ओशो– कोई दो सौ वर्ष पहले, जापान में दो राज्यों में युद्ध छिड़ गया था। छोटा जो राज्य था, भयभीत था; हार जाना उसका निश्चित था। उसके पास सैनिकों की संख्या कम थी। थोड़ी कम नहीं थी, बहुत कम थी। दुश्मन के पास दस सैनिक थे, तो उसके पास एक सैनिक था। उस राज्य के […]Read More
ओशो- तिब्बत का शब्द है ल्हामयी। ल्हामयी का अर्थ है, ऐसी आत्माएं, शरीर जिनके छूट गए हैं और नए शरीर जिन्हें नहीं मिले हैं–प्रेतात्माएं। लेकिन विशेष तरह की प्रेतात्माएं जो दूसरों को पथ-भ्रष्ट करने में आनंद लेती हैं। इसे हम अनुभव से भी जान सकते हैं। शरीर के भीतर भी बहुत ऐसे लोग हैं, शरीर […]Read More
ओशो– डॉ. फ्रेंक रोडाल्फ ने अपना पूरा जीवन एक बहुत ही अनूठी प्रक्रिया की खोज में लगाया। उस प्रक्रिया के संबंध में थोड़ा आपसे कहूं तो मूर्ति-पूजा को समझना आसान हो जाएगा। पृथ्वी पर जितनी भी जंगली जातियां हैं, आदिवासी हैं, वे सब एक छोटे–से प्रयोग से सदा से परिचित रहे हैं। उस प्रयोग की […]Read More
ओशो- शिक्षकों_से_मिलता_हूं तो सब जगह उनकी तकलीफ यही है कि विद्यार्थी सम्मान नहीं दे रहा है, आदर नहीं दे रहा है। लेकिन उसे पता ही नहीं है कि गुरु नाम का प्राणी बहुत और बात थी। शिक्षक वह नहीं था, जिसको आदर मिला था। शिक्षक बहुत और बात है। उसे आदर नहीं मिल सकता है। […]Read More
ओशो– बड़ी कीमत का सूत्र कहा है। यह एक सूत्र भी गीता को गीता बना देने के लिए काफी है। बाकी सब फेंक दिया जाए, तो चलेगा। स्वभाव अध्यात्म है–काफी है। लाओत्से ने अपनी जिंदगीभर इस सूत्र के अतिरिक्त किसी सूत्र की व्याख्या नहीं की–स्वभाव अध्यात्म है। नहीं, लेकिन गीता पढ़ने वाले को भी इस […]Read More
ओशो- मीठी कथा है महाभारत में कि युद्ध के पूर्व अर्जुन, दुर्योधन अपने सभी मित्रों, सगे —संबंधियों के घर गए प्रार्थना करने कि युद्ध में हमारी तरफ से सम्मिलित होना। सभी नाते—रिश्तेदार थे, सभी जुड़े थे, गृहयुद्ध था। अर्जुन भी पहुंचा कृष्ण के पास; दुर्योधन भी पहुंचा। दोनों एक ही समय पहुंच गए। दोनों सदा […]Read More
ओशो- जब अष्टावक्र मां के गर्भ में थे, उनके पिता ने उन्हें शाप दिया, जिसकी वजह से उनका शरीर आठ जगहों से आड़ा-तिरछा हो गया। भगवान, इस आठ का क्या रहस्य है? वे अठारह जगह से भी टेढ़े-मेढ़े हो सकते थे और अष्टावक्र कहलाते। यह आठ का ही आंकड़ा क्यों? यह आठ आंकड़ा अर्थपूर्ण है। […]Read More
ओशो– ज्ञान जहां तक जाता है वहां तक उस ज्ञान के विस्तार का नाम वेद है। वेद का अर्थ होता है. ज्ञान; जानना। जिस मूल से वेद शब्द बना है उसी से विद्वान भी। ज्ञान अर्थात वेद। लेकिन ऐसा भी आयाम है जीवन का, और अस्तित्व की ऐसी गुह्य स्थिति भी है, जहां वेद भी […]Read More
ओशो- शिव ने कहा है “होश को दोनों भौहों के मध्य में लाओ और मन को विचार के समक्ष आने दो। देह को पैर से सिर तक प्राण तत्व से भर जाने दो, ओर वहां वह प्रकाश की भांति बरस जाए।” वह विधि पाइथागोरस को दी गई थी। पाइथागोरस यह विधि लेकर ग्रीस गया। और […]Read More
ओशो– बुद्ध का जन्म हुआ। पांचवें दिन रिवाज के अनुसार श्रेष्ठतम पंडित इकट्ठे हुए। उन्होंने बुद्ध को नाम दिया–सिद्धार्थ। सिद्धार्थ का अर्थ होता है: कामना की पूर्ति; आशा की पूर्ति; अर्थ की उपलब्धि; मंजिल का मिल जाना। बूढ़े शुद्धोधन के घर में बेटा पैदा हुआ था। जीवन भर प्रतीक्षा की थी, आशा की थी, सपने […]Read More