ओशो- जैसे ही तुम्हें पता चले सुबह की नींद टूट गई, आंख मत खोलना। उस वक्त चित्त बहुत संवेदनशील है! जैसे ही पता चले नींद टूट गई, पहला ध्यान एक करना कि मैं साक्षी हूं। रोज सुबह उठते समय पांच मिनट आंख बंद किए ही पड़े रहना, आंख मत खोलना। आंख खोलते ही संसार दिखाई […]Read More
गणतंत्र दिवस आयोजन के लिए किया गया अंतिम पूर्वाभ्यास
दुर्ग/ जिला मुख्यालय में गरिमामय गणतंत्र दिवस आयोजन के लिए आज कलेक्टर ऋचा प्रकाश चौधरी और एसपी जितेन्द्र शुक्ला की मौजूदगी में अंतिम पूर्वाभ्यास किया गया। सहायक कलेक्टर एम. भार्गव ने पूर्वाभ्यास के दौरान मुख्य अतिथि की भूमिका निभाई। मंच पर मुख्य अतिथि के आगमन व ध्वजारोहण का अभ्यास के साथ ही कलेक्टर और एसपी […]Read More
ओशो- विज्ञान भैरव तंत्र का जगत बौद्धिक नहीं है, दार्शनिक नहीं है। सिद्धांत इसके लिए अर्थ नहीं रखता। यह उपाय की, विधि की चिंता करता है। तंत्र शब्द का अर्थ ही है विधि, उपाय, मार्ग। तंत्र का अर्थ विधि है। इसलिए यह एक विज्ञान ग्रंथ है। विज्ञान ‘क्यों’ की नहीं, ‘कैसे’ की फिक्र करता है। […]Read More
ओशो– तुमने एक बात खयाल की! अगर तुम सुखी हो, तो लोग तुमसे नाराज हो जाते हैं! तुम जब दुखी होते हो, तब तुमसे राजी होते हैं। तुम जब सुखी हो, सब तुम्हारे दुश्मन हो जाते हैं। सुखी आदमी के सब दुश्मन। दुखी आदमी के सब संगी—साथी। सहानुभूति प्रगट करने लगते हैं।तुम एक बड़ा मकान […]Read More
ओशो- शरीर के बिना कुछ आनंद लिए जा सकते हैं। जैसे समझें, एक विचारक है। तो विचारक का जो आनंद है, वह शरीर के बिना भी उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि विचार का शरीर से कोई संबंध नहीं है। तो अगर एक विचारक की आत्मा भटक जाए, शरीर न मिले, तो उस आत्मा को शरीर […]Read More
ओशो- हिंदुस्तान में साधु-संन्यासी, सज्जन जिनको हम कहें, वे सब आधुनिकता के बड़े विपरीत हैं। वे कहते हैं, आधुनिक हुए तो अपना सब खो जाएगा, भारतीय न रह जाओगे। अतीत की संपदा है, वह खो जाएगी। वे कहते हैं कि आधुनिक होने से बचना, अन्यथा अपनी संस्कृति खो जाएगी।असल में जो संस्कृति जिंदा होती है, […]Read More
ओशो- अगर बहुत ठीक से समझें, तो दुख सुख की ही छाया है। और भी गहरे में समझें, तो जो ऊपर से सुख दिखाई पड़ता है, वह भीतर से दुख सिद्ध होता है। कहें कि सुख केवल दिखावा है, दुख स्थिति है।जैसे एक आदमी मछली मार रहा है नदी के किनारे बैठकर, तो कांटे में […]Read More
ओशो- गरीब की सबसे बड़ी जो दुविधा है, वह है प्राइवेसी का अभाव–भोजन नहीं, कपड़े नहीं। गरीब का सबसे बड़ा दुख है कि उसकी प्राइवेट जिंदगी नहीं हो सकती। वह अगर अपनी पत्नी से भी बात कर रहा हो तो भी पड़ोसी सुनता है। वह अपनी पत्नी से भी प्रेम नहीं कर सकता बिना इसके […]Read More
ओशो- जो समझदार है, धीर है, जो बुद्धिमान है, वह इस सत्य को देख लेता है कि तृष्णा की दौड़ में सिर्फ नए-नए नर्क निर्मित होते हैं। जो धीर है, जो बुद्धिमान है, वह इस सत्य को देख लेता है कि मैं जैसा हूं, जहां हूं, उसी में तृप्त हो जाऊं, तो यहीं स्वर्ग बरस […]Read More
ओशो/ मेरा सपना तो एक है। मेरा अपना नहीं, सदियों पुराना, कहें कि सनातन है। पृथ्वी के इस भूभाग में मनुष्य की चेतना की पहली किरण के साथ उस सपने को देखना शुरू किया गया था। उस सपने की माला में कितने फूल पिरोए हैं। कितने गौतम बुद्ध, महावीर, कितने कबीर, कितने नानक, उस सपने […]Read More