कृष्ण कहते हैं, जहां-जहां ऐश्वर्य, जहां-जहां विभूति, जहां-जहां कांति, जहां-जहां शक्ति दिखाई पड़े, वहां-वहां मेरे ही तेज के अंश से उत्पन्न है, ऐसा तू जानना “ओशो”

 कृष्ण कहते हैं, जहां-जहां ऐश्वर्य, जहां-जहां विभूति, जहां-जहां कांति, जहां-जहां शक्ति दिखाई पड़े, वहां-वहां मेरे ही तेज के अंश से उत्पन्न है, ऐसा तू जानना “ओशो”

ओशो- जो शब्द चुने हैं, एक तो है ऐश्वर्य, विभूति, कांति, शक्ति, वे सब संयुक्त हैं। शक्ति का अर्थ है, ऊर्जा, एनर्जी। एक छोटे—से बच्चे में शक्ति दिखाई पड़ती है। एक के में शक्ति क्षीण हो गई होती है, उस अर्थों में जैसी बच्चे में दिखाई पड़ती है।

इसलिए जो शक्ति की खोज कर रहे हों, बेहतर है कि बच्चे में खोजें, के में खोजने न जाएं। वहां शक्ति तो क्षीण होने लगी है। जो शक्ति की खोज कर रहे हों, बेहतर है कि सुबह के सूरज में खोजें, सांझ के सूरज में खोजने न जाएं, क्योंकि वहां तो ढलने लगा सब। शक्ति तो जितनी नई हो, उतनी तीव्र और गहन होती है। जो शक्ति को खोजने चलेंगे, उनके लिए बच्चे ईश्वरीय हो जाएंगे; वहां शक्ति अभी नई है, अभी फव्वारे की तरह फूटती हुई है। अभी उबलता हुआ है वेग, अभी सागर की तरफ दौड़ेगी यह गंगा। अभी यह गंगोत्री है, छोटी है, लेकिन विराट ऊर्जा से भरी है।यह बड़े मजे की बात है। गंगोत्री में जितनी शक्ति है, उतनी जब गंगा सागर में गिरती है, तब नहीं होती है। बड़ी तो हो जाती है गंगा बहुत, लेकिन की भी हो जाती है। विशाल तो हो जाती है, लेकिन शक्ति का विशालता से कोई संबंध नहीं है। शक्ति तो, सच है कि जितना छोटा अणु हो, उतनी गहन होती है।

इसलिए आज विज्ञान अणु में सर्वाधिक शक्ति को उपलब्ध कर पाया है। परमाणु में, क्षुद्र परमाणु में, अति क्षुद्र परमाणु में, उसमें जाकर शक्ति का स्रोत मिला है।

छोटे—से बच्चे में भी, पहले दिन के बच्चे में जो शक्ति है, फिर वह रोज कम होती चली जाएगी। शक्ति को देखना हो, तो नये में खोजना। इसलिए जो भी समाज नये होते हैं, वे बच्चों का आदर

करते हैं। जो समाज शक्तिशाली होते हैं, वे बच्चों का आदर करते हैं, सम्मान करते हैं।

लेकिन अगर ऐश्वर्य खोजना हो, तो के में खोजना, वृद्ध में खोजना। क्योंकि ऐश्वर्य अनुभव का निखार है, वह बच्चे में कभी नहीं होता। उसमें शक्ति होती है अदम्य। लेकिन अगर ऐश्वर्य खोजना हो, तो वह वृद्ध में खोजना।

रवींद्रनाथ ने कहा है कि जब सच में ही कोई आदमी वृद्ध होता है— सच में! हम सब भी बूढ़े होते हैं, लेकिन हमारा का होना वृद्ध होना नहीं है, सिर्फ क्षीण होना है, दीन होना है, दरिद्र होना है। हमारा वार्धक्य एक उपलब्धि नहीं है, सिर्फ एक लंबी गवाई है, कमाई नहीं है। लंबा हमने गंवाया है। खोया है, खोया है। क्षीण हो गए। जर्जर हो गए। सब चुक गया।

रवींद्रनाथ ने कहा है, जब सच ही कोई बूढ़ा होता है, तो उसके शुभ्र बाल वैसे ही हिमाच्छादित हो जाते हैं, जैसे हिमालय के पर्वत। उसके शुभ्र बालों में वैसी ही शीतलता और वैसा ही ऐश्वर्य आ जाता है, जैसे कभी जब गौरीशंकर पर बर्फ जमी होती है।

अगर कोई व्यक्ति ठीक से जीया है, तो वार्धक्य उसका ऐश्वर्य को उपलब्ध हो जाता है। एक कांति, एक दीप्ति जो के में ही होती है, बच्चे में नहीं हो सकती। बच्चे में एक अदम्य वेग होता है, शक्ति होती है, जो कुछ बन सकती है, नष्ट भी हो सकती है। अगर का उसे कुछ बनाने में समर्थ हो जाए, और वह जो शक्ति बच्चे में दिखाई पड़ी थी, अगर ठीक—ठीक यात्रा करे, तो ऐश्वर्य बन जाती है अंत में। अनुभव से यात्रा करके शक्ति ऐश्वर्य बनती है।

इसलिए जो समाज के होते हैं, उनमें ऐश्वर्य देखा जा सकता है। जैसे अगर शक्ति देखनी हो, तो पश्चिम में देखनी चाहिए। और अगर ऐश्वर्य देखना हो, वह आभा देखनी हो जो वार्धक्य को उपलब्ध होती है, तो पूरब में देखनी चाहिए। इसलिए जो समाज पुराने होते हैं, वे के को आदर देते हैं, बच्चे को नहीं। उनका आदर ऐश्वर्य के लिए है, चरम के लिए है, आखिरी के लिए है, अंतिम जो शिखर होगा, उसके लिए है।

शक्तिशाली समाज बच्चों और जवानों पर निर्भर करेगा। ऐश्वर्यशाली समाज वृद्ध पर, वार्धक्य पर निर्भर करेगा। इसलिए हमने तो अपने मुल्क में के हो जाने को ही काफी आदर की बात समझा है। जरूरी नहीं है कि का आदर के योग्य हो। लेकिन फिर भी हमने ऐसे वृद्ध देखे हैं कि उनके कारण सभी के आदृत हो गए। और वृद्ध ही पा सकते हैं उस अंतिम बात को, उस सौम्यता को।

एक तो भभक है आग की, और एक सिर्फ आभा है। ऐसा समझें कि जब सांझ सूरज डूब जाता है और रात नहीं आई होती है, तब जो प्रकाश फैल जाता है; या सुबह जब सूरज नहीं निकला होता, रात जा चुकी होती है, तब जो प्रकाश, जो आलोक फैल जाता है, वह आभा है, वह ऐश्वर्य है। शक्ति जला देती है, ऐश्वर्य केवल आलोकित करता है। शक्ति आग है; ऐश्वर्य केवल प्रकाश है और शीतल है। ऐश्वर्य में कोई दंभ और दर्प नहीं है, शक्ति में होगा। शक्ति से प्रारंभ होता है जीवन का, ऐश्वर्य पर उपलब्धि होती है। कांति से यात्रा है। अगर शक्ति कांति से गुजरे, तो ही ऐश्वर्य को उपलब्ध होती है। अगर कोई व्यक्ति अपनी जीवन—ऊर्जा का उपयोग क्षुद्र को खरीदने में करता रहे, तो कांतिहीन हो जाता है।

हम कई बार हीरे—जवाहरातों को देकर रोटी के टुकड़े खरीद लाते हैं। कई बार कहना ठीक नहीं, अधिक बार, ज्यादातर जीवन में जो श्रेष्ठतम है, उसे गंवाकर हम क्षुद्र को खरीद लेते हैं। पूरा जीवन हमारा इसी नासमझी में बीतता है। बस, काफी धंधा किया, काफी लेन—देन किया, इसका भर सुख होता है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३
गीतादर्शनअ.10.प्र.15/127
मंजिल है स्‍वयं में