ओशो– बुद्ध एक पहाड़ के पास से गुजरते हैं। धूप है तेज। गर्मी के दिन। उन्हें प्यास लगी। आनंद से उन्होंने कहा, आनंद, तू पीछे लौट कर जा; अभी-अभी हमने एक नाला पार किया है, तू पानी भर ला!आनंद भिक्षा-पात्र लेकर पीछे गया। कोई दो फर्लांग दूर वह नाला था। जब बुद्ध और आनंद वहां […]Read More
ओशो- मनुष्य के कृत्यों को देखों! तीन हजार वर्षों में पाँच हजार युद्ध आदमी ने लड़े हैं। उसकी पूरी कहानी हत्याओं की कहानी है, लोगों को जिंदा जला देने की कहानी है- और एक को नहीं, हजारों को। और यह कहानी खत्म नहीं हो गई है। क्या तुम सोचते हो आदमी बंदर से विकसित हो […]Read More
ओशो– बहुत पुराने समय की बात है, एक पहाड़ के ऊपर, एक बहुत दुर्गम पहाड़ के ऊपर एक स्वर्ण का मंदिर था। उस मंदिर में जितनी संपदा थी, उतनी उस समय सारी जमीन पर भी मिला कर नहीं थी। सारा मंदिर ही स्वर्ण का था, रत्न रचित था। उस मंदिर का जो प्रधान पुजारी था, […]Read More
ओशो- शिव का अर्थ है-शुभ। अच्छा। लेकिन शिव के व्यक्तित्व में, जिसे हम बुरा कहें वह सब भी मौजूद है। जिसे हम बुरा कहें, वह सब मौजूद है। शिव का अर्थ ही है शुभ, लेकिन शिव को हमने विध्वंस का देवता माना है। विनाश का। उसी से अंत होगा जगत का। हैरानी की बात मालूम […]Read More
ओशो- यह जो……इस चौथे शरीर में जो आदमी ने जाना है, उसकी व्याख्या करनेवाला आदमी नहीं है, उसकी व्याख्या खोजनेवाला आदमी नहीं है। उसको ठीक जगह पर, ठीक आज के पर्सपेक्टिव में और आज के विज्ञान की भाषा में रख देनेवाला आदमी नहीं है। वह तकलीफ हो गई है। और कोई तकलीफ नहीं हो गई […]Read More
ओशो– मन मांगता रहता है संसार को; वासनाएं दौड़ती रहती हैं वस्तुओं की तरफ; शरीर आतुर होता है शरीरों के लिए; आकांक्षाएं विक्षिप्त रहती हैं पूर्ति के लिए–ऐसे एक यज्ञ तो जीवन में चलता ही रहता है। यह यज्ञ चिता जैसा है। आग तो जलती है, लपटें तो वही होती हैं। जो हवन की वेदी […]Read More
“भगवान श्री, रामावतार में जैसे अहिल्या का शिला-व्यक्तित्व राम का इंतजार करता था और शिला में से अहिल्या हुई, इसी तरह कृष्णावतार में भगवान कृष्णचंद्र का जो समागम कुब्जा के साथ हुआ, क्या उसका कोई “स्प्रिचुअल’ अर्थ घटाते हैं? वह क्या है, उसे कृपया स्पष्ट करें।” ओशो- जीवन में सभी कुछ, सभी समय घटित नहीं […]Read More
ओशो– हम इस मुल्क में भलीभांति जानते हैं। जिनको आजादी के पहले हमने चरित्रवान समझा था, ठीक आजादी के बाद एक रात में उनके चरित्र बह गए। जो सेवक की तरह बिलकुल भोले-भाले मालूम पड़ते थे, वे सत्ताधिकारी की तरह ठीक चंगेज और तैमूर के वंशज सिद्ध होते हैं। क्या हो जाता है रातभर में? […]Read More
ओशो- तुम अगर इसलिए सत्य बोलते हो क्योंकि तुम्हें संस्कार डाल दिया गया है सत्य बोलने का, तो तुम्हारा सत्य दो कौड़ी का है। तुम अगर इसलिए मांसाहार नहीं करते क्योंकि तुम जैन घर में पैदा हुए और संस्कार डाल दिया गया कि मांसाहार पाप है, इतना लंबा संस्कार डाला गया कि आज मांस को […]Read More
भिलाई/ भारतीय रेल में पहला विद्युत लोको 3 फरवरी 1925 को देश में बॉम्बे वीटी से कुर्ला हार्बर के बीच चली थी। इसके बाद लगातार विकसित लोको से देश में परिचालन होता रहा है।आज तक डब्लूएपी 1.2.3.4.5 , डब्लू ए एम 4, डब्लू ए जी 9, डब्लू ए जी 7.. डब्लू ए पी 5., 7 […]Read More