ओशो– जीवन में तीन घटनाएं हैं, जो बहुमूल्य हैं: जन्म, मृत्यु और प्रेम। और जिसने इन तीनों को समझ लिया उसने सब समझ लिया। जन्म है शुरुआत, मृत्यु है अंत, प्रेम है मध्य। जन्म और मृत्यु के बीच जो डोलती लहर है, वह प्रेम है। इसलिए प्रेम बड़ा खतरनाक भी है। क्योंकि उसका एक हाथ […]Read More
ओशो– हमें तो कोई भी पराधीन बना सकता है, क्योंकि हमें कोई भी कंपा सकता है। और जैसे ही हम कंपे कि जमीन हमारे पैर के नीचे की गई। कोई भी कंपा सकता है। कोई भी आपसे कह सकता है कि ऐसी सुंदर शक्ल कभी देखी नहीं, बहुत सुंदर चेहरा है आपका! कंप गए आप। […]Read More
ओशो– सभ्यता बांटी जा सकती है भूगोल में, क्योंकि सभ्यता बाह्य आचरण की व्यवस्था है। लोगों के कपड़े पहनने का ढंग, लोगों के भोजन का ढंग, लोगों के उठने-बैठने का सलीका, शिष्टाचार–यह “सभ्यता’ शब्द को ख्याल में रखना, उसका अर्थ होता है: सभा में बैठने की योग्यता। दूसरों के साथ बैठने की योग्यता। इसलिए हम […]Read More
ओशो– धर्म जब जीवित होता है तो हंसना प्रार्थना होती है; धर्म जब मर जाता है तो हंसने का दुश्मन हो जाता है। हंसना जीवन की धड़कन है। जो धर्म हंसना नहीं जानता, वह बहुत समय हुआ तब मर चुका, धड़कन बंद हो चुकी है, श्वास चलती नहीं है, लाश पड़ी है। लाश की पूजा […]Read More
ओशो– अनेक लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि जीवन में सत्य को पाने की क्या जरूरत है? जीवन इतना छोटा है उसमें सत्य को पाने का श्रम क्यों उठाया जाए? जब सिनेमा देख कर और संगीत सुन कर ही आनंद उपलब्ध हो सकता है, तो जीवन को ऐसे ही बिता देने में […]Read More
ओशो– भारत में कभी कोई बुद्ध पुरूष मारा नहीं गया क्योंकि वह चाहे कितना ही विद्रोही क्यों न हो, वह भारतीय परंपरा की श्रंखला की कड़ी बना रहता है। परंतु जेरूसलेम में जीसस बिलकुल विदेशी जैसे थे—वे ऐसे प्रतीकों और भाषा का प्रयोग करते है जिससे यहूदी जाति बिलकुल अंजान है। उनको तो सूली पर […]Read More
ओशो- कोई भी भिन्न नहीं है। धार्मिक चित वह है जो जानता है कि प्रत्येक व्यक्ति समान है। इसलिए तुम जो तर्क अपने लिए खोज लेते हो वही दूसरों के लिए भी उपयोग करो। और अगर तुम दूसरों की आलोचना करते हो तो उसी आलोचना को अपने पर भी लागू करो। दोहरे मापदंड मत गढ़ो। […]Read More
ओशो– कबीर कहते हैं कि हमने तो एक को एक कर के जान लिया। अब कोई दुई न बची। अब हम कोई अलग नहीं हैं। अब तू कोई अलग नहीं है। सूफियों की बड़ी पुरानी कथा है। उस कथा में मैंने थोड़ा सा जोड़ा है। कथा है कि जलालुद्दीन रूमी एक गीत में, कि प्रेमी […]Read More
ओशो– उपनिषदों का बड़ा अदभुत वचन है–तेन त्यक्तेन भुंजीथाः। यह बड़ा क्रांतिकारी सूत्र है। यह कहता है, वे ही त्याग सकते हैं, जिन्होंने भोगा। जो भोग के पहले भाग गए, वे भोग से सदा पीड़ित रहेंगे। जिन्होंने भोग लिया, उनकी स्थिति शांत हो गई, उफशम को उफलब्ध हो गए। अब वे जा सकते हैं। अब […]Read More
ओशो– ईशावास्य का यह सूत्र कहता है — इंद्रियां इसे पा न सकेगी, क्योंकि यह इंद्रियों के पहले है स्वभावत:, मैं आंख से आपको देख सकता हूं मेरी आंख से आपको देख सकता हूं आप मेरी आंख के आगे हैं। लेकिन मैं मेरी आंख से अपने को नहीं देख सकता, क्योंकि मैं आंख के पीछे […]Read More