ओशो-‘’अ: से अंत होने वाले किसी शब्द का उच्चार चुपचाप करो। और तब हकार में अनायास सहजता को उपलब्ध होओ।‘’ ‘’अ: से अंत होने वाले किसी शब्द का उच्चार चुपचाप करो।‘’ कोई भी शब्द जिसका अंत अ: से होता है, उसका उच्चार चुपचाप करो। शब्द के अंत में अ: के होने पर जोर है। क्यों? […]Read More
ओशो- स्वामी राम जापान गए। जिस जहाज पर वह थे, एक नब्बे वर्ष का जर्मन बूढ़ा चीनी भाषा सीख रहा था। अब चीनी भाषा सीखनी बहुत कठिन बात है। शायद मनुष्य की जितनी भाषाएं हैं, उनमें सबसे ज्यादा कठिन बात है। क्योंकि चीनी भाषा के कोई वर्णाक्षर नहीं होते, कोई क ख ग नहीं होता। […]Read More
ओशो- महावीर के संबंध में कहा जाता है— पच्चीस सौ साल में महावीर के पीछे चलनेवाला कोई भी व्यक्ति नहीं समझा पाया कि इसका राज क्या है। महावीर ने बारह वर्षों में केवल तीन सौ पैंसठ दिन भोजन किया। इसका अर्थ हुआ कि ग्यारह वर्ष भोजन नहीं किया। कभी तीन महीने बाद एक दिन किया, […]Read More
बड़ा प्यारा सुत्र, मार्गों में अष्टांगिकमार्ग, सत्यों में चार पद,
ओशो- बहुत मार्ग हैं भीतर आने के, लेकिन बुद्ध कहते हैं, अष्टांगिक मार्ग उसमें श्रेष्ठ है। तुम बाहर के मार्गों की बातें कर रहे हो कि कौन सा रास्ता अच्छा है, अरे पागलों, अष्टांगिक मार्ग श्रेष्ठ है। भीतर आने के बहुत मार्गों में आठ अंगों वाला अष्टांगिक मार्ग श्रेष्ठ है। वे आठ अंग निम्न है […]Read More
राम और रावण, मृत्यु और जीवन, दोनों विरोध वस्तुत: विरोधी
प्रश्न : कहा जाता है कि रावण भी ब्रह्मज्ञानी था। क्या रावण भी रावण उसकी मर्जी से नहीं था? क्या रामलीला सच में ही राम की लीला थी? ओशो- निश्चित ही, रावण ब्रह्मज्ञानी था और रावण के साथ बहुत अनाचार हुआ है और दक्षिण में जो आज रावण के प्रति फिर से समादर का भाव […]Read More
धर्म बपौती नहीं है, प्रत्येक व्यक्ति की निजी उपलब्धि है
ओशो– इस समय सारी जमीन जिस भूल में पड़ी है, वह भूल यह है कि हम उस धर्म को, जिसे कि चेष्टा से, साधना से, प्रयास से उपलब्ध करना होगा, उसे हम पैदाइश से उपलब्ध मान लेते हैं! इससे बड़ा धोखा नहीं हो सकता। और जो आपको यह धोखा देता है, वह आपका दुश्मन है। […]Read More
नये के लिए पुराने को गिराना आवश्यक “ओशो”
ओशो– सुना है मैंने, एक गांव में बहुत पुराना चर्च था। वह चर्च इतना पुराना था कि आज गिरेगा या कल, कहना मुश्किल था। हवाएं जोर से चलती थीं तो गांव के लोग डरते थे कि चर्च गिर जाएगा। आकाश में बादल आते थे तो गांव के लोग डरते थे कि चर्च गिर जाएगा। उस […]Read More
आलसी शासन: अगर तुम्हारी गुणवत्ता दूसरे की निंदा बन जाए
ओशो- ऐसा हुआ कि मोहम्मद का एक शिष्य यहूदियों की किताब तालमुद पढ़ रहा था। मोहम्मद ने उसे तालमुद पढ़ते देखा तो उससे कहा, देख, अगर तालमुद पढ़नी हो तो यहूदी हो जा! क्योंकि बिना यहूदी हुए तू कैसे तालमुद समझ पाएगा? मुसलमान रहते हुए तू तालमुद समझ न पाएगा, क्योंकि तेरा पूरापन तालमुद से […]Read More
आलसी शासन: राजनीति का अर्थ है, दूसरे तुम्हें नैतिक बनाने
ओशो- जब विपत्ति आए तो तुम घबड़ाना मत, क्योंकि विपत्ति के ही छाएदार रास्ते से भाग्य भी यात्रा करता है। विपत्ति के पीछे ही भाग्य आता है। विपत्ति के पीछे ही सुख, महासुख की संभावना छिपी है। जब विपत्ति आए तो तुम घबड़ा मत जाना, उद्विग्न मत हो जाना, जल्दी ही भाग्य तुम्हारे द्वार पर […]Read More
आलसी शासन: कानून अगर अतिशय हो तो लोगों को अपराधी
ओशो- कानून अगर अतिशय हो तो लोगों को अपराधी बनाता है क्योंकि इतना कानून कोई भी बरदाश्त नहीं कर सकता कि जीना मुश्किल हो जाए। कानून जीने में सहायता देने को है, जीने को मिटा देने को नहीं। इसलिए कम से कम कर होने चाहिए और कम से कम कानून होने चाहिए। न्यूनतम कानून से […]Read More