ओशो– तीन सीढ़ियां हैं मनुष्य कीः शरीर, मन, आत्मा। और तब चौथी दशा हैः तुरीय। पलटू कहते हैं न कि तुरिया में चढ़कर बैठ गया हूं और तुरिया को ही बेच रहा हूं! वह चौथी अवस्था हैः परमात्मा। शरीर से अगर बचकर निकलना चाहा तो मुश्किल हो जाएगी; मन तक न पहुंच पाओगे। मन से […]Read More
ओशो- किसी चलते वाहन में लयबद्ध झुलने के द्वारा, अनुभव को प्राप्त हो। या किसी अचल वाहन में अपने को मंद से मंदतर होते अदृश्य वर्तृलों में झुलने देने से भी।किसी चलते वाहन में……….। तुम रेलगाड़ी या बैलगाड़ी से यात्रा कर रहे हो। जब यह विधि विकसित हुई थी तब बैलगाड़ी ही थी। तो तुम […]Read More
प्रश्न: कहा जाता है कि शंकर हिंदू वेदांती थे और आपने कहा कि शंकर छिपे हुए बौद्ध हैं; इसे कृपया स्पष्ट करें। ओशो– शंकर छिपे हुए बौद्ध भी हैं, छिपे हुए जैन भी, छिपे हुए मुसलमान भी; वैसे ही जैसे बुद्ध छिपे हुए हिंदू हैं, छिपे हुए जैन भी, छिपे हुए ईसाई भी; और वैसे […]Read More
ओशो– मन का सारा काम ही भीतर यह है कि वह हमें निश्चित न होने दे। मन जो भी करता है, अनिश्चय में ही करता है। कोई भी कदम उठाता है, तो भी पूरा मन कभी कोई कदम नहीं उठाता। एक हिस्सा मन का विरोध करता ही रहता है।अगर आप किसी को प्रेम करते हैं, […]Read More
ओशो– आदमी सिर्फ एक ओपनिंग बन सकता है उसके आगमन के लिए। हमारे प्रयास सिर्फ द्वार खोलते हैं, आना तो उसकी कृपा से ही होता है। लेकिन उसकी कृपा हर द्वार पर प्रकट होती है। लेकिन कुछ द्वार बंद हैं, वह क्या करे? बहुत द्वारों पर ईश्वर खटखटाता है और लौट जाता है; वे द्वार […]Read More
ओशो– कह गुलाल सतगुरु बलिहारी, भवसिंधु अगम गम तरिया।। अगम्य है इस भवसागर को पार करना। लेकिन गुलाल कहते हैं: सदगुरु मिल जाए तो असंभव भी संभव हो जाता है। कोई मिल जाए तो उस पार पहुंच गया, किसी की उपस्थिति तुम्हारे लिए प्रमाण बन जाए उस पार पहुंचने की, तो असंभव भी संभव हो […]Read More
ओशो- इस जगत के जो महानतम अपराधी हैं, उनके भीतर महानतम संत होने की संभावना है। जो बड़े से बड़ा पापी है, उसके बड़े से बड़े संत होने की संभावना है। असली कठिनाई तो उनकी है, जिनमें साहस नहीं है। किसी तरह का साहस नहीं है। जिनको तुम सज्जन कहते हो, वे अक्सर नपुंसक लोग […]Read More
प्रश्न- क्या परमात्मा को पाने के लिए साधना ज़रूरी है? ओशो– आप परमात्मा को साधना से नहीं ला सकते। वह तो मौजूद है। साधना से सिर्फ आप अपनी आंख खोलते हैं। साधना से सिर्फ आप अपने को तैयार करते हैं। परमात्मा तो मौजूद है, उसको पाने का कोई सवाल नहीं है। ऐसा समझें कि आप […]Read More
ओशो- क्या गंगा पाप से मुक्त कर सकती है? “या हमने कहा कि आदमी पाप करे और गंगा में स्नान कर ले और मुक्त हो जाएगा। बिलकुल पागलपन मालूम होता है। क्योंकि इसने हत्या की है, चोरी की है, बेईमानी की है, गंगा में स्नान करके मुक्त कैसे हो जाएगा? तो अब यहां दो बातें […]Read More
ओशो– मनुष्य के मन का ठीक-ठीक विश्लेषण करो तो तुम्हें पता चलेगा: मनुष्य कुछ भी खोजता हो, परमात्मा को ही खोजता है। और चूंकि कहीं भी नहीं पाता, इसलिए सब जगह से विषादग्रस्त होकर, संतापग्रस्त होकर लौट आता है। पत्नी में तुमने खोजना चाहा था एक ऐसा सौंदर्य जो कभी कलुषित न हो। तुम्हारी आकांक्षा […]Read More