अगर जमीन को कामुकता से मुक्त करना है, तो एक-एक छोटे बच्चे को ध्यान की अनिवार्य शिक्षा और दीक्षा मिलनी चाहिए

 अगर जमीन को कामुकता से मुक्त करना है, तो एक-एक छोटे बच्चे को ध्यान की अनिवार्य शिक्षा और दीक्षा मिलनी चाहिए

सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान) 

ओशो- गांधीजी उन्नीस सौ तीस के करीब श्रीलंका गए थे। उनके साथ कस्तूरबा साथ थीं। संयोजकों ने समझा कि शायद गांधीजी की मां साथ आई हुई हैं, क्योंकि गांधीजी कस्तूरबा को खुद भी बा ही कहते थे। लोगों ने समझा कि शायद उनकी मां होंगी। संयोजकों ने परिचय देते हुए कहा कि गांधीजी आए हैं और बड़े सौभाग्य की बात है कि उनकी मां भी साथ आई हुई हैं। वह उनके बगल में बैठी हुई हैं।
गांधीजी के सेक्रेटरी तो घबरा गए कि यह तो भूल हमारी है, हमें बताना था कि साथ में कौन है। लेकिन अब तो बड़ी देर हो चुकी थी। गांधी तो मंच पर जाकर बैठ भी गए थे और बोलना शुरू कर दिया था। सेक्रेटरी घबड़ाए हुए हैं कि गांधी पीछे क्या कहेंगे! उन्हें कल्पना भी नहीं हो सकती थी कि गांधी नाराज नहीं होंगे, क्योंकि ऐसे पुरुष बहुत कम हैं जो पत्नी को मां बनाने में समर्थ हो जाते हैं। लेकिन गांधीजी ने कहा कि सौभाग्य की बात है कि जिन मित्र ने मेरा परिचय दिया है, उन्होंने भूल से एक सच्ची बात कह दी है। कस्तूरबा कुछ वर्षों से मेरी मां हो गई है। कभी वह मेरी पत्नी थी। लेकिन अब वह मेरी मां है।
इस बात की संभावना है कि अगर पति और पत्नी काम को, संभोग को समझने की चेष्टा करें, तो एक-दूसरे के मित्र बन सकते हैं और एक-दूसरे के काम के रूपांतरण में सहयोगी और साथी हो सकते हैं। और जिस दिन कोई पति और पत्नी अपने आपस के संभोग के संबंध को रूपांतरित करने में सफल हो जाते हैं, उस दिन उनके जीवन में पहली दफे एक-दूसरे के प्रति अनुग्रह और ग्रेटिट्यूड का भाव पैदा होता है, उसके पहले नहीं। उसके पहले वे एक-दूसरे के प्रति क्रोध से भरे रहते हैं, उसके पहले वे एक-दूसरे के बुनियादी शत्रु बने रहते हैं, उसके पहले उनके बीच एक संघर्ष है, मैत्री नहीं।
मैत्री उस दिन शुरू होती है जिस दिन वे एक-दूसरे के साथी बनते हैं और उनके काम की ऊर्जा को रूपांतरण करने में माध्यम बन जाते हैं। उस दिन एक अनुग्रह, एक ग्रेटिट्यूड, एक कृतज्ञता का भाव ज्ञापन होता है। उस दिन पुरुष आदर से भरता है स्त्री के प्रति, क्योंकि स्त्री ने उसे कामवासना से मुक्त होने में सहायता पहुंचाई। उस दिन स्त्री अनुगृहीत होती है पुरुष के प्रति कि उसने उसे साथ दिया और उसकी वासना से मुक्ति दिलवाई। उस दिन वे सच्ची मैत्री में बंधते हैं, जो काम की नहीं, प्रेम की मैत्री है। उस दिन उनका जीवन ठीक उस दिशा में जाता है, जहां पत्नी के लिए पति परमात्मा हो जाता है और पति के लिए पत्नी परमात्मा हो जाती है–उस दिन!
लेकिन वह कुआं तो विषाक्त कर दिया गया है। इसलिए मैंने कल कहा कि मुझसे बड़ा शत्रु सेक्स का खोजना कठिन है। लेकिन मेरी शत्रुता का यह मतलब नहीं है कि मैं सेक्स को गाली दूं और निंदा करूं। मेरी शत्रुता का मतलब यह है कि मैं सेक्स को रूपांतरित करने के संबंध में दिशा-सूचन करूं। मैं आपको कहूं कि वह कैसे रूपांतरित हो सकता है। मैं कोयले का दुश्मन हूं, क्योंकि मैं कोयले को हीरा बनाना चाहता हूं। मैं सेक्स को रूपांतरित करना चाहता हूं। वह कैसे रूपांतरित होगा? उसकी क्या विधि होगी?
मैंने आपसे कहा, एक द्वार खोलना जरूरी है–नया द्वार।
बच्चे जैसे ही पैदा होते हैं, वैसे ही उनके जीवन में सेक्स का आगमन नहीं हो जाता है। अभी देर है। अभी शरीर शक्ति इकट्ठी करेगा। अभी शरीर के अणु मजबूत होंगे। अभी उस दिन की प्रतीक्षा है जब शरीर पूरा तैयार हो जाएगा, ऊर्जा इकट्ठी होगी। और द्वार जो बंद रहा है चौदह वर्षों तक, वह खुल जाएगा ऊर्जा के धक्के से, और सेक्स की दुनिया शुरू होगी। एक बार द्वार खुल जाने के बाद नया द्वार खोलना कठिन हो जाता है। क्योंकि समस्त ऊर्जाओं का नियम यह है, समस्त शक्तियों का, वे एक दफा अपना मार्ग खोज लें बहने के लिए तो वे उसी मार्ग से बहना पसंद करती हैं।
गंगा बह रही है सागर की तरफ, उसने एक बार रास्ता खोज लिया। अब वह उसी रास्ते से बही चली जाती है, बही चली जाती है। रोज-रोज नया पानी आता है, उसी रास्ते से बहता हुआ चला जाता है। गंगा रोज नये रास्ते नहीं खोजती है।
जीवन की ऊर्जा भी एक रास्ता खोज लेती है, फिर वह उसी से बहती चली जाती है। अगर जमीन को कामुकता से मुक्त करना है, तो सेक्स का रास्ता खुलने के पहले नया रास्ता–ध्यान का रास्ता–तोड़ देना जरूरी है। एक-एक छोटे बच्चे को ध्यान की अनिवार्य शिक्षा और दीक्षा मिलनी चाहिए।
पर हम तो उसे सेक्स के विरोध की दीक्षा देते हैं, जो कि अत्यंत मूर्खतापूर्ण है। सेक्स के विरोध की दीक्षा नहीं देनी है। शिक्षा देनी है ध्यान की, पाजिटिव, कि वह ध्यान को कैसे उपलब्ध हो। और बच्चे ध्यान को जल्दी उपलब्ध हो सकते हैं। क्योंकि अभी उनकी ऊर्जा का कोई भी द्वार खुला नहीं है। अभी द्वार बंद है, अभी ऊर्जा संरक्षित है, अभी कहीं भी नये द्वार पर धक्के दिए जा सकते हैं और नया द्वार खोला जा सकता है। फिर यही बूढ़े हो जाएंगे और इन्हें ध्यान में पहुंचना अत्यंत कठिन हो जाएगा।
ऐसे ही, जैसे एक नया पौधा पैदा होता है, उसकी शाखाएं कहीं भी झुक जाती हैं, कहीं भी झुकाई जा सकती हैं। फिर वही बूढ़ा वृक्ष हो जाता है। फिर हम उसकी शाखाओं को झुकाने की कोशिश करते हैं। फिर शाखाएं टूट जाती हैं, झुकती नहीं।…..24 क्रमशः

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3