ओशो- मैंने सुना, एक आदमी बड़ा क्रोधी था। मगर सोचता था, पत्नी क्रोध दिला देती है। ग्राहक क्रोध दिला देते हैं। बच्चे क्रोध दिला देते हैं, पड़ोसी क्रोध दिला देते हैं। छोड़ दिया संसार–जो सामान्य साधु की प्रक्रिया है; सच्चे साधु की नहीं–छोड़ दिया संसार, चला गया जंगल में, बैठ गया वृक्ष के नीचे, सोचा […]Read More
दो दिन की जिंदगी में न इतना मचल के चल , दुनिया है चलचलाव का रस्ता संभल के चल ओशो- सम्राट बहादुरशाह जफर के शब्द हैं: सम्राट के हैं, इसलिए सोचने जैसे भी बहुत; ऐसे तो कभी ऐसी बातें भिखारी भी कह देते हैं, लेकिन संभावना है कि भिखारी के मन में अपने को सांत्वना […]Read More
ओशो- बुद्ध कहते हैं कि मन को आलसी मत बनने दो, मन को यांत्रिक मत बनने दो। सतर्क रहो, गतिशील रहो. स्थिर मत रहो, चलते रहो। क्योंकि यदि आसक्ति और जुनून को अनुमति दी जाए तो व्यक्ति मूर्ख और तर्कहीन हो जाता है। यदि आप आसक्त हो जाते हैं तो आप मूर्ख बन जाते हैं, […]Read More
ओशोः – “नाभि साधना” जिस व्यक्ति को भी जीवन केंद्रों को विकसित करना है और प्रभावित करना है, उसे पहली बात है, रिदमिक ब्रीदिंग, उसके लिए पहली बात है, लयबद्ध श्वास। चलते उठते बैठते इतनी लयबद्ध, इतनी शांत, इतनी गहरी श्वास कि श्वास का एक अलग संगीत, एक अलग हार्मनी दिन रात उसे मालूम होने […]Read More
ओशो- श्रमिक संपत्ति पैदा नहीं कर रहा है, श्रमिक सिर्फ संपत्ति के पैदा करने का बहुत गौण हिस्सा है और आज नहीं कल, श्रमिक व्यर्थ हो जाएगा, क्योंकि मशीन उसे पूरी तरह से सब्स्टीट्यूट कर देगी। पचास साल के भीतर दुनिया में लेबर, श्रमिक जैसा आदमी नहीं होगा, होने की जरूरत भी नहीं है। अशोभन […]Read More
ओशो- जब प्यास लगी हो तो तुम जल को जानना चाहते हो या पीना चाहते हो? क्या होगा जान कर कि एच-टू-ओ से जल बना हुआ है, कि इसमें इतने परमाणु आक्सीजन के, इतने हाइड्रोजन के? क्या होगा? एच-टू-ओ के फार्मूला को तुम अगर कंठ में भी ले जाओगे तो प्यास मिटेगी नहीं, कंठ अवरुद्ध […]Read More
ओशो- च्वांगत्से की पत्नी मर गई। च्वांगत्से तो ख्याति नाम संत था। सम्राट संवेदना प्रगट करने आया। तो सम्राट तैयार करके आया होगा। जब भी संवेदना प्रगट करने कोई जाता है तो रिहर्सल कर लेता है, क्या कहना! क्योंकि संवेदना का क्षण इतना नाजुक, कि कहीं कुछ गलत बात न निकल जाये! तो हम तैयारी […]Read More
ओशो- आठ का आंकड़ा योग के अष्टांगों से संबंधित है। पतंजलि ने कहा है. आठ अंगों को जो पूरा करेगा—यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि—वही केवल सत्य को उपलब्ध होगा। यह पिता की नाराजगी, यह पिता का अभिशाप सिर्फ इतनी ही सूचना देता है कि वे आठ अंग, जिनसे व्यक्ति परम सत्य को […]Read More
ओशो- मनुष्य की आत्मा आकाश जैसी है। न कहीं गई; न कहीं जाने को कोई जगह है। न कहीं से आई; न कहीं से आ सकती है। आकाश की तरह है; सदा है, सदा से थी, सदा होगी। कोई समय का, कोई स्थान का सवाल नहीं। तुमने कभी पूछा, आकाश कहां से आया? कहां जा […]Read More
ओशो- इस बात को जितनी गहराई से समझ लें उतना साधना में सहायता मिलेगी। तब नकल का तो कोई उपाय नहीं है। तब दूसरे का अनुसरण करना संभव नहीं है; अनुयायी बनने की सुविधा ही नहीं है। तुम बस तुम जैसे हो, और तुम्हें अपना रास्ता खुद ही खोजना होगा। सहारे मिल सकते हैं, सुझाव […]Read More