ओशो- आशीर्वाद गुरु तो अकारण देता है, बेशर्त देता है; लेकिन तुम ले पाओगे या न ले पाओगे, यह तुम पर निर्भर है। इतना ही काफी नहीं है कि कोई दे और तुम ले लो; तुम्हें उसमें कुछ दिखाई भी पड़ना चाहिए, तभी तुम लोगे। वर्षा हो और तुम छाते की ओट में छिपकर खड़े […]Read More
ओशो- प्रेम और प्रेम में बहुत भेद है, क्योंकि प्रेम बहुत तलों पर अभिव्यक्त हो सकता है। जब प्रेम अपने शुद्धतम रूप में प्रकट होता है–अकारण, बेशर्त–तब मंदिर बन जाता है। और जब प्रेम अपने अशुद्धतम रूप में प्रकट होता है, वासना की भांति, शोषण और हिंसा की भांति, ईष्या-द्वेष की भांति, आधिपत्य, पजेशन की […]Read More
ओशो- सूत्र में प्रवेश के पहले पीछे मैंने आपको कहा था कि मंत्र के संबंध में कुछ कहूंगा। आज शिविर का अंतिम दिन है; मंत्र के पर्त संबंध में कुछ समझ लें। उसका प्रयोग जीवन में क्रांति ला सकता है। पहली बात जैसा मैंने कल कहा, पर्त पर्त तुम्हारे व्यक्तित्व में है; जैसे प्याज में […]Read More
ओशो- जब भी कोई व्यक्ति किसी और जैसा बनने की चेष्टा में रत होता है तभी गहरे में चोर हो जाता है। जब भी कोई व्यक्ति किसी और को अपने ऊपर ओढ़ लेता है, तो नकली हो जाता है, असली नहीं रह जाता। आथेंटिक, प्रामाणिक निजता उसकी खो जाती है।इसका यह अर्थ नहीं है कि […]Read More
Once the 22nd Law Commission has south the opinion of people and religious organizations on the issue of Uniform Civil Code (UCC), Read More
ओशो- जीवन एक अवसर है। जीवन तथ्य नहीं, केवल एक संभावना है–जैसे बीज, बीज में छिपे हैं हजारों फूल, पर प्रकट नहीं–अप्रकट हैं, प्रच्छन्न हैं। बहुत गहरी खोज करोगे तो पा सकोगे। पा लोगे तो जीवन धन्य हो जाएगा। फूलों की सारी सुगंध फिर तुम्हारी है, और उनके सारे रंग भी, और उनकी कोमलता, और […]Read More
ओशो- देवता शब्द का अर्थ है… इस जगत में जो भी लोग हैं, जो भी आत्माएं हैं, उनके मरते ही साधारण व्यक्ति का जन्म तत्काल हो जाता है। उसके लिए गर्भ तत्काल उपलब्ध होता है। लेकिन बहुत असाधारण शुभ आत्मा के लिए तत्काल गर्भ उपलब्ध नहीं होता। उसे प्रतीक्षा करनी पड़ती है। उसके योग्य गर्भ […]Read More
ओशो- जब भी कभी कोई आदमी इतना कमजोर होता है कि उसकी आत्मा अपने शरीर में सिकुड़ जाती है, तब कोई प्रेत उसमें प्रवेश कर जाता है; न तो किसी दुष्टता के कारण, न उसको सताने के कारण, बल्कि उसके शरीर के द्वारा अपनी वासना को तृप्त करने के लिए।अगर आप कमजोर हैं, संकल्पहीन […]Read More
ओशो- रामकृष्ण को पहली दफा जब दक्षिणेश्वर के मंदिर में पुजारी की तरह रखा गया तो दो—चार—आठ दिन में ही बड़ी—बड़ी चर्चाएं कलकत्ते में फैलनी शुरू हो गईं। कमेटी के पास लोग गए, ट्रस्टियों के पास लोग गए और कहा कि इस आदमी को अलग कर दो। क्योंकि हमने बड़ी गलत बातें सुनी है। हमने […]Read More
ओशो- इस जगत में धर्म के नाम पर बहुत से लोग देखादेखी ही कर रहे हैं। तुम्हारे मां-बाप मंदिर जाते थे तो तुम भी मंदिर जाने लगे। वे तुम्हें मंदिर ले गए बचपन से, आदत बन गई। आदत से कहीं धर्म हुआ? आदत और धर्म? लोग सोचते हैं कि कुछ आदतें अच्छी होती हैं, कुछ […]Read More