ब्रह्मचर्य, ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन है, ऊपर की तरफ उठ जाना है, प्रेम और ध्यान, ब्रह्मचर्य के सूत्र हैं “ओशो”
सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान)
ओशो- एक फकीर के बाबत मुझे खयाल आता है। एक छोटा सा फकीर का झोपड़ा था। रात थी, जोर से वर्षा होती थी। रात के बारह बजे होंगे, फकीर और उसकी पत्नी दोनों सोते थे, किसी आदमी ने दरवाजे पर दस्तक दी। छोटा था झोपड़ा, कोई शायद शरण चाहता है। उसकी पत्नी से उसने कहा कि द्वार खोल दे, कोई द्वार पर खड़ा है, कोई यात्री, कोई अपरिचित मित्र।
सुनते हैं उसकी बात? उसने कहा, कोई अपरिचित मित्र! हमारे तो जो परिचित हैं, वे भी मित्र नहीं होते। उसने कहा, कोई अपरिचित मित्र! यह प्रेम का भाव है।
कोई अपरिचित मित्र द्वार पर खड़ा है, द्वार खोल!
उसकी पत्नी ने कहा, लेकिन जगह तो बहुत कम है, हम दो के लायक ही मुश्किल से है। कोई तीसरा आदमी भीतर आएगा तो हम क्या करेंगे?
उस फकीर ने कहा, पागल, यह किसी अमीर का महल नहीं है कि छोटा पड़ जाए, यह गरीब की झोपड़ी है। अमीर का महल छोटा पड़ जाता है हमेशा, एक मेहमान आ जाए तो महल छोटा पड़ जाता है। यह गरीब की झोपड़ी है।
उसकी पत्नी ने कहा, इसमें झोपड़ी…अमीर और गरीब क्या सवाल? जगह छोटी है।
उस फकीर ने कहा, जहां दिल में जगह बड़ी हो वहां झोपड़ा महल की तरह मालूम होता है और जहां दिल में छोटी जगह हो वहां झोपड़ा तो क्या महल भी छोटा और झोपड़ा हो जाता है। द्वार खोल दे! द्वार पर खड़े हुए आदमी को वापस कैसे लौटाया जा सकता है? अभी हम दोनों लेटे थे, अब तीन लेट नहीं सकेंगे, तीनों बैठेंगे, बैठने के लिए काफी जगह है।
मजबूरी थी, पत्नी को दरवाजा खोल देना पड़ा। एक मित्र आ गया, पानी से भीगा हुआ। उसके कपड़े बदले। फिर वे तीनों बैठ कर गपशप करने लगे। दरवाजा फिर बंद है।
फिर किन्हीं दो आदमियों ने दरवाजे पर दस्तक दी। अब उस फकीर ने उस मित्र को कहा–वह दरवाजे के पास था–कि दरवाजा खोल दो, मालूम होता है कोई आया।
उस आदमी ने कहा, कैसे खोल दूं दरवाजा, जगह कहां है यहां?
वह आदमी अभी दो घड़ी पहले आया था खुद और भूल गया यह बात कि जिस प्रेम ने मुझे जगह दी थी, वह मुझे जगह नहीं दी थी, प्रेम था उसके भीतर इसलिए जगह दी थी। अब फिर कोई दूसरा आ गया, फिर जगह बनानी पड़ेगी। लेकिन उस आदमी ने कहा, नहीं, दरवाजा खोलने की जरूरत नहीं; मुश्किल से हम तीन बैठे हुए हैं!
वह फकीर हंसने लगा। उसने कहा, बड़े पागल हो! मैंने तुम्हारे लिए जगह नहीं की थी, प्रेम था इसलिए जगह की थी। प्रेम अब भी है, वह तुम पर चुक नहीं गया और समाप्त नहीं हो गया। दरवाजा खोलो! अभी हम दूर-दूर बैठे हैं, फिर हम पास-पास बैठ जाएंगे। पास-पास बैठने के लिए काफी जगह है। और रात ठंडी है, पास-पास बैठने में आनंद ही और होगा।
दरवाजा खोलना पड़ा। दो आदमी भीतर आ गए। फिर वे पास-पास बैठ कर गपशप करने लगे। और थोड़ी ही देर बीती है और रात आगे बढ़ गई है और वर्षा हो रही है, और एक गधे ने आकर सिर लगाया दरवाजे से। पानी में भीग गया है। वह रात शरण चाहता है। उस फकीर ने कहा कि मित्रो–वे दो मित्र दरवाजे पर बैठे हुए थे जो पीछे आए थे–दरवाजा खोल दो! कोई अपरिचित मित्र फिर आ गया।
उन लोगों ने कहा, यह मित्र वगैरह नहीं है, यह गधा है। इसके लिए द्वार खोलने की कोई जरूरत नहीं।
उस फकीर ने कहा, तुम्हें शायद पता नहीं, अमीर के दरवाजे पर आदमी के साथ भी गधे जैसा व्यवहार किया जाता है। यह गरीब की झोपड़ी है, हम गधे के साथ भी आदमी जैसा व्यवहार करने की आदत से भरे हैं। दरवाजा खोल दो!
पर वे दोनों कहने लगे, जगह?
उस फकीर ने कहा, जगह बहुत है; अभी हम बैठे हैं, अब हम खड़े हो जाएंगे। खड़े होने के लिए काफी जगह है। और फिर तुम घबराओ मत, अगर जरूरत पड़ेगी तो मैं हमेशा बाहर होने के लिए तैयार हूं। प्रेम इतना कर सकता है।
एक लविंग एटिट्यूड, एक प्रेमपूर्ण हृदय बनाने की जरूरत है। जब प्रेमपूर्ण हृदय बनता है, तो व्यक्तित्व में एक तृप्ति का भाव, एक रसपूर्ण तृप्ति…क्या आपको कभी खयाल है, जब भी आप किसी के प्रति जरा से प्रेमपूर्ण हुए हैं, पीछे एक तृप्ति की लहर छूट गई है? क्या आपको कभी भी खयाल है कि जीवन में तृप्ति के क्षण वे ही रहे हैं, जो बेशर्त प्रेम के क्षण रहे होंगे, जब कोई शर्त न रही होगी प्रेम की। और जब आपने रास्ते चलते एक अजनबी आदमी को देख कर मुस्कुरा दिया होगा–उसके पीछे छूट गई तृप्ति का कोई अनुभव है? उसके पीछे साथ आ गया एक शांति का भाव! एक प्राणों में एक आनंद की लहर का कोई पता है–जब राह चलते किसी आदमी को उठा लिया हो, किसी गिरते को सम्हाल लिया हो, किसी बीमार को एक फूल दे दिया हो? इसलिए नहीं कि वह आपकी मां है, इसलिए नहीं कि वह आपका पिता है। नहीं, वह आपका कोई भी नहीं है। लेकिन एक फूल किसी बीमार को दे देना आनंदपूर्ण है।
जितना प्रेम हमारा बढ़ता है, उतनी ही सेक्स की जीवन में संभावना कम होती चली जाती है।
प्रेम और ध्यान, दोनों मिल कर उस दरवाजे को खोल देते हैं जो परमात्मा का दरवाजा है।
प्रेम + ध्यान = परमात्मा। प्रेम और ध्यान का जोड़ हो जाए और परमात्मा उपलब्ध हो जाता है।
और उस उपलब्धि से जीवन में ब्रह्मचर्य फलित होता है। फिर सारी ऊर्जा एक नये ही मार्ग पर ऊपर चढ़ने लगती है। फिर बह-बह कर निकल नहीं जाती। फिर जीवन से बाहर निकल-निकल कर व्यर्थ नहीं हो जाती। फिर जीवन के भीतरी मार्गों पर गति करने लगती है। उसका एक ऊर्ध्वगमन, एक ऊपर की तरफ यात्रा शुरू होती है।
अभी हमारी यात्रा नीचे की तरफ है। सेक्स, ऊर्जा का अधोगमन है, नीचे की तरफ बह जाना है। ब्रह्मचर्य, ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन है, ऊपर की तरफ उठ जाना है।
प्रेम और ध्यान, ब्रह्मचर्य के सूत्र हैं।
तीसरी बात कल आपसे करने को हूं कि ब्रह्मचर्य उपलब्ध होगा तो क्या फल होगा? क्या होगी उपलब्धि? क्या मिल जाएगा?
ये दो बातें मैंने आज आपसे कहीं–प्रेम और ध्यान। मैंने यह कहा कि छोटे बच्चों से इनकी शिक्षा शुरू हो जानी चाहिए। इससे आप यह मत सोच लेना कि अब तो हम बच्चे नहीं रहे, इसलिए करने को कुछ बाकी नहीं है। यह आप मत सोच कर चले जाना, अन्यथा मेरी मेहनत फिजूल गई। आप किसी भी उम्र के हों, यह काम शुरू किया जा सकता है। यह काम कभी भी शुरू किया जा सकता है। हालांकि जितनी उम्र बढ़ती चली जाती है, उतना मुश्किल होता चला जाता है। बच्चों के साथ हो सके, सौभाग्य! लेकिन कभी भी हो सके, सौभाग्य! इतनी देर कभी भी नहीं हुई है कि हम कुछ भी न कर सकें। हम आज शुरू कर सकते हैं।
और जो लोग सीखने के लिए तैयार हैं, वे बुढ़ापे में भी बच्चों जैसे ही होते हैं, वे बुढ़ापे में भी शुरू कर सकते हैं। अगर उनकी सीखने की क्षमता है, अगर लर्निंग का एटिट्यूड है, अगर वे इस ज्ञान से नहीं भर गए हैं कि हमने सब जान लिया और सब पा लिया, तो वे सीख सकते हैं और वे छोटे बच्चों की भांति नई यात्रा शुरू कर सकते हैं।… 28 क्रमशः
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३