ओशो- लाओत्से कहता है, “सर्वश्रेष्ठ शासक कौन है? जिसके होने की भी खबर प्रजा को न हो।” पता ही न चले कि वह भी है, क्योंकि होने की खबर भी हिंसा है। अगर बेटे को पता चलता है कि घर में बाप है, तो बाप की तरफ से कोई न कोई हिंसा जारी है। अगर […]Read More
श्री चित्रगुप्त मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह शुरू, निकली कलश
भिलाई/ मिलाई-दुर्ग के कायस्थजनों की प्रतिनिधि संस्था चित्रांश चेतना मंच भिलाई-दुर्ग द्वारा जवाहर नगर, वार्ड क्रमांक-25 में स्पोर्ट्स काम्पलेक्स के पास श्री चित्रगुप्त मंदिर में आयोजित प्राण प्रतिष्ठा समारोह का शुक्रवार को शुभारंभ हुआ। तीन दिवसीय समारोह के पहले दिन भव्य कलश एवं शोभायात्रा निकाली गई। महिलाओं ने बैकुंठधाम स्थित सूर्यकुंड से जल लाया। इसके […]Read More
ओशो– ‘अ, से अंत होने वाले किसी शब्द का उच्चार चुपचाप करो।’ बाहर जाने वाली श्वास पर जोर दो। और तुम इस विधि का उपयोग मन में अनेक परिवर्तन लाने के लिए कर सकते हो। अगर तुम कब्जियत से पीड़ित हो तो श्वास लेना भूल जाओ, सिर्फ श्वास को बाहर फेंको। श्वास भीतर ले जाने […]Read More
ओशो– आधुनिक मनोविज्ञान और वैज्ञानिक शोध कहती है कि दोनों भौंहों के मध्य में एक ग्रंथि है जो शरीर का सबसे रहस्यमय अंग है। यह ग्रंथि, जिसे पाइनियल ग्रंथि कहते है। यही तिब्बतियों का तृतीय नेत्र है—शिवनेत्र : शिव का, तंत्र का नेत्र। दोनों आंखों के बीच एक तीसरी आँख का अस्तित्व है, लेकिन साधारणत: […]Read More
ओशो- स्थितप्रज्ञ बड़ा मीठा शब्द है। अर्थ है उसका जिसकी प्रज्ञा अपने में ठहर गई, जिसका बोध अपने में रुक गया, जिसकी चेतना स्वयं को छोड़ कर कहीं भी नहीं जाती। ठहर गई चेतना जिसकी, ऐसा यति, ऐसा साधक, ऐसा संन्यासी, सदा आनंद को पाता रहता है। मन के तल पर है सुख और दुख, […]Read More
ओशो- मनोवैज्ञानिक कहते हैं : जिस दिन से तुम अतीत के संबंध में ज्यादा विचार करने लगो, समझ लेना कि बूढ़े हो गए। बुढ़ापे की यह मनोवैज्ञानिक परिभाषा है। जिस दिन से तुम्हें अतीत के ज्यादा विचार आने लगें और तुम पीछे की बातें करने लगो, कि वे दिन, अब क्या रखा है, अब दुनिया […]Read More
ओशो-‘’अ: से अंत होने वाले किसी शब्द का उच्चार चुपचाप करो। और तब हकार में अनायास सहजता को उपलब्ध होओ।‘’ ‘’अ: से अंत होने वाले किसी शब्द का उच्चार चुपचाप करो।‘’ कोई भी शब्द जिसका अंत अ: से होता है, उसका उच्चार चुपचाप करो। शब्द के अंत में अ: के होने पर जोर है। क्यों? […]Read More
ओशो- स्वामी राम जापान गए। जिस जहाज पर वह थे, एक नब्बे वर्ष का जर्मन बूढ़ा चीनी भाषा सीख रहा था। अब चीनी भाषा सीखनी बहुत कठिन बात है। शायद मनुष्य की जितनी भाषाएं हैं, उनमें सबसे ज्यादा कठिन बात है। क्योंकि चीनी भाषा के कोई वर्णाक्षर नहीं होते, कोई क ख ग नहीं होता। […]Read More
ओशो- महावीर के संबंध में कहा जाता है— पच्चीस सौ साल में महावीर के पीछे चलनेवाला कोई भी व्यक्ति नहीं समझा पाया कि इसका राज क्या है। महावीर ने बारह वर्षों में केवल तीन सौ पैंसठ दिन भोजन किया। इसका अर्थ हुआ कि ग्यारह वर्ष भोजन नहीं किया। कभी तीन महीने बाद एक दिन किया, […]Read More
बड़ा प्यारा सुत्र, मार्गों में अष्टांगिकमार्ग, सत्यों में चार पद,
ओशो- बहुत मार्ग हैं भीतर आने के, लेकिन बुद्ध कहते हैं, अष्टांगिक मार्ग उसमें श्रेष्ठ है। तुम बाहर के मार्गों की बातें कर रहे हो कि कौन सा रास्ता अच्छा है, अरे पागलों, अष्टांगिक मार्ग श्रेष्ठ है। भीतर आने के बहुत मार्गों में आठ अंगों वाला अष्टांगिक मार्ग श्रेष्ठ है। वे आठ अंग निम्न है […]Read More