कृष्ण सूत्र- राधा एक यौगिक प्रक्रिया है, वह जो जीवन की धारा बाहर की तरफ बह रही है, जिस दिन उलटी हो जाती है, उस दिन उस धारा का नाम राधा हो जाता है “ओशो”

 कृष्ण सूत्र- राधा एक यौगिक प्रक्रिया है, वह जो जीवन की धारा बाहर की तरफ बह रही है, जिस दिन उलटी हो जाती है, उस दिन उस धारा का नाम राधा हो जाता है “ओशो”

ओशो– सब उपाय धर्म के क्षुद्र को भूलने के उपाय हैं। कहो उसे प्रार्थना कहो ध्यान, कहो पूजा, कहो जप; जो भी नाम देना हो, दो। क्षुद्र को भूलने के उपाय हैं। और क्षुद्र भूल जाए, तो हम उस किनारे पर खड़े हो जाते हैं, जहां से नौका विराट में छोड़ी जा सकती है। थोड़ी देर को भी क्षुद्र भूल जाए, तो कुछ हो सकता है; कोई नए तल पर हमारा होना, कोई नई दृष्टि, कोई नया हृदय हम में धड़क सकता है। कोई नया स्वर, जो भीतर निरंतर बजता रहा है, सनातन है। लेकिन हमारे लिए नया है, क्योंकि हम पहली दफा सुनेंगे। वह चारों तरफ की भीड़, आवाज, शोरगुल, बंद हो जाए क्षणभर को, तो वह भीतर की धीमी—सी आवाज, सनातन आवाज, हमें सुनाई लगता है।

अर्जुन भूल गया है। संसार का विस्मरण, युद्ध का विस्‍मरण, परिस्थिति का विस्मरण, उसके लिए ब्रह्म की जिज्ञासा बन गई है। और कृष्ण ने उससे एक बात भी नहीं कही। कहा कि देख।यह भी थोड़ा सोच लेने जैसा है कि क्या अर्जुन को अब कुछ करना नहीं है। कृष्‍ण कहते हैं, देख। और अर्जुन देखना शुरू कर देगा! क्या हुआ होगा? यह बहुत बारीक है। और जो अध्यात्म में गहरे उतरते हैं, उन्हें समझ लेने जैसा है। या उतरना चाहते हैं कभी, तो इसे सम्हाल—सम्हालकर रख लेने जैसा है।

वह जो तीसरी आंख है, दो प्रकार से सक्रिय हो सकती है। या तो साधक चेष्टापूर्वक अपनी दोनों आंखों की ज्योति को भीतर खींच ले, आंख को बंद करके। वर्षों की लंबी साधना है, आंखों को निज्योंति करने की। क्योंकि आंख से हमारी जो चेतना बह रही है बाहर, उसे आंख बंद करके भीतर खींच लेने की। इसको कबीर ने आंख को उलटा कर लेना कहा है। मतलब है कि धारा जो बाहर बह रही थी, वह भीतर बहने लगे।आपने कृष्‍ण की प्रेयसी राधा का नाम सुना है। आपको खयाल न होगा, वह धारा का उलटा शब्द है। कृष्‍ण के समय के जो भी शास्त्र हैं, उनमें राधा का कोई उल्लेख नहीं है। राधा के नाम का भी कोई उल्लेख नहीं है। बहुत बाद में, बहुत बाद की किताबों में राधा का उल्लेख शुरू हुआ। जिन्होंने उल्लेख शुरू किया, वे बड़े होशियार लोग थे। उन्होंने एक प्रतीक में बड़ा रहस्य छिपाकर रखा। लेकिन लोगों ने फिर राधा की मूर्तियां बना लीं। और फिर लोग कृष्ण और राधा बनकर मंच पर रास—लीला करने लगे!

राधा एक यौगिक प्रक्रिया है। वह जो जीवन की धारा बाहर की तरफ बह रही है, जिस दिन उलटी हो जाती है, उस दिन उस धारा का नाम राधा हो जाता है। सिर्फ शब्द को उलटा कर लेने से।

वह जो आंख से हमारी जीवन— धारा बाहर जा रही है, जब भीतर आने लगती है, तो वह राधा हो जाती है। और भीतर हमारे छिपा है कृष्ण, मैंने कहा, साक्षी। वह साक्षी, जो हमारे भीतर छिपा है, जब हमारी जीवन— धारा उसकी राधा बन जाती है, उसके चारों तरफ नाचने लगती है, बाहर नहीं जाती; भीतर, और रास शुरू हो जाता है। उस रास की बात है।

और हम नौटंकी कर रहे हैं, मंच वगैरह सजाकर। ऊधम करने के बहुत उपाय हैं। उपद्रव करने के बहुत उपाय हैं। और आदमी हर जगह से उपद्रव खोज लेता है। और अपने को भरमा लेता है, और सोचता है, बात खतम हो गई।

राधा हमारी जीवन— धारा का नाम है, जब उलटी हो जाए, वापस लौटने लगे स्रोत की तरफ। अभी जा रही है बाहर की तरफ। जब जाने लगे भीतर की तरफ, अंतर्यात्रा पर हो जाए, तब, तब जो रास भीतर घटित होता है, परम रास, वह जो परम जीवन का अनुभव और आनंद, वह जो एक्सटैसी है, वह जो नृत्य है भीतर, उसकी बात है।

तो एक तो उपाय है कि हम चेष्टा से, श्रम से, योग से, तंत्र से, साधन से, विधि से, मैथड से, सारी जीवन चेतना को भीतर खींच लें। एक उपाय है साधक का, योगी का।

एक दूसरा उपाय है भक्त का, समर्पित होने वाले का, कि वह समर्पण कर दे। जिस व्यक्ति की अंतर्धारा भीतर की तरफ दौड़ रही हो, उसको समर्पण कर दे।

तो जैसे अगर आप एक चुंबक के पास एक साधारण लोहे का टुकड़ा रख दें, तो चुंबक की जो चुंबकीय धारा है, जो मैग्नेटिक फील्ड है, वह उस लोहे के टुकड़े को भी मैग्नेटाइज कर देता है, उस लोहे के टुकड़े को भी तत्काल चुंबक बना देता है। ठीक वैसे ही अगर कोई व्यक्ति उस व्यक्ति की तरफ अपने को पूरी तरह समर्पित कर दे, जिसकी धारा भीतर की तरफ जा रही है, तो तत्‍क्षण उसकी धारा भी उलटी होकर बहने लगती है।

🍁🍁ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३🍁🍁
गीता दर्शन—भाग—5
विराट से साक्षात की तैयारी—(प्रवचन—पहला)
अध्‍याय—11