ओशो– बुद्ध ने छह वर्ष की तपश्चर्या की। जो करने योग्य था किया जो भी किया जा सकता था किया। कुछ भी अनकिया न छोडा जिसने जो कहा वही किया। जिस गुरु ने जो बताया उसको समग्र मनभाव से किया तन प्राण से किया। रत्तीभर भी अपने को बचाया नहीं। सब तरह अपने को दांव […]Read More
🟢नारी भिन्न है🟢 ओशो– मैं आपको यह कहना चाहता हूं, स्त्री और पुरुष समान आदर के पात्र हैं, लेकिन समान बिलकुल भी नहीं हैं, बिलकुल असमान हैं। स्त्री स्त्री है, पुरुष पुरुष है। और उन दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। इस फर्क को अगर ध्यान में न रखा जाए तो जो भी शिक्षा होगी […]Read More
ओशो– आप पैदा हुए। तो शायद आपको खयाल होगा, जन्म की एक तिथि है और फिर मृत्यु की एक तिथि है, इन दोनों के बीच आप समाप्त हो जाएंगे। लेकिन इस जगत में कोई भी चीज आइसोलेटेड नहीं है। इस जगत में कोई चीज अलग- थलग नहीं है। जन्म के पहले भी आपको किसी न […]Read More
ओशो– प्रेम ही शांति ला सकता है। प्रेम का अर्थ हैः उससे मिल जाना जो हमारा स्वभाव है। प्रेम का अर्थ हैः उससे मिल जाना जिससे मिलना हमारी नियति है। प्रेम का अर्थ हैः उसे पा लेना जिसे पाने को हम बने हैं। प्रेम का अर्थ हैः बीज फूल हो जाए, तो सब शांत हो […]Read More
ओशो– अंध—श्रद्धा से अर्थ है, वस्तुत: जिसमें श्रद्धा न हो, सिर्फ ऊपर—ऊपर से श्रद्धा कर ली गई हो। भीतर से आप भी जानते हों कि श्रद्धा नहीं है, लेकिन किसी भय के कारण या किसी लोभ के कारण या मात्र संस्कार के कारण, समाज की शिक्षा के कारण स्वीकार कर लिया हो। ऐसी श्रद्धा के […]Read More
ओशो- मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं। मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं-दि अपोजिट इज आलवेज दि अट्रैक्यान। और हर आदमी जिससे मोहित होता है, वह उसके विपरीत होता है। यह विपरीत का नियम जीवन के समस्त पहलुओं पर लागू होता है। पुरुष स्त्रियों में आकर्षित होते हैं, उनकी विपरीतता के कारण। स्त्रियां […]Read More
ओशो– कृष्ण कहते हैं, मैं वापस लौट आता हूं यह इस बात की खबर है कि अस्तित्व वैसा ही हो जाएगा, जैसी आपकी गहरी—गहरी मौन प्रार्थना होगी। जैसा गहरा भाव होगा, अस्तित्व वैसा ही राजी हो जाएगा। इसके बड़े इंप्लीकेशंस हैं, इसकी बड़ी रहस्यपूर्ण उपपत्तिया हैं। इसका मतलब यह हुआ कि आप जो भी कर […]Read More
चुनाव की अप्रतिम स्वतंत्रता है;. दुर्भाग्य, क्योंकि हम गलत को
ओशो– एक अति प्राचीन कथा है। घने वन में एक तपस्वी साधनारत था–आंख बंद किए सतत प्रभु-स्मरण में लीन। स्वर्ग को पाने की उसकी आकांक्षा थी; न भूख की चिंता थी, न प्यास की चिंता थी। एक दीन-दरिद्र युवती लकड़ियां बीनने आती थी वन में। वही दया खाकर कुछ फल तोड़ लाती, पत्तों के दोने […]Read More
ओशो– श्रीकृष्ण कहते हैं, स्त्रियों में श्री मैं हूं। लेकिन जब कभी वह फूल खिलता है मुश्किल से खिलता है लेकिन जब कभी वह फूल खिलता है, तो स्त्री स्त्री नहीं होती। पुरुष के प्रति पुरुष होने का जो खयाल है, वह भी खो जाता है। और जिन मुल्कों ने इस श्री को उपलब्ध करने […]Read More
ओशो– दूसरे महायुद्ध में, किसी देश में सैनिकों की भर्ती हो रही थी। जल्दी-जल्दी सैनिक चाहिए थे। हर कोई भर्ती हो रहा था। एक आदमी सैनिक भर्ती के दफ्तर में गया, एक जवान आदमी। उसने फार्म भरा। जो अफसर उसे भर्ती करने को था,उसने पूछा, वह नौ-सेना का, जल-सेना का अधिकारी था और जल-सेना की […]Read More