ओशो- मैं मानता हूं बुद्ध ने जो किया वह महान है और जो जीसस ने किया वह साधारण है, उसका कोई मूल्य नहीं है। मेरी इन बातों ने पश्चिम को घबड़ा दिया। घबड़ा देने का कारण यह था कि पश्चिम आदी हो गया है एक बात का कि पूरब गरीब है, भेजो ईसाई मिशनरी और […]Read More
ओशो- एक मित्र ने पूछा है कि उनके कोई मित्र हैं वे योगी हैं और कहते हैं कि पिछले जन्म में वे चिड़िया थे तो क्या आदमी पशु भी हो सकता है? आदमी कभी पशु हो सकता है, लेकिन दुबारा पशु नहीं हो सकता। पीछे लौटना नहीं होता, पीछे लौटना असंभव है। तो यह तो […]Read More
ओशो– तुमने देखा, हिंदू इस संबंध में बड़े कुशल हैं। गणेश जी बना लिए मिट्टी के, पूजा इत्यादि कर ली—जा कर समुद्र में समा आए। दुनिया का कोई धर्म इतना हिम्मतवर नहीं है। अगर मंदिर में मुर्ति रख ली तो फिर सिराने की बात ही नहीं उठती। फिर वे कहते हैं अब इसकी पूजा जारी […]Read More
ओशो– मनु की स्मृति पढ़ने जैसी है। मनु की स्मृति से ज्यादा अन्यायपूर्ण शास्त्र खोजना कठिन है, क्योंकि कोई न्याय जैसी चीज ही नहीं है। मनुस्मृति हिंदुओं का आधार है–उनके सारे कानून,समाज-व्यवस्था का। अगर एक ब्राह्मण एक शूद्र की लड़की को भगाकर ले जाये तो कुछ भी पाप नहीं है। यह तो सौभाग्य है शूद्र […]Read More
ओशो- यह सूत्र थोड़ा जटिल है–अपने आप में यह सूत्र जटिल नहीं है, किंतु व्याख्या करने वालों के कारण यह सूत्र जटिल हो गया है। पंतजलि की व्याख्या करने वाले सभी व्याख्याकार इस सूत्र के विषय में ऐसी व्याख्या करते हैं, जैसे पंतजलि किसी बाहर के सूर्य की बात कर रहे हों। पंतजलि बाह्य सूर्य […]Read More
ओशो- वैज्ञानिक कहते हैं कि हाइड्रोजन और आक्सीजन मिलकर पानी बनता है। अगर आप हाइड्रोजन और आक्सीजन को मिला दें, तो पानी नहीं बनेगा। लेकिन अगर आप पानी को तोड़े, तो हाइड्रोजन और आक्सीजन बन जाएगी। अगर आप पानी की एक बूंद को तोड़े, तो हाइड्रोजन और आक्सीजन आपको मिलेगी और कुछ भी नहीं मिलेगा। […]Read More
संसार दिखावा है, परमात्मा दिखावा नहीं है; उसे तुम अपने
ओशो– परमात्मा कोई प्रदर्शन नहीं है; वह कोई एक्झिबीशन नहीं है। संसार प्रदर्शन है। अगर तुम्हारे पास धन है और तुम न दिखाओ, तो होने का सार ही क्या? तुम्हारे पास हीरे-जवाहरात हैं, तुम जमीन में गाड़े रखे रहो, क्या फायदा? उनको दिखाना पड़ेगा। मौके-बेमौके उनको निकालना पड़ेगा–शादी-विवाह में, मंदिर में, क्लब में, कहीं न […]Read More
प्रार्थना मांग नहीं, धन्यवाद है ओशो- लाओत्से अनूठा है, जितनी इस सूत्र में उसने बातें कह दी हैं, बड़े से बड़ा शास्त्र भी उतनी बातें विस्तार में भी नहीं कह पाते। स्वामित्व से बड़ा कोई पाप नहीं। लोग पंच पाप गिनाते हैं–कि हिंसा पाप है, चोरी पाप है, लोभ पाप है, या कोई गिनाता है, […]Read More
ओशो- विपस्सना का अर्थ है: अपनी श्वास का निरीक्षण करना, श्वास को देखना। यह योग या प्राणायाम नहीं है। श्वास को लयबद्ध नहीं बनाना है; उसे धीमी या तेज नहीं करना है। विपस्सना तुम्हारी श्वास को जरा भी नहीं बदलती। इसका श्वास के साथ कोई संबंध नहीं है। श्वास को एक उपाय की भांति उपयोग […]Read More
‘’ॐ जैसी किसी ध्वनि का मंद-मंद उच्चारण करो।‘’ ओशो- उदाहरण के लिए ॐ को लो। यह एक आधारभूत ध्वनि है। अ, उ और म, ये तीन ध्वनियां ॐ में सम्मिलित है। ये तीनों बुनियादी ध्वनियां है। अन्य सभी ध्वनियां उनसे ही बनी है। उनसे ही निकली है, या उनकी ही यौगिक ध्वनियां है। ये तीनों […]Read More