ओशो- मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं। मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं-दि अपोजिट इज आलवेज दि अट्रैक्यान। और हर आदमी जिससे मोहित होता है, वह उसके विपरीत होता है। यह विपरीत का नियम जीवन के समस्त पहलुओं पर लागू होता है। पुरुष स्त्रियों में आकर्षित होते हैं, उनकी विपरीतता के कारण। स्त्रियां […]Read More
ओशो– कृष्ण कहते हैं, मैं वापस लौट आता हूं यह इस बात की खबर है कि अस्तित्व वैसा ही हो जाएगा, जैसी आपकी गहरी—गहरी मौन प्रार्थना होगी। जैसा गहरा भाव होगा, अस्तित्व वैसा ही राजी हो जाएगा। इसके बड़े इंप्लीकेशंस हैं, इसकी बड़ी रहस्यपूर्ण उपपत्तिया हैं। इसका मतलब यह हुआ कि आप जो भी कर […]Read More
चुनाव की अप्रतिम स्वतंत्रता है;. दुर्भाग्य, क्योंकि हम गलत को
ओशो– एक अति प्राचीन कथा है। घने वन में एक तपस्वी साधनारत था–आंख बंद किए सतत प्रभु-स्मरण में लीन। स्वर्ग को पाने की उसकी आकांक्षा थी; न भूख की चिंता थी, न प्यास की चिंता थी। एक दीन-दरिद्र युवती लकड़ियां बीनने आती थी वन में। वही दया खाकर कुछ फल तोड़ लाती, पत्तों के दोने […]Read More
ओशो– श्रीकृष्ण कहते हैं, स्त्रियों में श्री मैं हूं। लेकिन जब कभी वह फूल खिलता है मुश्किल से खिलता है लेकिन जब कभी वह फूल खिलता है, तो स्त्री स्त्री नहीं होती। पुरुष के प्रति पुरुष होने का जो खयाल है, वह भी खो जाता है। और जिन मुल्कों ने इस श्री को उपलब्ध करने […]Read More
ओशो– दूसरे महायुद्ध में, किसी देश में सैनिकों की भर्ती हो रही थी। जल्दी-जल्दी सैनिक चाहिए थे। हर कोई भर्ती हो रहा था। एक आदमी सैनिक भर्ती के दफ्तर में गया, एक जवान आदमी। उसने फार्म भरा। जो अफसर उसे भर्ती करने को था,उसने पूछा, वह नौ-सेना का, जल-सेना का अधिकारी था और जल-सेना की […]Read More
ओशो- अपरिग्रही चित्त वह है, जो वस्तुओं की मालकियत में किसी तरह का रस नहीं लेता। उपयोगिता अलग बात है, रस अलग बात है। वस्तुओं में जो रस नहीं लेता, वस्तुओं के साथ जो किसी तरह की गुलामी के संबंध निर्मित नहीं करता, वस्तुओं के साथ जिसका कोई इनफैचुएशन, वस्तुओं के साथ जिसका कोई रोमांस […]Read More
प्रश्न : कहा जाता है कि रावण भी ब्रह्मज्ञानी था। क्या रावण भी रावण उसकी मर्जी से नहीं था? क्या रामलीला सच में ही राम की लीला थी? ओशो- निश्चित ही, रावण ब्रह्मज्ञानी था। और रावण के साथ बहुत अनाचार हुआ है। और दक्षिण में जो आज रावण के प्रति फिर से समादर का भाव […]Read More
ओशो– लाख लोग मुखौटे लगा लें हंसी के, आंसू छिपाए छिपते नहीं हैं। लाख आभूषण पहन लें सौंदर्य के, हृदय घावों से भरा है। इस संसार में कांटे ही कांटे हैं। फूल तो केवल वे ही देख पाते हैं जो स्वयं फूल बन जाते हैं। इस संसार में कांटे ही कांटे हैं, क्योंकि हम अभी […]Read More
ओशो– पाप दुख लाता है, फिर भी लोग किए जाते हैं ।पुण्य सुख लाता है, फिर भी लोग टाले जाते हैं ।तो पाप और पुण्य की प्रक्रिया को समझना ज़रूरी है ।जानते हुए भी कि पाप दुख लाता है, फिर भी मुक्त होना कठिन है ।जानते हुए भी की पुण्य सुख लाता है, फिर भी […]Read More
ओशो– जीवन तुम्हारा एक पुनरुक्ति है..एक अंधी पुनरुक्ति! उठते हो, चलते हो, काम-धाम करते हो; लेकिन कहां हो, क्या कर रहे हो..इसका कोई भी होश नहीं। कौन हो..इसका भी कोई पता नहीं। क्यों है तुम्हारा होना यहां..इसका कोई उत्तर नहीं। फिर दिन आते हैं, रातें आती हैं, समय बीतता चला जाता है..और जीवन ऐसे ही […]Read More