ओशो- आइंस्टीन से मरने के पहले किसी ने पूछा कि तुम अगर दुबारा जन्म लो तो क्या करोगे? तो उसने कहा, मैं एक प्लंबर होना पसंद करूंगा बजाय एक वैज्ञानिक होने के। क्योंकि वैज्ञानिक होकर देख लिया कि मेरे मांध्यम से, मेरे बिना जाने, मेरी बिना आकांक्षा के, मेरे विरोध में, मेरे ही हाथों से […]Read More
कुम्हारी/ कुम्हारी से लगे खारुन नदी तट आनन्द धाम अकोला में हर साल की तरह इस साल भी यदुवंशी परिवारों ने बड़ी धूमधाम से मातर त्यौहार मनाया। जिसमें यदुवंशी ने साज सज्जा कर वेशभूषा में ग्राम भ्रमण कर घरों में जा कर पशुओं को सोहाई बांधा।गांव के प्रभु यादव ने बताया कि यह हमारी गांव […]Read More
ओशो- सनातन का अर्थ ही यह है, शाश्वत का अर्थ ही है यह कि हम उसे जान सकते हैं लेकिन कह नहीं सकते। कहना शामिल हो जाता है। सब भाषा समय की भाषा है। सब प्रतीक समय के प्रतीक हैं। सब कहना समय का कहना है। सनातन सत्य कहीं भी नहीं है, जिनको आप पकड़ […]Read More
प्रश्न: महाभारत को आपने बहुत-बहुत महिमा दी है, उसे जीवन का पूरा काव्य कहा है। तब क्या यह दावा सही है कि जो महाभारत में नहीं है, वह कहीं भी नहीं है? ओशो: पहली बात, दावा सही है। जो महाभारत में नहीं है, वह कहीं भी नहीं है। महाभारत का जन्म हुआ उस आत्यंतिक शिखर […]Read More
ओशो- भय को न मारा जा सकता है न जीता जा सकता है, केवल समझा जा सकता है और केवल समझ ही रूपांतरण लाती है, बाकी कुछ नहीं। अगर तुम अपने भय को जीतने की कोशिश करोगे, तो यह दबा रहेगा, तुम्हारे भीतर गहरे में चला जाएगा। उससे कुछ सुलझेगा नहीं, बल्कि चीजें और उलझ […]Read More
ओशो- जीवन जैसा है वैसी ही मृत्यु होगी। जो उस पार है वैसा ही इस पार होना पड़ेगा। जैसे तुम यहां हो वैसे ही वहां हो सकोगे। क्योंकि तुम एक सिलसिला हो, एक तारतम्य हो। ऐसा मत सोचना कि मृत्यु के इस पार तो अंधेरे में जीयोगे और मृत्यु के उस पार प्रकाश में। जो […]Read More
ओशो- यह अंधेरा कब तक रहेगा? जब तक तुमने स्वयं को शरीर माना है, यह अंधेरा रहेगा। जब तक दीया है, तक तक अंधेरा रहेगा। ज्योति अकेली हो, फिर उसके नीचे कोई अंधेरा नहीं रहेगा। ज्योति सहारे से है। थोड़ी देर को सोचो, ज्योति, ज्योति मुक्त हो गई अकेली आकाश में, उसके चारों तरफ प्रकाश […]Read More
ओशो– सफाई सृष्टि का सब से महत्वपूर्ण अंग है। सृष्टि का सफाई का इंतजाम भी इतना पुख्ता होता है …इतना पक्का होता है की उसे जो चीजें यहां चाहिए …वहीं रह सकती है। हम भी प्रकृति के लिए एक वस्तु की तरह ही है। मानव प्रकृति की एक ऐसी आखिरी कड़ी है जो शरीर को […]Read More
परमात्मा किसी को कम और ज्यादा देता नहीं। उसका सूरज सबके लिए उगता है। उसकी आंखों में न कोई छोटा है न कोई बड़ा है। न खुद जगमगाए बल्कि इनकी जगमगाहट से और भी लोग जगमगाएं। दीयों से दीये जलते चले गए। ज्योति से ज्योति जले! परमात्मा की तरफ से प्रत्येक को बराबर मिला है […]Read More
’’कानों को दबाकर और गुदा को सिकोड़कर बंद करो, और ध्वनि में प्रवेश करो।‘’ ओशो- हम अपने शरीर से भी परिचित नहीं है। हम नहीं जानते कि शरीर कैसे काम करता है और उसका ताओ क्या है, ढंग क्या है, मार्ग क्या है। लेकिन अगर तुम निरीक्षण करो तो आसानी से उसे जान सकते हो। […]Read More