्म देने की जरूरत नहीं है।
लेकिन हमें कुछ भी पता नहीं है! हम सिर्फ बटन दबाना और बुझाना जानते हैं और उसी से हमने समझ लिया है कि हम बिजली के जानकार हो गए हैं। सेक्स के संबंध में पूरी जिंदगी बीत जाने के बाद भी आदमी इतना ही जानता है–बटन दबाना और बुझाना। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं! लेकिन चूंकि यह भ्रम है कि हम सब जानते हैं, इसलिए इस संबंध में कोई शोध, कोई खोज, कोई विचार, कोई चिंतन का कोई उपाय नहीं है। और इसी भ्रम के कारण कि हम सब जानते हैं, हम किसी से न कभी कोई बात करते हैं, न विचार करते हैं, न सोचते हैं! क्योंकि जब सभी को सब पता है तो जरूरत क्या है?
और मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जीवन में और जगत में सेक्स से बड़ा न कोई रहस्य है और न कोई गुप्त और गहरी बात है। अभी हमने अणु को खोज निकाला है। जिस दिन हम सेक्स के अणु को भी पूरी तरह जान सकेंगे, उस दिन मनुष्य-जाति ज्ञान के एक बिलकुल नये जगत में प्रविष्ट हो जाएगी। अभी हमने पदार्थ की थोड़ी-बहुत खोज-बीन की है और दुनिया कहां से कहां पहुंच गई। जिस दिन हम चेतना के जन्म की प्रक्रिया और कीमिया को समझ लेंगे, उस दिन हम मनुष्य को कहां से कहां पहुंचा देंगे, इसको आज कहना कठिन है। लेकिन एक बात निश्चित कही जा सकती है कि काम की शक्ति और काम की प्रक्रिया जीवन और जगत में सर्वाधिक रहस्यपूर्ण, सर्वाधिक गहरी, सबसे ज्यादा मूल्यवान बात है। और उसके संबंध में हम बिलकुल चुप हैं। जो सर्वाधिक मूल्यवान है, उसके संबंध में कोई बात भी नहीं की जाती है। आदमी जीवन भर संभोग से गुजरता है और अंत तक भी नहीं जान पाता कि क्या था संभोग।
तो जब मैंने पहले दिन आपसे कहा कि शून्य का, अहंकार-शून्यता का, विचार-शून्यता का अनुभव होगा, तो अनेक मित्रों को यह बात अनहोनी, आश्चर्यजनक लगी है। एक मित्र ने लौटते हुए मुझे कहा, यह तो हमें खयाल में भी न था, लेकिन ऐसा हुआ है।
एक बहन ने आज मुझे आकर कहा, लेकिन मुझे तो इसका कोई अनुभव नहीं है। आप कहते हैं तो इतना मुझे खयाल आता है कि मन थोड़ा शांत और मौन होता है, लेकिन मुझे अहंकार-शून्यता का या किसी और गहरेअनुभव का कोई भी पता नहीं।
हो सकता है अनेकों को इस संबंध में विचार मन में उठा हो। उस संबंध में थोड़ी सी बातें और गहराई में स्पष्ट कर लेनी जरूरी हैं।
पहली बात, मनुष्य जन्म के साथ ही संभोग के पूरे विज्ञान को जानता हुआ पैदा नहीं होता है। शायद पृथ्वी पर बहुत थोड़े से लोग, अनेक जीवन के अनुभव के बाद, संभोग की पूरी की पूरी कला और पूरी की पूरी विधि और पूरा शास्त्र जानने में समर्थ हो पाते हैं। और ये ही वे लोग हैं जो ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाते हैं। क्योंकि जो व्यक्ति संभोग की पूरी बात को जानने में समर्थ हो जाता है, उसके लिए संभोग व्यर्थ हो जाता है, वह उसके पार निकल जाता है, अतिक्रमण कर जाता है। लेकिन इस संबंध में कुछ बहुत स्पष्ट बातें नहीं कही गई हैं। …… 31 क्रमशः

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३