ओशो– आप पैदा हुए। तो शायद आपको खयाल होगा, जन्म की एक तिथि है और फिर मृत्यु की एक तिथि है, इन दोनों के बीच आप समाप्त हो जाएंगे। लेकिन इस जगत में कोई भी चीज आइसोलेटेड नहीं है। इस जगत में कोई चीज अलग- थलग नहीं है। जन्म के पहले भी आपको किसी न […]Read More
ओशो– प्रेम ही शांति ला सकता है। प्रेम का अर्थ हैः उससे मिल जाना जो हमारा स्वभाव है। प्रेम का अर्थ हैः उससे मिल जाना जिससे मिलना हमारी नियति है। प्रेम का अर्थ हैः उसे पा लेना जिसे पाने को हम बने हैं। प्रेम का अर्थ हैः बीज फूल हो जाए, तो सब शांत हो […]Read More
कुम्हारी/ विचक्षण जैन विद्यापीठ स्कूल में कक्षा बारहवीं में अध्ययनरत नगर के प्रतिभावान युवा छात्र हरित चंचानी ने चाइल्ड सेफ्टी लॉक लुक फॉर एलपीजी गैस सिलेंडर का मॉडल बनाया और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर विद्यालय का ही नहीं वरन छत्तीसगढ़ प्रदेश का मान बढ़ाया है । हाल ही में राष्ट्रीय स्तर पर उनके मॉडल को […]Read More
ओशो– अंध—श्रद्धा से अर्थ है, वस्तुत: जिसमें श्रद्धा न हो, सिर्फ ऊपर—ऊपर से श्रद्धा कर ली गई हो। भीतर से आप भी जानते हों कि श्रद्धा नहीं है, लेकिन किसी भय के कारण या किसी लोभ के कारण या मात्र संस्कार के कारण, समाज की शिक्षा के कारण स्वीकार कर लिया हो। ऐसी श्रद्धा के […]Read More
ओशो- मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं। मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं-दि अपोजिट इज आलवेज दि अट्रैक्यान। और हर आदमी जिससे मोहित होता है, वह उसके विपरीत होता है। यह विपरीत का नियम जीवन के समस्त पहलुओं पर लागू होता है। पुरुष स्त्रियों में आकर्षित होते हैं, उनकी विपरीतता के कारण। स्त्रियां […]Read More
ओशो– कृष्ण कहते हैं, मैं वापस लौट आता हूं यह इस बात की खबर है कि अस्तित्व वैसा ही हो जाएगा, जैसी आपकी गहरी—गहरी मौन प्रार्थना होगी। जैसा गहरा भाव होगा, अस्तित्व वैसा ही राजी हो जाएगा। इसके बड़े इंप्लीकेशंस हैं, इसकी बड़ी रहस्यपूर्ण उपपत्तिया हैं। इसका मतलब यह हुआ कि आप जो भी कर […]Read More
चुनाव की अप्रतिम स्वतंत्रता है;. दुर्भाग्य, क्योंकि हम गलत को
ओशो– एक अति प्राचीन कथा है। घने वन में एक तपस्वी साधनारत था–आंख बंद किए सतत प्रभु-स्मरण में लीन। स्वर्ग को पाने की उसकी आकांक्षा थी; न भूख की चिंता थी, न प्यास की चिंता थी। एक दीन-दरिद्र युवती लकड़ियां बीनने आती थी वन में। वही दया खाकर कुछ फल तोड़ लाती, पत्तों के दोने […]Read More
ओशो– श्रीकृष्ण कहते हैं, स्त्रियों में श्री मैं हूं। लेकिन जब कभी वह फूल खिलता है मुश्किल से खिलता है लेकिन जब कभी वह फूल खिलता है, तो स्त्री स्त्री नहीं होती। पुरुष के प्रति पुरुष होने का जो खयाल है, वह भी खो जाता है। और जिन मुल्कों ने इस श्री को उपलब्ध करने […]Read More
ओशो– दूसरे महायुद्ध में, किसी देश में सैनिकों की भर्ती हो रही थी। जल्दी-जल्दी सैनिक चाहिए थे। हर कोई भर्ती हो रहा था। एक आदमी सैनिक भर्ती के दफ्तर में गया, एक जवान आदमी। उसने फार्म भरा। जो अफसर उसे भर्ती करने को था,उसने पूछा, वह नौ-सेना का, जल-सेना का अधिकारी था और जल-सेना की […]Read More
ओशो- अपरिग्रही चित्त वह है, जो वस्तुओं की मालकियत में किसी तरह का रस नहीं लेता। उपयोगिता अलग बात है, रस अलग बात है। वस्तुओं में जो रस नहीं लेता, वस्तुओं के साथ जो किसी तरह की गुलामी के संबंध निर्मित नहीं करता, वस्तुओं के साथ जिसका कोई इनफैचुएशन, वस्तुओं के साथ जिसका कोई रोमांस […]Read More