मनुष्य-जाति के इतिहास में इससे बड़ी कोई दुर्घटना नहीं घटी है कि हम अपना अज्ञान स्वीकार करने को राजी नहीं होते “ओशो”

 मनुष्य-जाति के इतिहास में इससे बड़ी कोई दुर्घटना नहीं घटी है कि हम अपना अज्ञान स्वीकार करने को राजी नहीं होते “ओशो”

सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान)

ओशो- एक छोटा सा गांव था। उस गांव के स्कूल में शिक्षक राम की कथा पढ़ाता था। करीब-करीब सारे बच्चे सोए हुए थे।
राम की कथा सुनते समय बच्चे सो जाएं, यह आश्चर्य नहीं। क्योंकि राम की कथा सुनते समय बूढ़े भी सोते हैं। इतनी बार सुनी जा चुकी है जो बात, उसे जाग कर सुनने का कोई अर्थ भी नहीं रह जाता।
बच्चे सोए थे। और शिक्षक भी पढ़ा रहा था, लेकिन कोई भी उसे देखता तो कह सकता था वह भी सोया हुआ पढ़ाता है। उसे राम की कथा कंठस्थ थी। किताब सामने खुली थी, लेकिन किताब पढ़ने की उसे जरूरत न थी। उसे सब याद था, वह यंत्र की भांति कहे जाता था। शायद ही उसे पता हो कि वह क्या कह रहा है।
तोतों को पता नहीं होता कि वे क्या कह रहे हैं। जिन्होंने शब्दों को कंठस्थ कर लिया है, उन्हें भी पता नहीं होता कि वे क्या कह रहे हैं।
और तभी अचानक एक सनसनी दौड़ गई कक्षा में। अचानक ही स्कूल का निरीक्षक आ गया था। वह कमरे के भीतर गया। बच्चे सजग होकर बैठ गए। शिक्षक भी सजग होकर पढ़ाने लगा। उस निरीक्षक ने कहा कि मैं कुछ प्रश्न पूछना चाहूंगा। और चूंकि राम की कथा पढ़ाई जाती है, इसलिए राम से संबंधित ही कोई प्रश्न पूछूं। उसने बच्चों से एक सीधी सी बात पूछी। उसने पूछा कि शिव का धनुष किसने तोड़ा था?
उसने सोचा कि बच्चों को तोड़-फोड़ की बात बहुत याद रह जाती है, उन्हें जरूर याद होगा कि किसने शिव का धनुष तोड़ा था।
लेकिन इसके पहले कि कोई बोले, एक बच्चे ने हाथ हिलाया और खड़े होकर कहा कि क्षमा करिए, मुझे पता नहीं कि किसने तोड़ा था। एक बात निश्चित है कि मैं पंद्रह दिन से छुट्टी पर था, मैंने नहीं तोड़ा है। और इसके पहले कि मेरे पर कोई इलजाम लग जाए, मैं पहले ही साफ कर देना चाहता हूं कि धनुष का मुझे कोई पता ही नहीं है। क्योंकि जब भी इस स्कूल में कोई चीज टूटती है तो सबसे पहले मेरे ऊपर दोषारोपण आता है, इसलिए मैं निवेदन किए देता हूं।
निरीक्षक तो हैरान रह गया। उसने सोचा भी न था कि कोई यह उत्तर देगा। उसने शिक्षक की तरफ देखा। शिक्षक अपना बेंत निकाल रहा था और उसने कहा कि जरूर इसी बदमाश ने तोड़ा होगा। इसकी हमेशा की आदत है। और अगर तूने नहीं तोड़ा था तो तूने खड़े होकर क्यों कहा कि मैंने नहीं तोड़ा है? और उसने इंसपेक्टर से कहा, आप इसकी बातों में मत आएं, यह लड़का शरारती है। और स्कूल में सौ चीजें टूटें तो निन्यानबे यही तोड़ता है।
तब तो वह निरीक्षक और हैरान हो गया। फिर उसने कुछ भी वहां कहना उचित न समझा। वह सीधा प्रधान अध्यापक के पास गया। जाकर उसने कहा कि यह-यह घटना घटी है। राम की कथा पढ़ाई जाती थी जिस कक्षा में, उसमें मैंने पूछा कि शिव का धनुष किसने तोड़ा था? तो एक बच्चे ने कहा कि मैंने नहीं तोड़ा, मैं पंद्रह दिन से छुट्टी पर था। यहां तक भी गनीमत थी। लेकिन शिक्षक ने यह कहा कि जरूर इसी ने तोड़ा होगा, जब भी कोई चीज टूटती है तो यही जिम्मेवार होता है। इसके संबंध में क्या किया जाए?
उस प्रधान अध्यापक ने कहा, इस संबंध में एक ही बात की जा सकती है कि अब बात को आगे न बढ़ाया जाए। क्योंकि लड़कों से कुछ भी कहना खतरा मोल लेना है, किसी भी क्षण हड़ताल हो सकती है, अनशन हो सकता है। अब जिसने भी तोड़ा हो, तोड़ा होगा। आप कृपा करें और बात बंद करें। कोई दो महीने से शांति चल रही है स्कूल में, उसको भंग करने की कोशिश मत करें। न मालूम कितना फर्नीचर तोड़ डाला है लड़कों ने, हम चुपचाप देखते रहते हैं। स्कूल की दीवालें टूट रही हैं, हम चुपचाप देखते रहते हैं। क्योंकि कुछ भी बोलना खतरनाक है, हड़ताल हो सकती है, अनशन हो सकता है। इसलिए चुपचाप देखने के सिवाय कोई मार्ग नहीं।
वह इंसपेक्टर तो अवाक! वह तो आंखें फाड़े रह गया! अब कुछ कहने का उपाय न था। वह वहां से सीधा, स्कूल की जो शिक्षा समिति थी, उसके अध्यक्ष के पास गया। और उसने जाकर कहा कि यह हालत है स्कूल की! राम की कथा पढ़ाई जाती है, वहां बच्चा कहता है कि मैंने शिव का धनुष नहीं तोड़ा, शिक्षक कहता है इसी ने तोड़ा होगा, प्रधान अध्यापक कहता है कि जिसने भी तोड़ा हो, बात को रफा-दफा कर दें, शांत कर दें। इसे आगे बढ़ाना ठीक नहीं, हड़ताल हो सकती है। आप क्या कहते हैं?
उस अध्यक्ष ने कहा कि ठीक ही कहता है प्रधान अध्यापक। किसी ने भी तोड़ा हो, हम ठीक करवा देंगे समिति की तरफ से। आप फर्नीचर वाले के यहां भिजवा दें और ठीक करवा लें। इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं कि किसने तोड़ा। सुधरवाने का उपाय होगा, आपको सुधरवाने की जरूरत है और क्या करना है!
वह स्कूल का इंसपेक्टर मुझसे यह सारी बात कहता था। वह मुझसे पूछने लगा कि क्या स्थिति है यह?
मैंने उससे कहा, इसमें कुछ बड़ी स्थिति नहीं है। मनुष्य की एक सामान्य कमजोरी है, वही इस कहानी में प्रकट होती है। और वह कमजोरी क्या है? वह कमजोरी यह है कि जिस संबंध में हम कुछ भी नहीं जानते हैं, उस संबंध में भी हम ऐसी घोषणा करना चाहते हैं कि हम जानते हैं। वे कोई भी कुछ नहीं जानते थे कि शिव का धनुष क्या है? क्या उचित न होता कि वे कह देते कि हमें पता नहीं है कि शिव का धनुष क्या है। लेकिन अपना अज्ञान कोई भी स्वीकार नहीं करना चाहता है।
और मनुष्य-जाति के इतिहास में इससे बड़ी कोई दुर्घटना नहीं घटी है कि हम अपना अज्ञान स्वीकार करने को राजी नहीं होते। जीवन के किसी भी प्रश्न के संबंध में कोई भी आदमी इतनी हिम्मत और साहस नहीं दिखा पाता कि मुझे पता नहीं है। यह कमजोरी बहुत घातक सिद्ध होती है। सारा जीवन व्यर्थ हो जाता है। और चूंकि हम यह मान कर बैठ जाते हैं कि हम जानते हैं, इसलिए जो उत्तर हम देते हैं वे इतने ही मूढ़तापूर्ण होते हैं, जितने उस स्कूल में दिए गए थे–बच्चे से लेकर अध्यक्ष तक। जिसका हमें पता नहीं है, उसका उत्तर देने की कोशिश सिवाय मूढ़ता के और कहीं भी नहीं ले जाएगी।
फिर यह तो हो भी सकता है कि शिव का धनुष किसने तोड़ा या नहीं तोड़ा, इससे जीवन का कोई गहरा संबंध नहीं है। लेकिन जिन प्रश्नों के जीवन से बहुत गहरे संबंध हैं, जिनके आधार पर सारा जीवन सुंदर बनेगा या कुरूप हो जाएगा, स्वस्थ बनेगा या विक्षिप्त हो जाएगा; जिनके आधार पर जीवन की सारी गति और दिशा निर्भर है, उन प्रश्नों के संबंध में भी हम यह भाव दिखलाने की कोशिश करते हैं कि हम जानते हैं। और फिर जो हम जीवन में उत्तर देते हैं वे बता देते हैं कि हम कितना जानते हैं। एक-एक आदमी की जिंदगी बता रही है कि हम जिंदगी के संबंध में कुछ भी नहीं जानते हैं। अन्यथा इतनी असफलता, इतनी निराशा, इतना दुख, इतनी चिंता! ….. 30 क्रमशः 

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3