ओशो– मैंने सुना है, एस्किमो परिवारों में एक रिवाज है। एक फ्रेंच यात्री जब पहली दफा एस्किमो ध्रुवीय देशों में गया, तो उसे कुछ पता नहीं था। बहुत गरीब है एस्किमो, गरीब से गरीब है, लेकिन शायद उनसे संपन्न आदमी पाना भी बहुत मुश्किल है। उस फ्रेंच लेखक ने लिखा है कि मैने उनसे ज्यादा […]Read More
ओशो- जब रामकृष्ण को उनके अंतिम गुरु तोतापुरी का मिलना हुआ, तो रामकृष्ण करीब -करीब सिद्ध- अवस्था में थे। करीब-करीब में कहता हूं ख्याति हो गई थी कि रामकृष्ण पहुंच गये। रामकृष्ण को पता था कि अभी थोड़ी-सी कमी है, बस एक सीढ़ी और; मगर दूसरों को क्या पता! दूसरे तो देखते थे कि इतनी […]Read More
ओशो– बुद्ध ने कहा है कि–गुरु को खोज लेने वाला व्यक्ति बहुत भाग्यशाली है। परन्तु मैं तुम लोगों जैसा भाग्यशाली नहीं था। मैं बिना किसी गुरु के ही काम कर रहा था। मैंने खोज की थी, लेकिन मुझे कोई मिला ही नहीं। मैंने बहुत देर तक खोज की थी, किन्तु असफल रहा। सद्गुरु का मिलना […]Read More
ओशो– अफ्रीका में बहुत से कबीले हैं जो दिन में एक ही बार भोजन करते हैं। चोबीस घंटे में एक ही बार। जब उनको पहली दफा पता चला कि दुनिया में और लोग दो बार करते हैं, कुछ लोग तीन बार और अमरीकी हैं जो पांच बार। और पांच बार के बीच-बीच में जो-जो फ्रिज […]Read More
ओशो– तर्क और विवाद, तर्क और खंडन से न तो कभी कोई संवाद हुआ है, न हो सकता है। संवाद का अर्थ है: दो हृदयों की बातचीत; विवाद से अर्थ है: दो बुद्धियों का टकराव। संवाद का अर्थ है: दो व्यक्तियों का मिलन; विवाद से अर्थ है: दो व्यक्तियों का संघर्ष। संवाद में कोई हारता […]Read More
परधर्म, स्वधर्म और धर्म ओशो- इसलिए धर्म सबसे बड़ा दुस्साहसिक काम है, सबसे बड़ा एडवेंचर है। न तो चांद पर जाना इतना दुस्साहसिक है, न एवरेस्ट पर चढ़ना इतना दुस्साहसिक है, न प्रशांत महासागर की गहराइयों में डूब जाना इतना दुस्साहसिक है, न ज्वालामुखी में उतर जाने में इतना दुस्साहस है, जितना दुस्साहस स्वधर्म की […]Read More
प्रश्न :- क्या हम अपने अतीत के जन्मों को जान सकते है? ओशो– निश्चित ही जान सकते है। लेकिन अभी तो आप इस जन्म को भी नहीं जानते है, अतीत के जन्मों को जानना तो फिर बहुत कठिन है। निश्चित ही मनुष्य जान सकता है। अपने पिछले जन्मों को। क्योंकि जो भी एक बार चित […]Read More
प्रश्न : एक पुरूष और एक स्त्री के बीच किस प्रकार का प्रेम संबंध की संभावना है, जो की सेडोमेसोकिज्म (पर-आत्मपीड़क) ढांचे में न उलझा हो? ओशो : यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न है। धर्मों ने इसे असंभव कर दिया है। स्त्री और पुरूष के बीच कोई भी सुंदर संबंध—इसे नष्ट कर दिया है। इसे […]Read More
प्रश्न- “आप जो कुछ कृष्ण के बारे में कह रहे हैं, उनके गुणों को वर्णन कर रहे हैं, और ऐसा लगता है जैसे उनकी भक्ति के प्रवाह में हम बह गए हैं। ऐसा क्या संभव नहीं है कि उनमें कुछ दोष भी हों? क्या यह जरूरी है कि उनके हर कर्म को “जस्टिफाई’ ही करते […]Read More
ओशो- बुद्धिमानी का उपयोग लोग जीवन के सत्य को पाने के लिये नहीं, बुद्धिमानी का उपयोग लोग दूसरे का शोषण करने के लिये; बुद्धिमानी का उपयोग स्वयं के अनुभव को पाने के लिये नहीं, सृजनात्मक नहीं, विध्वंसात्मक करते हैं। इसलिये जैसे-जैसे बुद्धि बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे बेईमानी बढ़ती जाती है। विचारक हमेशा से परेशान रहे […]Read More